Tuesday 30 December 2014

Maa Bolu To (माँ बोलूँ तो ...) POEM NO. 216 (Chandan Rathore)


POEM NO. 216
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माँ बोलूँ तो ...
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माँ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है
तेरे बिन जी लू तो भगवान रूठ जाते है
कैसा ये मनोरम चेहरा है माँ
अगर कुछ बोलूँ तो आंसू  गिर जाते माँ

चिंता में हमेशा मे रहता
सब दर्द तुम क्यों सह लेती हो माँ
आँचल में छुपालों मुझको
दुनियाँ से अब डर लगता है माँ

रो रो कर पुकारू तुझको
ना चुप हूँ पाउ माँ
तेरी सूरत भोली लागे कैसे मुझे सम्भालू माँ
कुछ बोलता हु तो, आंसू गिर जाते माँ

कष्टों से तूने निकला
खुद भूखी रह तूने मुझे है पाला
आंसू बहा रहा हूँ माँ
तुझे बुला रहा हूँ माँ
कुछ बोलूँ तो, आंसू गिर जाते माँ

तेरी याद में बरसों बीते
कई राते हम भूखे सोते
अब दर्द किसे सुनाऊ माँ
नींद नही आती है अब तो
अपने हाथो पे सुला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आँसू गिर जाते माँ

माँ बिछड़ी सब बिछड़ा मुझसे
अब किस से आश लगाऊ माँ
माँ कहते कहते प्राण निकल जाए
बिन तेरे क्या करू इन प्राणो का माँ
भूख बहुत लगती है अब तो
अपने हाथ से खिला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है माँ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:13am, Sat 10-05-2014
(#Rathoreorg20)
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Sunday 21 December 2014

Kyo Bigada Mujhe (क्यों बिगाड़ा मुझे) POEM NO. 214 (Chandan Rathore)


POEM NO. 214
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क्यों बिगाड़ा मुझे
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ख़ुशी आज भी है
ख़ुशी कल भी रहेगी
मेरी हर आदत
तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

हँसी रहेगी चेहरे पर
आँखे नम सी रहेगी
डूब जायेगे एक दिन
साँसे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

लब्जो में गम है
इस दुविधा में हम है
कोई नही है दूर दूर तक
फिर भी आँखे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

तुम भूल जाओ "राठौड़" को
उसे अब जरुरत नही तुम्हारी
इतना सब कुछ कर दिया
अब क्या आदत समझू  तुम्हारी
मेरे हर लफ्ज कहते है
"क्यों बिगाड़ा मुझे"


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:26am, Tue 29-04-2014 
(#Rathoreorg20)
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Friday 19 December 2014

Armaan Jalte He (अरमान जलते है) POEM NO. 212 (Chandan Rathore)


POEM NO. 212
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अरमान जलते है
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कहती है सरकार हम किसी गरीब को भूखा नही सोने देंगे

खुशियाँ जलती है भूख बढ़ती है, लाचारी में बच्चों के हाथ जलते है
अरे !!!  नेताओं गरीबों के चूल्हे में तो  आज भी उसके अरमान जलते है

ख़ुशी नही दी तुमने तो दुःख क्यों बाटते हो
अरे !!! सरकार की अत्याचारी में गरीबों के शमशान जलते है

वोट मांगने आते घर घर फिर कही गायब हो जाते है
काम हो किसी इंसान के तो उसे इतना गुमाया जाता है
इतने चक्कर में गरीब के चप्पल तक घिस जाते है

ऐ सरकार हम राजा है हम तुम्हे चुनते है
तुम ये क्यों भूल जाते हो
हम नही होते तो तुम यहाँ नही होते
तुम ये क्यों भूल जाते हो
तुम्हारे सम्मान में गरीबों के सम्मान कई गुम हो जाते है

2 वक्त का खाना भी अब जहर सा लगता है
तुम्हारे इन हालातों को देख गरीब के आंसू तक रोते है
अरे !!! नेताओं गरीबों के चूल्हें में तो आज भी उसके अरमान जलते है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:18 PM 22/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Sunday 14 December 2014

Meri Kahani Meri Jubani Part 3 (मेरी कहानी मेरी जुबानी भाग 3) POEM NO. 211 (Chandan Rathore)


POEM NO. 211
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मेरी कहानी मेरी जुबानी भाग 3
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लिखते लिखिते जिंदगी और आगे बढ़ी
दुनियाँ से मुझे और ठोकरे खानी पड़ी

लिख लिख कर बयां करता रहा अपने अरमानों को
सुना सुना कर बताता रहा अपने जख्म में दुनियाँ को

पर अभी भी मंजिल बहुत दूर थी
धीरे धीरे कविताएँ आगे बढ़ती रही
काव्य सुमन, मौत-ऐ-कहानी
लिख कर सुना दी अपनी कहानी
कविताओं का शतक पूरा हुआ
अभी मुकाम से मेरा सामना ना हुआ

और एक नौकरी आई उसने मेरी अभी की आजीविका चलाई
कुछ होता नही था उन पेसो से फिर भी मेने उसे अपनाई
कभी पूरा महीना बिस्किट से निकल जाता तो कभी भूखा ही सो जाता
हर गम को ख़ुशी से जिया, हिम्मत ना होती तो कभी का मर जाता

कई दोस्त और इस राश्ते मिले जिन्होंने मुझे संभाला
मेरे अपनों ने मुझे मौत-ऐ-कहानी का भाग 2 लिखवा डाला

बहुत चर्चित भी थी, बहुत दुखद भी थी ये जिंदगानी
धीरे धीरे लेखकों का साथ हुआ, कुछ सीखा और सुन्दर हुई लेखनी

डेढ़ सो से दो सो हुई कविताएँ अब मेरी
कई गाने लिखे कई फ़साने लिखे सब याद थी मेरी
मुकाम ना हुआ हासिल मेरे शब्दों को
नया रूप दिया, नई गहराई भरी
फिर भी अकेला पण सताता है
सब से अलग रहने को जी चाहता है


जीवन बहुत कुछ सिखा रहा था
आता जाता हर शक्श मुझे समझा रहा था
पर मेरे सपने बहुत ही उच्य कोटि के थे
उन्हें पूरा करने के लिए मै सब दम लगा रहा था

पता नही कहा ले जायेगी ये कहानी मेरी
और कितनी बाकी है दुःख भरी जिंदगानी मेरी
एक दिन वो अलग हो गया जिसे रूह माना था
ऎसे रास्ते पे अलग हुआ जो पता नही कहा जाता था

आज भी कोशिश जारी है
दुनिया से निपटने की
बड़ी सिद्दतों से तमन्ना है
रो रो कर जज्जबात बताने की

कभी कई मुकाम आ जाते सामने
कभी मुकाम चुनना कठिन हो जाता
समाज सेवा का मन किया NGO की सोच मन में आई
पर पता नही क्यों यहाँ किसी के मन को ना भाई

कहानी फिर अधूरी रह गई
आगे फिर कभी सुनाऊंगा
आज से और ऊपर या पता नही निचे गिर जाऊँगा
पर हां मेरी कहानी मेरी जुबानी (भाग 4) आप को जरूर बताऊंगा


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:32 AM 21/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Thursday 11 December 2014

Aai Gudiyaa (आई गुड़ियाँ) POEM NO. 210 (Chandan Rathore)


POEM NO. 210
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आई गुड़ियाँ
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छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ
आजा मेरे पास ओ !! मुनियाँ
कब तक तरसाएगी ये दुनियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

तू है मेरी छोटी सी बगियाँ
कोमल चंचल छोटी सी कलियाँ
सब दुःख से बचाऊ तुझको
तू है मेरी खुशियों की बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

तेरी किलकारी गूंजी थी जब मै
खूब खुश था घर में अपने
अपनी खुशियाँ तुझे दे डालु
तू ही बस मेरी हर खुशियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

खेल रही आँगन में मेरे
खुश है चढ़ कर कंधो पे मेरे
स्कूल में नाम कमाया
घर में हाथ बढ़ाया
आज ग़र्व से कहता हूँ मै यारों
मेरे पास है परी सी बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ

बड़ी हुई देश चलाया
घर वालों का मान बढ़ाया
देश परदेश चर्चे उसके
हँस के सब ने सम्मान जताया
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

आज बिटियाँ का ब्याव रचाया
छम-छम करती जाती बिटियाँ
अगले घर को जाकर और घर बसाया
2 -2  घर का भार संभाला
फिर भी माँ-पिता का हाल संभाला
ऐसी होती है बिटियाँ
छम- छम करती आती बिटियाँ
झर-झर आँसू बहाती बिटियाँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:44pm, Thu 17-04-2014 
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 10 December 2014

Roti Ki Laachari (रोटी की लाचारी) POEM NO. 208 (Chandan Rathore)



POEM NO. 208

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रोटी की लाचारी
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छुप रहे अत्याचारी
खा रही रोटी की लाचारी
बंद हुआ अन्न पानी
भूख से जनता परेशान बेचारी

धान उगाता देश यहाँ
फिर भी इतना महंगा है
क्या बयां करू चंद शब्दों में
किसानों की लाचारी

2 समय के खाने को
कितना तरसना पड़ता है
भाग भाग पूरा दिन काम किया
फिर रात बिन खायें सोना पड़ता है

ये देश हुआ परदेश अब तो
जहां लोकतंत्र की मारा मारी है
गरीब के घर में रोटी की कितनी लाचारी है

2 बच्चे खायें 1 पिता खा जाए
माँ आज भी भूखी सोती है
देश की सरकार का क्या कहुँ
आज मेरी धरती माँ ये सब देख कर रोती है

भूख सहन करना वो क्या जाने
जो लोगो के धान खा जाते है
इधर बटाया ध्यान
उधर इंसान नोच लिए जाते है

भूख का क्या कहना
वो भी तो किस्मत की मारी है
कैसी आज रोटी की लाचारी है

कौन कहे कौन सहे सब के मुह बाँध दिए जाते है
ऐसी भूख है आज इंसान इंसान को खा जाते है

खाने को तो खा रहे
घुस, चारा, अमर शहीदो की जमीं तक को
भूखा सोता मेरा देश
फिर भी खाना पहुँचता परदेश
खाने के लिए यहाँ तो पेट्रोल तक पि जाते है

बिन कहे सब कह दूँ
देश की आवाज भी कह दूँ
आज हर इंसान की ये किलकारी है
आज हर घर में रोटी की लाचारी है



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:02pm, Thu 17-04-2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 5 December 2014

Saath Hote Tum (साथ होते तुम) POEM NO. 206 (Chandan Rathore)


POEM NO. 206
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साथ होते तुम 
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ख़्वाबों की सीढ़ियों में कितनी कशिश है
महोबत की राहों में पता नही कितनी बंदिश है

अगर-मगर इधर-उधर बहता हूँ पानी की तरह
और एक महबूबा के इज़हार की आस की रंजिश है

दीवाने हो मेरे या मुझको बना रहे हो दीवाना
प्यार में अपने तुम्हारी कसम कितनी सादिसे है

हो मेरे या फिर हो किसी अनजान के जिंदगी के मांजी
सुन तो लो महोबत तुम्हारी कितनी बेखौफ सी है

रुक ना जाते किसी राह पे तो साथ होते तुम
मेरे हर राज के राज भी होते तुम
बोलता मै और मेरी आवाज होते तुम
कितने हसीं होते वो लम्हें प्यार के
जिन लम्हें में साथ होते तुम

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:01 PM 13/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 1 December 2014

Rajputaa Ro Maan Kate (रजपूता रो मान कटे) POEM NO. 205 (Chandan Rathore)


POEM NO. 205

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रजपूता रो मान कटे
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रजपूता रो मान कटे है
वो जाति रो सम्मान कटे है
अंग्रेजी सरकार नोच लिया रजपूता ने
वो गढ़,ठिकाना रो मान कटे है

राजा वेता महल वेतो
वो तिलक, साफा और तलवार रो
महत्त्व वेतो

तलवार अब चाक़ू वेगी
साफा अब टोपी वेग्या
वा रजपूता री शान कटे 

रजपूता रे राज लिखियों हो
आज तो सब रे काज लिखियों है
कटे तो रजपूता री अपार शान है
पर बिछड़िया रजपूता रो मान कटे

आज दौड़ रिया है अंग्रेजा रा पहनावा में
राजस्थान रा लहरिया रो अब मान कटे
थोड़ा हमझो अपनी शान, अपनी पहचान ने
अपना रीति-रिवाज ने, अपना पहनावा ने
अरे!! आपणी राजस्थानी बोली रो आज सम्मान कटे

धड़ कटायो राजपुताना रो मान बधायो (हाड़ी रानी)
राजपुताना ख़ातिर घास-फुस रो रोटो खायो (महाराणा प्रताप)
आज मोबाईल संगी साखी वेग्या
SMS रा जमाना माईने कई लोग दीवाना वेग्या
अरे !! राजपुताना री भाषा रो वो सम्मान कटे 

नई विचित्र साड़ियाँ आगी
वो रजवाड़ी बेस रो श्रृंगार कटे है
राजपुताना ख़ातिर कई वीर
लड़ता-लड़ता अंग्रेजा सु अमर वेगया
नई पीढ़ी री बात कई करू
वो तो होता ही अंग्रेज वेग्या

देश घुमलो, प्रदेश घुमलो
पर राजस्थान री बोली ने थे मत भूलों
अरे !! जि धुला में थे खेळिया हां
वो धुलो भी अटे रो सम्मान जनक है
थे आगे आओ सब ने आगे लाओ
अरे !! मारे राजपुताना रो मान अटे है 
रजपूता रो मान कटे है
अरे!! आपणी राजस्थानी बोली रो आज सम्मान कटे

जय राजस्थान
जय राजपुताना


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:03pm, Tue 01-04-2014
(#Rathoreorg20)
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