Thursday 22 May 2014

Hamari Robo (हमारी रोबो) POEM No. 170 (Chandan Rathore)


POEM No.  170
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हमारी रोबो
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गुरुर उसका शरीर
मेला -कुचैला  सा नीर

गमण्ड उसका श्रृंगार 
सोच उसकी सरकार

अपनी ही वो हर दम चलाती
 खुद काम गलत कर मुझ पर  चिल्लाती

सोच उसकी बहुत विशाल 
पर रखती ना खुद का ख्याल

गुरुर इतना वो करती
जैसे पूरा जहाँ उसकी मुट्ठी  में करती

अब तो वो गमण्ड में है रहती 
जैसे सारा दर्द वो ही है सहती

बदल जा अब भी वक्त है
 फिर किसी के हाथ ना ये वक्त है 

फिर रोयेगी अपने कर्म देख कर 
बहुत पछताएगी मुझे ये सितम दे कर



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

10:51pm, Mon 09-12-2013  
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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