Wednesday 19 July 2017

Mrat Kaaya Ka Rodan (मृत काया का रोदन) POEM NO. 230 (Chandan Rathore)



POEM NO . 230

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मृत काया का रोदन
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मृत काया के लिए हुआ आज फिर करुणा मय रोदन |
छोटे छोटे बच्चों की आशाओं का हुआ शोषण ||

रूठ गए जग छोड़ गए वो, अब कुछ ना रहा कृन्दन |
लोग करे समाज करे, बस बेमेल बिन वजह चिंतन ||

उठा कर काया बच्चों ने उनको खूब सत्कार दिया |
अर्थ ना जाने वो बालक, जिन्होंने अंतिम संस्कार किया ||

धर्म कर्म सिखलाने वाले ऐसे क्यों तूने जीवन त्याग दिया |
हसीं ख़ुशी लाने वाले ये बिछडन क्यों हमारे नाम किया ||

तुम आते तो हम खाते तुम खिलाते तो हम खाते |
अब तुम्हारे बिन ओ !! पिता श्री कैसे कटेगी ये रातें ||

मृत काया का दर्श ना होता, जीवन का कोई अर्थ ना होता |
जीवन भर जिसके लिए जिए थे , वो ही जला देता है चिता ||


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

04:28pm, Sun 22-06-2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂