POEM No. 154
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तेरी परछाई
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खुली बाहों में जो जहाँ समेटा था
एक पल में जाने कैसे दिल टुटा था
खामोश होक वो ऐसे चली
उस राह पे जो दुआ में मुझे कब्रिस्तान देता था
आज भी उसकी यादों कि लहरें
मेरे गमों को गिला कर जाती है
छोड़ दूँगा मै एक दिन उसे
मेरी इछाओ का गला गोटा था
वो कहती बेइन्तिहान महोबत ना करो
पर दिल के आशियानें में उसके बिना अँधेरा था
कहती है दुनिया जालिम हूँ मै
क्यों ना बनता मै
मेरे भगवान ने जो मेरा दिल तोडा था
रुक जा आंशुओ कि मूसलाधार बारिश
अब थम भी जाओ कही डूब ना जाऊं मै यहाँ
तेरी परछाई ही तो मेरा जरोखा था
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
04:11pm, Sun 13-10-2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_
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