Tuesday 30 December 2014

Maa Bolu To (माँ बोलूँ तो ...) POEM NO. 216 (Chandan Rathore)


POEM NO. 216
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माँ बोलूँ तो ...
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माँ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है
तेरे बिन जी लू तो भगवान रूठ जाते है
कैसा ये मनोरम चेहरा है माँ
अगर कुछ बोलूँ तो आंसू  गिर जाते माँ

चिंता में हमेशा मे रहता
सब दर्द तुम क्यों सह लेती हो माँ
आँचल में छुपालों मुझको
दुनियाँ से अब डर लगता है माँ

रो रो कर पुकारू तुझको
ना चुप हूँ पाउ माँ
तेरी सूरत भोली लागे कैसे मुझे सम्भालू माँ
कुछ बोलता हु तो, आंसू गिर जाते माँ

कष्टों से तूने निकला
खुद भूखी रह तूने मुझे है पाला
आंसू बहा रहा हूँ माँ
तुझे बुला रहा हूँ माँ
कुछ बोलूँ तो, आंसू गिर जाते माँ

तेरी याद में बरसों बीते
कई राते हम भूखे सोते
अब दर्द किसे सुनाऊ माँ
नींद नही आती है अब तो
अपने हाथो पे सुला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आँसू गिर जाते माँ

माँ बिछड़ी सब बिछड़ा मुझसे
अब किस से आश लगाऊ माँ
माँ कहते कहते प्राण निकल जाए
बिन तेरे क्या करू इन प्राणो का माँ
भूख बहुत लगती है अब तो
अपने हाथ से खिला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है माँ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:13am, Sat 10-05-2014
(#Rathoreorg20)
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Sunday 21 December 2014

Kyo Bigada Mujhe (क्यों बिगाड़ा मुझे) POEM NO. 214 (Chandan Rathore)


POEM NO. 214
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क्यों बिगाड़ा मुझे
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ख़ुशी आज भी है
ख़ुशी कल भी रहेगी
मेरी हर आदत
तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

हँसी रहेगी चेहरे पर
आँखे नम सी रहेगी
डूब जायेगे एक दिन
साँसे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

लब्जो में गम है
इस दुविधा में हम है
कोई नही है दूर दूर तक
फिर भी आँखे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

तुम भूल जाओ "राठौड़" को
उसे अब जरुरत नही तुम्हारी
इतना सब कुछ कर दिया
अब क्या आदत समझू  तुम्हारी
मेरे हर लफ्ज कहते है
"क्यों बिगाड़ा मुझे"


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:26am, Tue 29-04-2014 
(#Rathoreorg20)
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Friday 19 December 2014

Armaan Jalte He (अरमान जलते है) POEM NO. 212 (Chandan Rathore)


POEM NO. 212
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अरमान जलते है
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कहती है सरकार हम किसी गरीब को भूखा नही सोने देंगे

खुशियाँ जलती है भूख बढ़ती है, लाचारी में बच्चों के हाथ जलते है
अरे !!!  नेताओं गरीबों के चूल्हे में तो  आज भी उसके अरमान जलते है

ख़ुशी नही दी तुमने तो दुःख क्यों बाटते हो
अरे !!! सरकार की अत्याचारी में गरीबों के शमशान जलते है

वोट मांगने आते घर घर फिर कही गायब हो जाते है
काम हो किसी इंसान के तो उसे इतना गुमाया जाता है
इतने चक्कर में गरीब के चप्पल तक घिस जाते है

ऐ सरकार हम राजा है हम तुम्हे चुनते है
तुम ये क्यों भूल जाते हो
हम नही होते तो तुम यहाँ नही होते
तुम ये क्यों भूल जाते हो
तुम्हारे सम्मान में गरीबों के सम्मान कई गुम हो जाते है

2 वक्त का खाना भी अब जहर सा लगता है
तुम्हारे इन हालातों को देख गरीब के आंसू तक रोते है
अरे !!! नेताओं गरीबों के चूल्हें में तो आज भी उसके अरमान जलते है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:18 PM 22/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Sunday 14 December 2014

Meri Kahani Meri Jubani Part 3 (मेरी कहानी मेरी जुबानी भाग 3) POEM NO. 211 (Chandan Rathore)


POEM NO. 211
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मेरी कहानी मेरी जुबानी भाग 3
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लिखते लिखिते जिंदगी और आगे बढ़ी
दुनियाँ से मुझे और ठोकरे खानी पड़ी

लिख लिख कर बयां करता रहा अपने अरमानों को
सुना सुना कर बताता रहा अपने जख्म में दुनियाँ को

पर अभी भी मंजिल बहुत दूर थी
धीरे धीरे कविताएँ आगे बढ़ती रही
काव्य सुमन, मौत-ऐ-कहानी
लिख कर सुना दी अपनी कहानी
कविताओं का शतक पूरा हुआ
अभी मुकाम से मेरा सामना ना हुआ

और एक नौकरी आई उसने मेरी अभी की आजीविका चलाई
कुछ होता नही था उन पेसो से फिर भी मेने उसे अपनाई
कभी पूरा महीना बिस्किट से निकल जाता तो कभी भूखा ही सो जाता
हर गम को ख़ुशी से जिया, हिम्मत ना होती तो कभी का मर जाता

कई दोस्त और इस राश्ते मिले जिन्होंने मुझे संभाला
मेरे अपनों ने मुझे मौत-ऐ-कहानी का भाग 2 लिखवा डाला

बहुत चर्चित भी थी, बहुत दुखद भी थी ये जिंदगानी
धीरे धीरे लेखकों का साथ हुआ, कुछ सीखा और सुन्दर हुई लेखनी

डेढ़ सो से दो सो हुई कविताएँ अब मेरी
कई गाने लिखे कई फ़साने लिखे सब याद थी मेरी
मुकाम ना हुआ हासिल मेरे शब्दों को
नया रूप दिया, नई गहराई भरी
फिर भी अकेला पण सताता है
सब से अलग रहने को जी चाहता है


जीवन बहुत कुछ सिखा रहा था
आता जाता हर शक्श मुझे समझा रहा था
पर मेरे सपने बहुत ही उच्य कोटि के थे
उन्हें पूरा करने के लिए मै सब दम लगा रहा था

पता नही कहा ले जायेगी ये कहानी मेरी
और कितनी बाकी है दुःख भरी जिंदगानी मेरी
एक दिन वो अलग हो गया जिसे रूह माना था
ऎसे रास्ते पे अलग हुआ जो पता नही कहा जाता था

आज भी कोशिश जारी है
दुनिया से निपटने की
बड़ी सिद्दतों से तमन्ना है
रो रो कर जज्जबात बताने की

कभी कई मुकाम आ जाते सामने
कभी मुकाम चुनना कठिन हो जाता
समाज सेवा का मन किया NGO की सोच मन में आई
पर पता नही क्यों यहाँ किसी के मन को ना भाई

कहानी फिर अधूरी रह गई
आगे फिर कभी सुनाऊंगा
आज से और ऊपर या पता नही निचे गिर जाऊँगा
पर हां मेरी कहानी मेरी जुबानी (भाग 4) आप को जरूर बताऊंगा


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:32 AM 21/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Thursday 11 December 2014

Aai Gudiyaa (आई गुड़ियाँ) POEM NO. 210 (Chandan Rathore)


POEM NO. 210
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आई गुड़ियाँ
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छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ
आजा मेरे पास ओ !! मुनियाँ
कब तक तरसाएगी ये दुनियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

तू है मेरी छोटी सी बगियाँ
कोमल चंचल छोटी सी कलियाँ
सब दुःख से बचाऊ तुझको
तू है मेरी खुशियों की बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

तेरी किलकारी गूंजी थी जब मै
खूब खुश था घर में अपने
अपनी खुशियाँ तुझे दे डालु
तू ही बस मेरी हर खुशियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

खेल रही आँगन में मेरे
खुश है चढ़ कर कंधो पे मेरे
स्कूल में नाम कमाया
घर में हाथ बढ़ाया
आज ग़र्व से कहता हूँ मै यारों
मेरे पास है परी सी बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ

बड़ी हुई देश चलाया
घर वालों का मान बढ़ाया
देश परदेश चर्चे उसके
हँस के सब ने सम्मान जताया
छम-छम करती आई गुड़ियाँ

आज बिटियाँ का ब्याव रचाया
छम-छम करती जाती बिटियाँ
अगले घर को जाकर और घर बसाया
2 -2  घर का भार संभाला
फिर भी माँ-पिता का हाल संभाला
ऐसी होती है बिटियाँ
छम- छम करती आती बिटियाँ
झर-झर आँसू बहाती बिटियाँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:44pm, Thu 17-04-2014 
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 10 December 2014

Roti Ki Laachari (रोटी की लाचारी) POEM NO. 208 (Chandan Rathore)



POEM NO. 208

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रोटी की लाचारी
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छुप रहे अत्याचारी
खा रही रोटी की लाचारी
बंद हुआ अन्न पानी
भूख से जनता परेशान बेचारी

धान उगाता देश यहाँ
फिर भी इतना महंगा है
क्या बयां करू चंद शब्दों में
किसानों की लाचारी

2 समय के खाने को
कितना तरसना पड़ता है
भाग भाग पूरा दिन काम किया
फिर रात बिन खायें सोना पड़ता है

ये देश हुआ परदेश अब तो
जहां लोकतंत्र की मारा मारी है
गरीब के घर में रोटी की कितनी लाचारी है

2 बच्चे खायें 1 पिता खा जाए
माँ आज भी भूखी सोती है
देश की सरकार का क्या कहुँ
आज मेरी धरती माँ ये सब देख कर रोती है

भूख सहन करना वो क्या जाने
जो लोगो के धान खा जाते है
इधर बटाया ध्यान
उधर इंसान नोच लिए जाते है

भूख का क्या कहना
वो भी तो किस्मत की मारी है
कैसी आज रोटी की लाचारी है

कौन कहे कौन सहे सब के मुह बाँध दिए जाते है
ऐसी भूख है आज इंसान इंसान को खा जाते है

खाने को तो खा रहे
घुस, चारा, अमर शहीदो की जमीं तक को
भूखा सोता मेरा देश
फिर भी खाना पहुँचता परदेश
खाने के लिए यहाँ तो पेट्रोल तक पि जाते है

बिन कहे सब कह दूँ
देश की आवाज भी कह दूँ
आज हर इंसान की ये किलकारी है
आज हर घर में रोटी की लाचारी है



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:02pm, Thu 17-04-2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 5 December 2014

Saath Hote Tum (साथ होते तुम) POEM NO. 206 (Chandan Rathore)


POEM NO. 206
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साथ होते तुम 
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ख़्वाबों की सीढ़ियों में कितनी कशिश है
महोबत की राहों में पता नही कितनी बंदिश है

अगर-मगर इधर-उधर बहता हूँ पानी की तरह
और एक महबूबा के इज़हार की आस की रंजिश है

दीवाने हो मेरे या मुझको बना रहे हो दीवाना
प्यार में अपने तुम्हारी कसम कितनी सादिसे है

हो मेरे या फिर हो किसी अनजान के जिंदगी के मांजी
सुन तो लो महोबत तुम्हारी कितनी बेखौफ सी है

रुक ना जाते किसी राह पे तो साथ होते तुम
मेरे हर राज के राज भी होते तुम
बोलता मै और मेरी आवाज होते तुम
कितने हसीं होते वो लम्हें प्यार के
जिन लम्हें में साथ होते तुम

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:01 PM 13/04/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 1 December 2014

Rajputaa Ro Maan Kate (रजपूता रो मान कटे) POEM NO. 205 (Chandan Rathore)


POEM NO. 205

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रजपूता रो मान कटे
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रजपूता रो मान कटे है
वो जाति रो सम्मान कटे है
अंग्रेजी सरकार नोच लिया रजपूता ने
वो गढ़,ठिकाना रो मान कटे है

राजा वेता महल वेतो
वो तिलक, साफा और तलवार रो
महत्त्व वेतो

तलवार अब चाक़ू वेगी
साफा अब टोपी वेग्या
वा रजपूता री शान कटे 

रजपूता रे राज लिखियों हो
आज तो सब रे काज लिखियों है
कटे तो रजपूता री अपार शान है
पर बिछड़िया रजपूता रो मान कटे

आज दौड़ रिया है अंग्रेजा रा पहनावा में
राजस्थान रा लहरिया रो अब मान कटे
थोड़ा हमझो अपनी शान, अपनी पहचान ने
अपना रीति-रिवाज ने, अपना पहनावा ने
अरे!! आपणी राजस्थानी बोली रो आज सम्मान कटे

धड़ कटायो राजपुताना रो मान बधायो (हाड़ी रानी)
राजपुताना ख़ातिर घास-फुस रो रोटो खायो (महाराणा प्रताप)
आज मोबाईल संगी साखी वेग्या
SMS रा जमाना माईने कई लोग दीवाना वेग्या
अरे !! राजपुताना री भाषा रो वो सम्मान कटे 

नई विचित्र साड़ियाँ आगी
वो रजवाड़ी बेस रो श्रृंगार कटे है
राजपुताना ख़ातिर कई वीर
लड़ता-लड़ता अंग्रेजा सु अमर वेगया
नई पीढ़ी री बात कई करू
वो तो होता ही अंग्रेज वेग्या

देश घुमलो, प्रदेश घुमलो
पर राजस्थान री बोली ने थे मत भूलों
अरे !! जि धुला में थे खेळिया हां
वो धुलो भी अटे रो सम्मान जनक है
थे आगे आओ सब ने आगे लाओ
अरे !! मारे राजपुताना रो मान अटे है 
रजपूता रो मान कटे है
अरे!! आपणी राजस्थानी बोली रो आज सम्मान कटे

जय राजस्थान
जय राजपुताना


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:03pm, Tue 01-04-2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 28 November 2014

Roti Rahi Chudiya (रोती रही चूड़ियाँ) POEM NO. 203 (Chandan Rathore)


POEM NO. 203
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रोती रही चूड़ियाँ
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टप टप आंसू गिरे, टूट कर धरा पे गिरे
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ

इधर उधर भागे, बड़ी बेचैन सी लागे
अब क्या बताऊ, रात भर सोती नही चूड़ियाँ

मन रोये बिलखे, सिसक सिसक कर आंसू छलके
अब क्या बताऊ, रात भर कुछ कहती रही चूड़ियाँ

खनक ना तो छोड़ दिया, वैराग्य मन में धर लिया
अब क्या बताऊ, रात भर चुप चाप बैठी रही चूड़ियाँ

ख़ुशी से सफ़ेद हुई, याद में फिर लाल हुई
अब क्या बताऊ, रात भर रंग बदलती रही चूड़ियाँ

कभी यहाँ गिरे, कभी वहाँ गिरे टूट टूट कर गिरती रही
अब क्या बताऊ, रात भर लहू लुहान होती रही चूड़ियाँ

बहती रही यादो मे, गुन-गुनाती रही रातों में
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

7:10 PM 18/03/2014
(#Rathoreorg20)
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Tuesday 25 November 2014

Anokhi Preet (अनोखी प्रीत) POEM NO. 202 (Chandan Rathore)


POEM NO. 202

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अनोखी प्रीत
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रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही
बिन कहे अजुबा बन जाऊ
कई ऐसी गीत, संगीत सही

उमड़-घुमड़ बादल का साया
बिन परछाई कुछ समझ ना आया
रज-रज निहारु, नित आंसू पी जाऊ
आंसू की धार उसकी संगी सखी

एक राज, राज सही देखे बिन काज नही
हम अकेले कब तक भागेंगे जब आप का साथ नही
नजर भर देख लू
भले वो मुमताज नही
रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही

काले कोयल सा मन लिए फिरू
सपनो की गढ़री मन में धरु
मन के काले पन को में पी जाऊ
भले ही उसमे मेरी मौत सही
रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

3:39 PM 16/03/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 10 November 2014

Uski Izzat (उसकी इज़्ज़त) POEM NO. 200 (Chandan Rathore)


POEM NO. 200
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उसकी इज़्ज़त
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वो अपनी इज़्ज़त आबरू लिए बिस्तर पर जम्हाइयाँ ले रही थी
मै उसके पास बैठ, उसकी आबरू को तक रहा था

वो सिसक सिसक कर अपनी आहें ले रही थी
और मै सिसक सिसक कर उन आहों को पि रहा था

खो कर सारे अरमानों के पहाड़ों को, वो रो रही थी
मै उन जज्बातों को, फिर से दिलाने के लिए रो रहा था

नामी शख्स की बदनामी हजार हुई आज वो तार तार हो रही थी
उस गुमनामी जिंदगी से ये बदनाम जिंदगी मिली आज मै फिर से खो रहा था

बेखौफ हुई तार तार इज़्ज़त मेरी, मेरा शरीर उन जालिमों के हाथ लहूलुहान हो रहा था
वो सो रही आज इज़्ज़त आबरू खो कर और मै उसके पास बैठकर बस रो रहा था

बस रो रहा था.......  बस रो रहा था ......


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

03:28am, Sun 02-03-2014 
(#Rathoreorg20)
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Sunday 9 November 2014

Tere Bin (तेरे बिन) POEM NO. 199 (Chandan Rathore)


POEM NO. 199
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तेरे बिन
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कही तो होगी वो नूरानी
बस होके प्रेम दीवानी
मदहोश होके राहों पे मेरी
गुम हो जायेगी उसकी इश्क़ की खुमारी

बिन उसके बरसते नही ये बादल
बिन उसके रंग नही है सावन में
बिन उसके खुशबु नही है फूलों में
अब तो आ जाओं मेरी उल्जी हुई पहेली
तुम्हे सुलजाने को भी कम है ये जिंदगानी

ऐतबार नही इस दुनिया से बिना तेरे सिवा
तू ख़्वाब ना बन जाए बस अकेला हूँ तेरे सिवा
मधु के जैसे मीठी बोली तुम्हारी
बड़ी सिद्दत से पालु जुदाई तुम्हारी

इतबार क्यों करती हो मुझसे बोलो तो सही
बिन तेरे ये आस्की,ये इश्क़, क्या बताओं तो सही
अब क्या क्या रो रो कर बताऊँ  तुम्हें
तुम्हारे बिन ये जिंदगी सुनी सुनी ही सही


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:01pm, Mon 17-02-2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 7 November 2014

HADA RANI ( हाडा रानी ) POEM NO. 198 (Chandan Rathore)


POEM NO. 198
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हाडा रानी
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बहुत पुरानी एक प्रेम कहानी थी
उस कहानी के किरदार एक राजा और रानी थी
प्यार उनका देख दुनिया उनकी दीवानी थी
विवाह रचा कर, एक नई कहानी लिखनी थी

एक सप्ताह विवाह को हुआ, यहाँ से नई कहानी थी
एक दुत आया संग पत्र लाया, उस दिन सुबह नूरानी थी
नैन मिले दोनों के, जैसे दोस्ती उनकी पुरानी थी
राणा राज सिंह का पत्र थमाया, उसमे युद्ध का संदेशा आया
बिन बोले ही बहुत कुछ हुआ जैसे प्रीत पुरानी थी

राजा ने रानी को देखा, उनके सिंदूर, मेहँदी, चेहरे को देखा
नव विवाहित रानी, उनके पेरो में लगे महावर की लाली वैसे के वैसे थी
कितना दुःखद होगा वो उनका दुखदाई बिछोह, सब की रूह सिहर उठी थी

युद्ध था हिंदुत्व का, युद्ध था हिन्दू बने रहने का
आंधी चली थी युद्धों की, अब राजा को भी राजपुताना की लाज बचानी थी

केशरिया बाना पहने युद्ध वेश में, रानी चोंक पड़ी वह अचंभित थी
शौर्य, पराक्रम और शत्रुओं का नाश यही तो राजपूतों की निशानी थी

आरती का थाल सजा, राजा के माथे तिलक लगा
"मै धन्य हुई ऐसा वीर पति पाकर राजपूत रमणीय इस दिन के लिए तो पुत्र को जन्म देती है"
ये रानी के मुख की वाणी थी

नवविवाहित राजा रानी कितनी मधुर उनकी वाणी थी
बोले राजा " तन मन धन किसी प्रकार का सुख ना दे सका प्रिये, क्या तुम मुझे भूल तो नही जाओंगी"

"ना स्वामी, अशुभ बातें ना बोलो मैं वीर राजपूतनी हूं, फिर एक वीर की अर्धांगिनी भी हूँ"
रानी की अति मधुर वाणी थी

राजा ने  घोड़े को ऐड़ लगाई, विदाई की भी अजब कहानी थी
राजा युद्ध भूमि में जा भिड़ा, उड़ा कर राजपुताना का बीड़ा
राजा रानी को रोज संदेशा भेजे "मै जरूर आऊंगा तुम मुझे भूल ना जाना"

युद्ध का तीसरा दिन था, आज फिर संदेशा रानी को भेजा
लिखा "तुम्हारे रक्षा कवच के प्रताप से शत्रुओं से लोहा ले रहे है, पर तुम्हारी बड़ी याद आती है, पत्र वाहक द्वारा अपनी कोई प्रिय निशानी अवश्य भेज देना, उसे देख कर मै मन हल्का कर लिया करूँगा"

पत्र पढ़कर रानी करें विचार 
युद्धरत पति अगर करें मेरी पुकार 
नेत्रों के सामने बस मेरा मुखड़ा हो 
तो राजा शत्रुओं से विजय नही कर पायेंगे
और राजा की हार राजपुताना की भी होगी हार 

विजय श्री का वरन करने को देती हूँ अंतिम निशानी
सेनापति ले जाकर देना ये पत्र और वस्त्र से ढकी हुई निशानी

रानी ने पत्र लिखा
"काट कर सब मोह बंधन
भेज रही हूँ अंतिम जीवन
आप राजपुताना के लिए कर्तव्यरत रहना
मै चली स्वर्ग को अपना कर्तव्य भूल ना जाना
कमर से निकल तलवार, धड़ से अलग किया सिर चला कर तलवार"

सिपाही के नेत्रों का सैलाब उमड़ पड़ा
कठोर कर्त्तव्य धर्म था सिपाही का
हाडा रानी का सिर, स्वर्ण थाल पे सझाया
सुहाग की चूनर से उसने रानी के सिर को ओढ़ाया
भरा मन लिए दौड़ पड़ा  युद्ध भूमि की और
राजा स्तब्ध हुआ, सिपाही क्यों अश्रु बहता
राजा कुछ समझ ना पाया, उसने थाल से पर्दा हटाया
फटी आँखों से देख रहे राजा, मुँह से बस इतना निकला है रानी
संदेही पति को ये क्या सजा दे डाली, खेर मै भी तुमसे मिलने आ रहा हूँ रानी

"राजा मांगी निशानी
सिर काट दियो क्षत्राणी"

विजय हुए राजा भाग खड़ा हुआ ओरंगजेब पर ये जीत का श्रेय किसे जाता है | राजा को, या राणा राज सिंह को या फिर हाडा रानी को या फिर अनोखी निशानी को

नोट
राजा : सलूम्बर के राव चुण्डावत रतन सिंह जी
रानी : कोटा के हाड़ा शासकों की पुत्री हाडा रानी 
राणा : राणा राज सिंह जी

ख़त्म हुई कहानी वो तो हाड़ा रानी थी


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:25am, Sat 08-02-2014
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 5 November 2014

Natkhat MANWA ( नठखट मनवा ) POEM NO. 197 (Chandan Rathore)


POEM NO. 197
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नठखट मनवा
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मन की गति में दौड़े जाये बेला
उछल कूद करता जाए मनवा छेला

मनवा कोयल सा गीत गाये सुरीला
मन की इच्छाओं की तीव्र गति से बढ़ती मधुबेला

वैरागी सा मनवा गुमे अकेला
कूट नीतियों से भरा है मनवा मेला

मनवा की गाथा गाये कोकिला
अहम् , अहंकार से बहता मनवा रेला

लक्ष्मी देख मनवा बनता खर्चीला
बिन लक्ष्मी के इधर उधर भटकता अलबेला

मनवा ना माने किसी की, वो बहुत हटीला
अपार विचारों को आग पे, जलाता मनवा पतीला

थक कर मनवा, जाता मधुशाला
पी कर मधु,खुशियाँ मनाता मनवा अकेला

खुशियों में झूमे मनवा छेल-छबीला
उछल-कूद करता जाए मनवा छेला


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:05am, Sat 08-02-2014 
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Sunday 2 November 2014

B L A C K ( अँधेरा ) POEM NO. 196 (Chandan Rathore)



 Poem no.196
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अँधेरा (B L A C K)
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बेकसूर सा रंग
कई उसमे उमंग
अँधेरे के संग
खुद में मलंग

काल का काला रंग
मिलों लम्बी सुरंग
बिना सुर का सारंग
गुमनाम सा स्वर्ग


इठलाता हुआ स्वांग
नशे से लुप्त भांग
जीत की हजारों तरंग
जिंदगी उसके बिना बेरंग

जीवन पे दाग
उजाले का सुहाग
काले रंग पे बेदाग़
अँधेरे में लगी जैसे आग

मुश्किलों में मुश्किल
सवालों में सजकता
अपने अंतर्मन में
जलता हुआ चिराग

बस ये ही है अँधेरे की कहानी
अँधेरा जीवन की मनमानी
बंद आँखों में फिर नई सोच
उछल-उछल कर दुनिया की खोज

बस मौत नही जीवन सही
अँधेरे  की खोज उजाला है
वो उस से मिला नही
एक एक कतरा कतरा है
अँधेरा बस अँधेरा है
अँधेरा बस अँधेरा है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:42pm, Wed 05-02-2014
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Saturday 1 November 2014

Dohawali Part 1 ( दोहावली भाग 1) POEM NO. 195 (Chandan Rathore)


POEM No. 195
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दोहावली भाग 1 
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साईं भरोसे राठौड़ है, साईं ही उसका पालन हारा
पुरे जग में है नाम साईं का , फिर तू क्यों फिरे मारा मारा  || 1 ||

गुरु की वाणी बोलिए, गुरु करे सो ना कर 
एक दिन तर जाएगा, गुरु कहे सो कर  || 2 ||

प्रेम व्यवहार सब जूठ है, इन से मोह ना कर
मोह रखे सब तुझसे, ऐसा काम तू कर || 3 ||

शब्दों का तू तोल रख, शब्द बड़े अनमोल 
बुरे शब्दों का कोई मोल नही , अच्छे शब्द ही तू बोल || 4 ||  

बड़े जो आये पहले तो, बड़े ना कोई होय 
काम करे जो बिन स्वार्थ के, बड़े वो जग में होय || 5 ||

अच्छी कला कलाकार की, बुरी कला सरकार की 
तूने जो पहचान ली तो, फिर तुझे फ़िक्र किस बात की || 6 ||

मन में उमड़े भाव तेरे, लिखने मै  तू दक्ष होय 
हो रही वैरागी दुनिया, तू क्यों उनके लिए रोय || 7 ||

मनडी मटकी फूटे गई, मनडे में ना कोई समाय
अब समझ ले  बात पते की, कुछ भी साथ ना जाय  || 8 ||

मौत ना ढूंढे पाटनर, मरने वाला ना संग ले जाए
जी कर कुछ भी ना किया रे बंधे, अब मौत में क्यों समय लगाय || 9 ||

बिन काठी कट ना पायेगी, बिन काठ के कैसे तू मर पाये  
काठ जले तो तू जले , वार्ना अध जला ही रह जाए || 10 ||


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

02:48pm, Tue 04-02-2014 
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Friday 17 October 2014

Betiya To Betiya he ( बेटियाँ तो बेटियाँ है ) POEM NO. 194 (Chandan Rathore)


POEM NO. 194
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बेटियाँ तो बेटियाँ है 
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बेटियाँ तो बेटियाँ है 
कच्ची कच्ची मटकियाँ  
टूट जायेगी एक दिन 
दिल अगर जो उनको तोडा है 

बिटियाँ रानी नदी सुहानी 
मीठे पानी की गंगा है 
छोड़ बाबुल की बगियाँ 
उसे पिया संग होना है 

राखी का अटूट रिश्ता है बेटियाँ 
लक्ष्मी, दुर्गा,सरश्वती है बेटियाँ 
मन की डगरी सुनी हो जाती है 
जब छोड़ के जाती है बेटियाँ 

कोमल मुलायम हाथों वाली 
मनमोहक मनोरम रूप वाली 
सुने घर की आवाज है बेटियाँ 
परिवार का निर्माण है बेटियाँ 

बेटी एक धर्म है 
भाई की बहन है 
माँ की सहेली है बेटियाँ 
पिता की प्यारी होती है बेटियाँ 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:49 PM 04/02/2014
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Wednesday 15 October 2014

Inshan Rahne Do ( इंसान रहने दो ) POEM NO. 193 (Chandan Rathore)


POEM NO. 193
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इंसान रहने दो
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कहते है आज हम उन भष्ट नेताओं से
ना बनाओं हमें जालिम हमें इंसान रहने दो

करो ना अत्याचार हम गरीबों पे
बोल तो हम भी बहुत सकते है पर हमें मोन रहने दो

उठती लोह हमारे भी सीने में
जब भाव बढ़ जाते आसमान में
हमें ना बनाओं हैवान हमें किसान ही रहने दो

देख रहे सत्ता की बागडोर कैसे डग-मगा रही है
सभी पार्टी आज आम आदमी को खा रही है
नेता मत बनाओं हमें, हम इंसान है हमें इंसान रहने दो

महंगाई, अत्याचार, दुर्वव्हार सब हमारे लिए
राज करने वाले क्या जाने दो वक्त का खाना कैसे बनता है
अमीरी की चाहत नही है मन में पर कम से कम गरीब तो रहने दो

मत बनाओं हमें हैवान जो खाने के लिए
इस सभ्य समाज में आतंक फैलाये
हमें नही बनना कोई आतंकी बस हमें इंसान ही रहने दो


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:42 PM 03/02/2014
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Friday 26 September 2014

Naa Pucho Is Diwane Se ( ना पूछो इस दिवाने से ) POEM NO. 192 (Chandan Rathore)


POEM NO.192
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ना पूछो इस दिवाने से 
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तन्हाई के मंझर पर गुझर रहे हो आप
तनहा खुद होकर भी हमसे पूछ रहे हो आप

हम क्या बताये आप की तन्हाई का मंझर
सब कुछ पास होके भी मेरे दिल है बंझर

तुम्हारे सवालों के जवाब आज भी मिलते नही
बता तो सब दे पर ये दिल गवा देता नही

ना पूछो अब इन हवाओं से की हम आज भी तुम्हारे है
ना पूछो इस ज़माने से की आज भी मेरे सपने तुम्हारे है

ना पूछो इस महखाने से की रोज शाम को ये सजती क्यों है
ना पूछो उस जलती हुई समा से की वो आज भी जलती क्यों है

अगर पूछे वो किसी से भी तो
कुछ ना कहना, चाहे मेरी जान जाए
अगर किसी ने कुछ भी कह दिया तो
उनके आँखों में आशुँ ना आ जाए

तनहा नही होते ऎसे रूठा नही करते
मेरे दिल का हाल भी ऐसा ही है बस
ना पूछो इस दिवाने से
ना पूछो इस दिवाने से 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:14 PM 03/02/2014
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Monday 22 September 2014

Puncho Naa Mera Haal ( पूछो ना मेरा हाल ) POEM NO. 191 (Chandan Rathore)


POEM NO. 191
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पूछो ना मेरा हाल
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तुम पूछो ना मेरा हाल मै ठीक हूँ
तुम करो ना मेरी परवाह मै मस्त हूँ

तुम भरी महफ़िल में छोड़ के गई
फिर भी तेरी याद के साथ जिन्दा हूँ

तुम भूल जाओ मगर मै कैसे भुलु तुम्हें
तुम मेरी रूह-रूह में बसी हो ये तुम्हें क्यों कहु

मै दीवाना तू बेगानी, मै परवाना तू अंजानी
मै शायर सही तू मेरी शायरी, चला जीने पर तू ही तो मेरी जिंदगानी

सोच रही होगी ना आज फिर तेरी याद मेरे जहन में क्यों आई
ओ!!! परवानी पूछा ना हाल मेरा मै तो अभी भी जिन्दा हूँ

जीना मुझे आता नही, मरना मै चाहता नही
अब तू ही बता मै कैसा हूँ
पूछो ना मेरा हाल मै तो बस तेरे लिए जिन्दा हूँ
बस तेरे लिए जिन्दा हूँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:54 AM 03/02/2014
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Thursday 18 September 2014

Tere Bager Me ( तेरे बगैर मै ) POEM NO. 190 (Chandan Rathore)


POEM NO. 190
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तेरे बगैर मै
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तेरे बगैर मै, कैसा लगता हूँ
तेरे सिवा मन मेरा लगता नही

तेरे बगैर सुना ये मंझर
तेरे लिए मै हूँ ही नही

कैसे सम्भालू अपने आप को ओ !! जालिम
जब तेरे बगैर पूरा में हूँ ही नही

इतने गम सहते हुए भी जिन्दा हूँ क्यों
तू क्या जाने मेरे जज्बात तू अब ताक समझी नही

ढूंढ रहा हूँ मै मेरे जख्मों के सवाल
दुनिया पूछे मुझे की अब तक वो तुझे मिली क्यों नही

तेरे बगैर मै अब कैसे जी रहा हूँ
तेरे बगैर मै कुछ भी नही 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:48 AM 03/02/2014
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Monday 15 September 2014

Faasle (फासले) POEM NO. 189 (Chandan Rathore)


POEM NO. 189
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फासले
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इन मिलो के फासलों को कैसे कम करू
हो रही है शाम खुशियों की इस शाम को कैसे खुश करू

ये सारी हवाएँ आती है मेरी 
मै किस किस हवा से सामना करू

देखता हूँ मै जब तेरी सूरत को
चला जाता हूँ मै मीलों दूर

सूरज को पकड़ ना पाता हूँ
पर चाँद से दूरी कैसे कम करू

छोड़ दिया तुझे भूल भी गया तुझे
पर तेरी इन यादों को कैसे कम करू

तुझे माना मेने अपना सब कुछ
अब तू ही तो बता तुझसे फासला कैसे करू 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:51 PM 01/02/2014
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Saturday 13 September 2014

Bah Gai Khwahish ( बह गई ख्वाहिश) POEM No. 188 (Chandan Rathore)


POEM No. 188
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बह गई ख्वाहिश
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उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश

स्वप्न की बेला में
हर दम अकेला में
दुःखों की सैया पे
खुशियों की नुमाइश

धिक्कार सा जीवन
मन चंचल सा
रोज नवीन उत्पात मचाता
नव मन क्रीड़ा की होती यहाँ फरमाइश

उछल-उछल कर दौड़ता जाता
मन इक घोडा है
एक उपवन में ना समाता
मन शांत करने की है फरमाइश

उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:43 PM 01/02/2014
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Monday 8 September 2014

Vidai Shiksha (विदाई शिक्षा ) POEM No. 187 (Chandan Rathore)


POEM NO. 187
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विदाई शिक्षा
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छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें याद तू रखना
तुझे अब पिया घर रहना
बंध चली सात फेरों में तेरी जिंदगानी
ख़ुशी ख़ुशी पिया संग रहना

सास ससुर को पिता माँ सा देना तू सत्कार
ननद को रखना तू दिल के पास
हर दम पिया कहे चलना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना

भूल हो जाए भूल से तो माफ़ी में ना चूकना
अपने कूल की मर्यादा को हमेशा बनायें रखना
छोटे हो तुझसे उनको हर दम सही राह दिखाना
बड़े बुजुर्गो की सेवा में अपना समय बिताना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना

सर ऊँचा हो पुरे परिवार का इस राह पे चलना
कोई कहे भला बुरा तो उसे पानी के गुठ सा पी जाना
अन्याय हो अगर तुझ पे तो उस बात को कभी ना आगे बढ़ाना
नेकी, साहस, समझदारी से अपना परचम लहराना

निंदा, भय, कष्टों से तू ना घबराना
आग में तपती है नारी ये भूल ना जाना
अच्छी बेटी है तू अब अच्छी बहु बन के दिखाना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना 

कुछ भी कष्ट हो हर दम मुस्कुराना
पति की सेवा ही पहला धर्म है, ये भूल ना जाना
अगर पति गलत राह पकड ले तो तू सही राह दिखाना
धीरज, संतोष से अपना धर्म निभाना
सब सोये हो सुबह तू जल्दी उठ जाना
सब के लिए स्वादिष्ट भोजन तू पकाना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ !! बहना
कुछ बाते याद तू रखना

दूल्हे राजा सुनो तुम भी क्या क्या धर्म निभाना है
काम काज का लेखा-जोखा सब अर्धांगिनी को भी बताना है
देश विदेश जाओ तो धर्मपत्नी को भी साथ ले जाना है
अब तक थे अकेले आज दो जान एक हुई हर दम साथ निभाना है 

खुशियाँ ही खुशियाँ हो अब दोनों के जीवन में ये दुआएँ हम करते है
ओ !!! दूल्हे राजा जी अब अच्छे कामों में दिल लगाना है
याद रहे नोक-झोक चलती रहे पर पत्नी का दिल ना दुखाना है
दूल्हे राजा तुम्हें भी ये सब धर्म निभाना है 

मुसीबत आन पड़े कोई तो दोनों को मिलकर निपटाना है
बन के दो बगियाँ के फूल तुम्हें संसार चलना है
दूल्हे राजा हो आप सब काम जट से निपटाना है
राजा की रानी को अब हर सुःख दे कर उसी संग चलना है 
छोड़ चली बाबुल का घर ओ !! बहना
ये सब बातें याद तू जरूर रखना 

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:55am, Sat 01-02-2014 
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Sunday 7 September 2014

Lot aa Maa ( लोट आ माँ ) POEM No. 186 (Chandan Rathore)


POEM No. 186
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लोट आ माँ
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जब पुकारा मेने भगवान को, तो होती सामने माँ
दर्द में जब रो रहा होता हूँ तो, सहला रही होती है माँ

दूर जा कर तुझसे खोया रहता हूँ
कोई ना दिखता मुझे पास तो, तू होती साथ माँ

आँशु की हर किलकारी तुझे पुकारे
बिन मंदिर के भगवान है माँ

आज यादों में तुम हो मेरे
आज अपनी गोदी में सोने दो ना माँ

खो गया रास्ता, ख़त्म हुआ सब से वास्ता
अब हर पल हर गड़ी याद आती हो माँ

माँ माँ पुकार रही है साँसे
छूट ना जाए ये प्राण अब तू जल्दी आ माँ

मै खो गया इस दुनिया की भीड़ में
अब तेरे सिवा कोई रास्ता ना बचा
अब तू ही मुझे बता क्या करू मै माँ

रूठ के गई मुझसे तू अब लोट कर आ ना
रोते रोते तुझे पुकार रहा है तेरा बेटा माँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

07:07pm, Thu 30-01-2014
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 3 September 2014

Aaj Jina Mushkil He ( आज जीना मुश्किल है ) POEM No. 185 (Chandan Rathore)


POEM NO. 185
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आज जीना मुश्किल है
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अमीरों के लिए सविंधान है
गरीबों के लिए समशान है

बेच दिए घर के बर्तन
फिर भी भूखे सोते है
हमारे जलाने को लकड़ी भी नहीं
वो मखमल के बिस्तर पर सोते है

भेदभाव इतना है की खाना मुश्किल होता है 
रोती बिलखती माँ अब ये कहती है
भूखे बच्चों को सुलाना मुश्किल होता है

मेहनत कर कुछ कमा के लाते है
एक एक रोटी के लिए पुरे जग से लड़ना भिड़ना पड़ता है
होती शांत ना उदर पीड़ा अब इस कलयुग में
आज मरना आसान और जीना मुश्किल लगता है

चिंतित व्याकुल पिता रोता है चोरी-चोरी
माँ सिसक-सिसक कर चूल्हें में अरमान जलाती है
ये पीड़ा है बस रोती की जो हर
गड़ी सहना पड़ता है

आज गरीब के मुँह में निवाला नही
अमीरों के घर खाना फिकता है
उन भूखे बच्चों को आज जीना मुश्किल लगता है 

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

02:03pm, Sun 26-01-2014 
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Friday 29 August 2014

Shis Kata Kar Ke ( शीश कटा कर के ) POEM No. 183 (Chandan Rathore)


POEM NO. 183
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शीश कटा कर के
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माँ ने भेजा नत मस्तक तिलक लगा कर के
बेटा आता है अपना शीश कटा कर के

भेजा था उसे सीमा पे पुष्प माला पहना कर के
आज आया है सीमा पे जान गवाँ कर के

खुशियाँ थी अपार उसको जब गाड़ी मे बिठाया था
आज दुःखी है देश सारा जब गाड़ी से उसे उतरा था

मन प्रफुलित था जाते वक्त सीमा पे
आज एक और माँ ने बेटा न्योछावर किया अपनी धरती माँ  पे

खुशियाँ मनाता दुश्मन आज जीत का जशन मना के
एक और बेटा घर आया अपना शीश कटा कर के

आज रो रही अर्धांगिनी फूट-फूट कर अपना सिंदूर हटा कर के
सिसक-सिसक  के रोये पिता अपने हाथ  गवाँ कर के 

मंझर गमगीन हुआ सेना में मातम छाया है
दुखी हुई भारत माँ आज फिर अपना एक और लाल गवाँ के

खुद चढ़ गया मौत के घाट तुम सब को बचा कर के
छोड़ गया अपार सन्देश खुद सीने में गोली खा कर के

उठो रे जवानों दुश्मन को पहचानों बढे चलो हाथ में असला बारूद उठा कर के
ख़त्म करो उसको जो खुश है आज एक लाल को मौत के घाट उतार कर के

खाली ना जाए उस माँ की दुआँ जो रो रही है घर के चिराग को खो कर के
ख़त्म करो आतंक को जो खुश है चंद साँसे संजो कर के

लाश उठा रहा है उस बेटे की जिसे काँधे पे कभी खिलाया था
कमजोर हुआ वो पिता अपने कंधो को खो कर के

देश की आवाज ये कहती है कब तक बैठोगे खामोश होकर के
अब तो जागो एक और बेटा आया अपना शीश खो कर के 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

07:32pm, Thu 16-01-2014  
(#Rathoreorg20)
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Sunday 24 August 2014

Bhed Mita Do (भेद मिटा दो) POEM No. 182 (Chandan Rathore)


POEM No. 182
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भेद मिटा दो
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जिन झुग्गी-झोपड़ियों में जो गरीब रहते है
उधर जाकर ये अमीर फोटो खिचवा के आते है
दान धर्म करके वो न्यूज़ मे आना चाहते है
दान करो पर नाम ना करो दान के नाम पर नाम करवा के आते है

हिम्मत हो एक घर को अपने घर सा पालो
उन गरीब बच्चों को अच्छे स्कूलों मे डालो

जिनके माँ बाप नही है उनको अपना वंश बनालो
बस गरीब अमीर का ये भेद मिटा लो

अपने साथ ना सही अपने जैसा खाना खिला दो
उन निराशावादियों के मन मे थोड़ी आशा जगा दो

दान धर्म करने का ऐसा छोटा सा बोझ उठा लो
फिर कही जाके उन छोटे-छोटे चेहरों की मुस्कान का फोटो खिचवालों

बस गरीब को आगे बढा दो
अमीर-गरीब का बाँध मिटा दो


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

03:24pm, Sun 12-01-2014  
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 20 August 2014

Tera Jikr (तेरा जिक्र) POEM No. 181 (Chandan Rathore)


POEM No. 181
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तेरा जिक्र
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लिखने जो लगा तो ख्याल में बाँधा तुमने
इन सजे-धजे शब्दों को दिल से निकाला तुमने

यु जिक्र तेरा जब महफ़िल में आता है
सब हँसते है और ये दिल भर आता है

तेरी गैर मौजूदगी आज भी खलती है
तेरे प्यार की पुरवाई आज भी दिल में चलती है

यु रुख़्सार हुआ करता था तुमसे कभी
अब तो तेरा ही जिक्र अल्फाजों में निकलता है

सुन ले ऐ हसी तू रखना ख्याल अपना
मुझ से अब मेरी जिंदगी भी ना संभालती है

तेरे जिक्र की जब बात आती है
मेरे सुने से आँगन में शब्दों की बाढ़ आ जाती है

तेरी फ़िक्र तेरा जिक्र है अब जहाँ मै मेरे
मेरा दर्द और तेरा जिक्र अब कागज पर बिखरते है 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

09:53pm, Sat 11-01-2014 
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Thursday 7 August 2014

Tu Kar Ibadat ( तू कर इबादत ) POEM No. 180 (Chandan Rathore)


POEM No. 180
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तू कर इबादत
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तू कर इबादत मेरी लाश को कुत्ते खाए
लगा कर मुँह पे खून मेरा वो तेरे पास आये

तू कर आज इबादत मेरी अर्थी जल्द ही सज जाए
नुरे नजर इतेफाक से तेरा निकाह उसी दिन हो जाए

तू कर तेरे आका से रहमते तेरी रूह की
मै करू सजका अल्लाह का और मेरी रूह भी तेरी हो जाए

तू कलमा पढ़े तेरे शौहर का की उससे कोई गुनाह ना हो जाए
मेरी दुवा अगर उससे कोई गुनाह हो तो सजा-ऐ-मोैत मुझे आ जाए

मुहोबत-ऐ-सुकून की मांगी थी मुराद मेने
तुमने मेरी जोली में रख दी नूरानी जायदात

तू कर इबादत की अगली सांस ना लू मै
अगर लू तो बस तेरा ही नाम मेरे लबो पे आये

इश्क़ प्यार तो रब की जायदात है
तू कर इबादत मेरी लाश को भी प्यार ना मिले
या रब उसकी सुनना मरने से पहले ही सारे जज्बात मुझे मिल जाए

तू कर इबादत मुझे कब्र की भी जगह ना मिले
मान जाए खुदा तेरी दुवा तो तेरे साथ कब्र भी मिल जाए

तू कर आज इबादत की मै खुशियों के लिए रोऊ
सुन ले खुदा तो हम तुम्हारे दामन में फुट-फुट के आँसू बहायें  

तू कर ले लाख कोशिस खुदा को मनाने की
मान जाए वो खुदा तो मुझे मोैत आ जाये

होश नही है मुझको की क्या लिखा और क्या पढ़ रहा हूँ मै
बस तू इबादत कर मोला से ......
बस तू इबादत कर मोला से ......


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

06:47pm, Wed 08-01-2014 
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Wednesday 30 July 2014

Navvarsh 2014 ( नववर्ष 2014) POEM No. 179 (Chandan Rathore)


POEM No. 179
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नववर्ष 2014
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नव दीपों की नव लोह जल रही है नयारी
जो सब आज यहाँ उपस्थित है उनका मै बहुत आभारी

कह रही समय की चिड़ियाँ बारी-बारी
अब 2013  तो  गया अब 2014  की बारी

कट गए या काटे गए थे वो पल
आ निकले फिर भी जैसे फूलों की हो क्यारी

मन की गति आज समय से भारी
उत्पीड़ा,वैराग्य से निकल गई एक और  हमारी

आज शुभ दिन है नववर्ष का करेंगे नई आज बात
भूल जाओंगे आप सब मुझे भी 2013 की तरह (2)
रह जायेंगी बस मेरी याद

2013  तो तेरा था अपना कुछ नही हाथ
2014 की गिनती तो देखो आते ही दे दिया साथ

भूल कर पिछली भूलो को आज करे नई शुरुवात
आओ मिलकर हम सब करे नववर्ष का नया आगाज

आओ सब मिलकर करते है 2013  की आज अंतिम विदाई
सब को राठौड़ की तरफ से नववर्ष की कोटि-कोटि बधाई 

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

8:52 PM 30/12/2013 
(#Rathoreorg20)
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Friday 25 July 2014

Jindgi Raas Naa Aai ( जिंदगी रास ना आई ) POEM No. 178 (Chandan Rathore)


POEM NO. 178
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जिंदगी रास ना आई
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मन की मती कहा ले आई
मुझको मेरी जिंदगी  रास ना आई

शब्दों के जंजाल में हूँ कही
एक भी लहर एक सांस में ना आई

रूबरू हुआ जख्मों से हर दम
मुझे किसी भी पल ख़ुशी ना आई

एक चाँद को देखता था मै अकेले बैठ कर
पर उसे भी मेरी निहारने की अदा ना भाइ

आहट आती है कई की सम्भालो राठौड़
पर राठौड़ की मती में वो बात ना आई

घिस रहा चन्दन मंदिर में
जल रहा चन्दन समशानो में
अब तक उसकी मंजिल ना आई

रूठ कर बैठ गया खुशियों के मेह्खानों में
एक ख़ुशी नही संग आई

मन की मती कहा ले आई
मुझको मेरी जिंदगी  रास ना आई


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

09:04pm, Wed 25-12-2013 
(#Rathoreorg20)
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Monday 14 July 2014

Jindgi na sambhalti he ( जिंदगी ना संभलती है ) POEM No. 177 (Chandan Rathore)


POEM NO. 177
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जिंदगी ना संभलती है
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ना गुजरती है ना कटती है
ऐ! खुदा तेरी जिंदगी अब मुझसे ना संभलती है

ना मिलती है ना बिकती है
ना हँसती है ना रोती है
मंजिल तक ना पहुँचती है
ना रूकती है
ऐ खुदा ले ले तेरी जिंदगी अब मुझसे ना संभलती है

ना चुप रहती है ना मचलती  है
ऐ खुदा तेरी ये दी हुई जिंदगी मुझसे ना संभलती है

ना ये डूबती है ना ये तैरती है
ना ये सोती है ना ये जागती है
ऐ खुदा तेरी ये जिंदगी मुझसे ना संभलती है

जिंदगी के दिये गुमनाम दर्द
मोैत से बड़ा ना कोई हमदर्द
ऐ खुदा मेरी मोैत मुझसे ना संभलती है
ऐ खुदा मेरी मोैत मुझसे ना संभलती है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:52am, Sun 22-12-2013 
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 9 July 2014

Chudiya.. ( चूड़ियाँ...) POEM No. 176 (Chandan Rathore)


POEM NO. 176
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चूड़ियाँ
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तप-तप कर बन जाती है कांच की चूड़ियाँ
बचती बचाती बाजार में पहुंच जाती है चूड़ियाँ

आते खरीदार पसंद करते है
फिर ठुकराते है चूड़ियाँ
लाल हरी नीली पीली कई रंगो में होती है
कई टुट के गिर जाती है
और कई हाथों में सज जाती है चूड़ियाँ

जब बोलती है तो किसी को बुलाती है चूड़ियाँ
जब दो पंछियों का मिलान हो चुप-चाप सो जाती है चूड़ियाँ

छन-छन की आवाज में संगीत गाती है चूड़ियाँ
नवेली दुल्हन को सजाती है चूड़ियाँ
मन में सभी के कैसे बैठ जाती है चूड़ियाँ

खुशियों में भी खन-खनाती है चूड़ियाँ
दुःख में टुट के बिखर जाती है चूड़ियाँ

जब टुट के गिरती है या तोड़ दी जाती है चूड़ियाँ
कितना रुलाती है कितना सताती है जब छोड़ के जाती है चूड़ियाँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:32 PM 19/12/2013 
(#Rathoreorg20)
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