POEM No. 156
---------
क्या करूँ
---------
तेरे लिए जिऊँ
या फिर तेरे लिए मरुँ
हाय क्या करूँ
तेरी रूह कि नुमाइशों में मजबूरियाँ है
उनकी मंजूरियाँ का क्या करूँ
हाय क्या करूँ
एक टक नाटक जो किया उसने
बंजर सी जमि को मै गुलिस्तान क्या करूँ
बेखोफ उठते है अंतर मन के काफिले
मुर्दा है सारे विचार तेरे
मै तेरी मझार पे क्या करूँ
तेरे नैनों कि जो क़त्ल करने कि आदत है
आज भी वो ठेस पहुँचाती है दिल को
जल रहा हूँ मै हर दम, इसे ज्यादा मै और अता क्या करूँ
गुल-मिल जाता हूँ सारे गम में
पर उन खुशियों का क्या करूँ
तेरी यादे मुझे मरने पर मजबूर करती है
पर जिन्हें चाह है मेरी उस दुनिया का क्या करूँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
11:52am, Thu 17-10-2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_
No comments:
Post a Comment
आप के विचारो का स्वागत हें ..