Monday 25 February 2013

एक और तबाही POEM No.51(Chandan Rathore)


                                                       














कई इंसानों की हो गई आज दुनिया से विदाई
मर गये वो ये कह कर "आज इस ज़ालिम दुनिया से हो गई रिहाई"


घरों में छुप के बैठे हैं
देख ये खबरें अफ़सोस जताते हैं

कोई तो लाशों के भाव बताते हैं
घायल जो हुआ उसे सस्ते में निपटाते हैं

कहाँ गया तुम्हारा जमीर ए इंसानों
आतंकवादियों का तो पता नहीं
मरने वालों को 2 -2 लाख में निपटाते हैं

कोई सुने न फरियाद हमारी
क्योंकि खोखली नीव है हमारी

देखो दहल गया है जयपुर
लाशों के ढेर, तबाही का है मंजर

कौन बनाता है उन्हें इतना हैवान
क्यों बदल गया है इतना इन्सान

देख के दिल भी दहल जाये
चीखें सुनकर उनकी अपनी भी साँसे रुक जाये

ये थी एक और तबाही
कोई तो रोकलो अब न हो कोई और तबाही

अब न हो एक भी तबाही


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़

9:54 PM 24/02/2013

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