POEM No. 157
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बेटियाँ अनोखी कहानी
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बेटी कि नदी सी सुरीली आवाज
उसी के खटे-मीठे प्रश्न
और उसी के खटे-मीठे जवाब
चलती देखो रानी सी
एक चंचल सी मंद मुस्कान सी
सुबह उठते ही उसी का चेहरा देखु
वो खो जाए तो आँखे बंद कर उसे ढूंडू
भाग भाग कर मुझे थकाती
कितने प्यारे पापा ऐसा वो कहती
मुस्कान मेरी वो है
मेरी शान बस वो है
सारे दुःखो का हल वो है
मै अधूरा सा रहता हूँ जब वो होती नही
मेरी साड़ी धन दोलत सब वो है
बेटियाँ अनोखी सी कहानी
उसके बिना कैसी सब कि जिंदगानी
उठा कर हाथ उसे बुलाओं
सवर जायेंगी दुःख भरी जिंदगानी
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
09:19am, Tue 05-11-2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_
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