Thursday 8 May 2014

Apni Friendship (अपनी Friendship) POEM No. 168 (Chandan Rathore)


POEM No. 168
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अपनी  Friendship
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एक अन्जाने  सफर में एक अंजानी Friendship
दोनों थे अन्जान फिर भी बढ़ती रही वो  Friendship

करते थे खूब मस्ती, सिर्फ आंखें और इशारों से 
हाय !! बाय  !! का था साथ चला कई दिनों से 

बात ना हुई कभी फिर भी थी पक्की friendship
एक दिन अंजाने में अन्जानी खत्म हुई friendship

खाली खाली सा लगते थे सारे दिन 
आँखे ढूंढ़ती बस उस अंजान दोस्त को पुरे दिन  

कोई खबर नही थी उस अन्जाने दोस्त की 
लगता जैसे कोई परी थी 
जो आई और थोड़ी सी खुशी दे कर वापस कई उड़ गई थी 
अब कभी नही आयेगी वो और डूब चुकी थी हमारी friendship

  एक दिन वो मिली किसी मोड़ पर 
देखते ही मुश्कान थी मेरे होठों पर 
ऐसा लगा मानो परी  हो धरती पर 

फिर कही गुम जैसे कोई सापना था  मेरा  
कई दिन बाद किसी न. से सन्देश आया 
नये न. देख मेरा सिर चकराया 

मेने कहा कोन हो नाम तो बताना जरा 
जवाब आया "दोस्त हूँ भूल गये मै अंजानी दोस्त"
कई सवालों  के किसी का आज फ़िर से पर्दा उठाया 
मेने अपने खुदा को
 हँसकर कहा "तूने हमें  वापस मिलाया "

  
आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:13 PM 08/12/2013
(#Rathoreorg20)
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