Saturday 25 January 2014

Kitna Andhera ( कितना अँधेरा ) POEM No. 150 (Chandan Rathore)


POEM NO. 150
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कितना अँधेरा 
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अंधकार सा जीवन
रजनी सा उपवन
सुबह ना होती यहाँ 
कितना अँधियारा , कितना अँधियारा 

लाल लाल मोती सी  चमक रही माणि 
चमक में खुद को खो रही रानी 
अब भा रहा कैसा ये अँधेरा 
कितना अँधेरा , कितना अँधेरा 

शान्त रहना चाहता हूँ 
दूर कही जाना चाहता हूँ 
अब तो भाता नही मुझे उजाला 
कितना अँधेरा कितना अँधेरा 

फुट फुट के रजनि  रोये
उसमें मेरी किस्मत रोये 
मै आराम करू फिर भी 
ऐसी मेरी किस्मत होये 
कितना अँधेरा, कितना अँधेरा 

अंधकार के अंधेपन में 
मै कही खो जाऊ 
याद रहे मेरे शब्द और मै गुम  कही हो जाऊ 
अब समेटा ना जाए ये बखेरा 
कितना अँधेरा , कितना अँधेरा 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

10:51am, Mon 16-09-2013

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Sunday 19 January 2014

Hunar Kho Raha Tha ( हुनर खो रहा था ) POEM No. 149 (Chandan Rathore)

POEM No. 149
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हुनर खो रहा था
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एक रोज कही मै खो रहा था
लिखने का मेरा हुनर खो रहा था
बर्दास्त नही हुई जब समय ने दी निराशा  कि राह
उस राह पे मेरा हुनर खो रहा था 

चलता रहा फिर भी ना रुका कभी 
मेरा वक्त मुझ पे हँस रहा था और मै रो रहा था 
उस वक्त मेरे यारों  मेरा हुनर खो रहा था 

इम्तिहानों  कि जड़ी सी लग गई थी 
हर काम मेरा गलत हो रहा था 
मै अपने दुःखो को सम्भाल  कर  ख़त्म हो रहा था 
इसी बिच मेरा हुनर खो रहा था 

मेरे विचारों का धुँवा कहीं  और बह रहा था 
मेरे सपनो का ढेर हो रहा था 
मेरा सारा अरमान जब नदी से नाला हो रहा था 
में रो रहा और मेरा हुनर खो रहा था 

एक वक्त ऐसा भी था मेरे जीवन में
मै  लिख रहा था और जमाना रो रहा था 
मै  कही चल रहा और जमाना किस और खिंच रहा था 
इस बिच मेरे यारों मेरा हुनर खो रहा था 


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

11:28am, Mon 16-09-2013

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Thursday 9 January 2014

Raat Koi Ho Aai (रात कोई हो आई ) POEM No. 148 (Chandan Rathore)


POEM No.148
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रात  कोई हो आई 
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अरमानो कि अंजुमन में 
मेरे दिल कि हर धड़कन में 
समा गई हो जैसे रात कोई हो आई 
रात कोई हो आई ( 2 )

बेकाबू  सा दिल है मेरा 
रात के बाद  ही तो सवेरा 
मिलो कि दुरी है तुमसे 
जैसे  रात कोई हूँ आई 
रात कोई हो आई 

हंसती महफ़िल में आता हूँ 
महफ़िल को रुला के जाता हूँ 
सुरज  नहीं जीवन में बस अँधियारा सहता जाता हूँ 
सही नही जाती अब तुझसे ये जुदाई 
जैसे रात कोई हो  आई 
जैसे रात कोई हो  आई

बिखरा पड़ा हूँ मै यहाँ 
तुझसे होकर के जुदा 
तुम छोड़  गये मुझ पे तन्हाई 
जैसे रात कोई हो  आई 
जैसे रात कोई हो  आई



आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

11:22am, Wed 11-09-2013

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