Monday 29 October 2012

Betiya (बेटिया) POEM NO. 14 (Chandan Rathore)



POEM NO. 14
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बेटिया
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दिये  की  रोशनी  सी  हे  बेटिया
जलती   लोह  सी  शांत  हे  बेटिया
दिये  के  तेल  सी  शीतल  हे  बेटिया
नदी  के  पानी  सी  चंचल  हे  बेटिया
घर  के  आँगन  की  रंगोली  जेसी  he बेटिया
गंगा  जल  सी  पवित्र  हे  बेटिया
हरिद्वार   सी  पावन हे  बेटिया
बेटी  घर   का  गहना
माँ  घर  का  भगवान
पत्नी  घर  का  नूर
बहन  घर  का  नाज

हाथ बढाओ बेटी बचाओ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:29 pm 27/10/012  
(#Rathoreorg20)
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Aai Diwali (आई दीपावली) POEM No. 15 (Chandan Rathore)


POEM NO.15
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आई  दीपावली
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आई  दीपावली
संग  खुशिया  लाई
सब  को  खुश  करने  वो  आई
बाबा  मेरे  मिठाई  भी  लाना
संग  उसके  कुछ   दिये  लाना
घर  में  बने  मेने  हे  रंगोली
उसमे  हे  सतरंगी  रोली
सजा  धजा  हे  आँगन  आज
बाबा  मेने  लगाये  दिये
कर  रहा   घर  जग - मग  आज

बाबा  तुम  कितने  प्यारे
बाबा  तुम  कितने  न्यारे
तुमने  दिया  जन्म  मुझे
दुनिया  की  नजर  से  बचाया  मुझे

बाबा  कहता हे

बेटी  तू  कोमल  चंचल
तेरा   मन   धरती  सा  पावन
बेटी  तू  आई  मेरे  जीवन   में
सुनी  दीपावली   में  रंग  भरने
में  न  बचाता  तुम्हे  तो  कोन  बनाता  रंगोली  आज
कोन  करता  मुझ   पे  नाज
 
चारो  और  रौशनी  ही  रोशनी
अँधेरे  का  नाम  नही
बेटी  बचालो  साथियो 
उसमे  कोई  नुकसान   नही

हाथ बढाओ बेटी बचाओ

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
1:12 pm 27/10/012 

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Shubhratri (शुभरात्रि ) POEM No. 12 (Chandan Rathore)


POEM NO. 12
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शुभरात्रि 
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Sanate ki aath me soya koi saksh
mand mand muskura raha he koi saksh
nind aati nhi fir bhi dubak k so rahe he sksh
na jaane kya gul khilaoge sone k baad
aap ko hm hi najar aayege subh hone k baad
intjar raat bhar kya karu samj nhi aata muje
intjar ki raat khatam kese karu ye samjau kese


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
11:50 pm
26/10/012 

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Saturday 27 October 2012

Kavi (कवि) POEM No. 13 (Chandan Rathore)


POEM NO. 13
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कवि
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में सरल साधारण एक व्यक्ति
पर मुझमे लिखने की हे शक्ति

में करता लोगो को लफ्जो में  बया
पर कोई मुझे ना कर पाया बया

हमने महनत कर लिखी कविता 
 हँसी मजाक में  उसे हर एक  लेता

मेरी कलम में हे इतना दम
भाव तुम्हारे भी जगा दू एक दम

इतना बड़ा नही हु में की  अच्छा लिखू
बस जो भी लिखू में आप की दुआ से अच्छा लिखू

"छोटी  सी मेरी कहानी हे 
छोटी सी मेरी निशानी हे 
टूट के गिर जाऊँगा में सूखे पेड़  की तरह 
अगर थामा  ना आपने  तो टूट के बिखर जाऊंगा माला की तरह "

मेरा ना  व्यक्तित्व हे ना जीवन
मुझसे ज्यादा मेरी कविता का हे जीवन

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:40 pm
26/10/012

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Hamara Pyar (हमारा प्यार) POEM No. 10 (Chandan Rathore)


POEM NO.10
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हमारा प्यार 
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Pyr 1 ahsas he jo hame bhi huaa is kadar
use dekh kar ham bhi jiya karte the dosto
aati wo samne mann khush or aakhe dekh thi use is kadar
mano wo sab khuch ho hamre liye
uske shaat bita wo wakt bada hi ajib tha
na wo muje na me use dekh pate the dosto
pyr bada tha dono k bich itna pyr ki baya kare to barso lag jaye dosto
jab pucha unse hamne kya pyr karte ho hamse
unhone has k kaha ''nhi to''
sare aramano ka gala got diya is sabd ne
has k hamne kaha 'mjak na karo'
'ham to dost he bas' ye kahana tha unka
jise samja hamne majhi hamri jiavan ki kasthi ka
kasti ko 6od kar bich majdhar me
chale gye ye kahkar udas kyo ho
hasna tha kyo ki unki ichaa ka sawan tha
mann mar k hase par dil to bhara tha unki yadoo se




आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

8:33 PM
20-10-012

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Thursday 25 October 2012

Aaj udas hu me (आज उदास हु में) POEM No. 11 (Chandan Rathore)


POEM NO. 11
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आज  उदास हु में
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आज  मन्न  उदास  हे  पता  नही  क्यों  ये  मन्न  उदास  हे
क्या  में  दोसी   हु  जो  में  उनकी  केयर   करता  हु
या  वो   दोसी  हे  जो  हमें   अपना  नही  समझते
दिल  दुखता  हे  जब  उनकी  हर  एक  बात   याद  आती  हे
अच्छे   से  अच्छा   लम्हा  भी  फिखा  लगने  लगता  हे
जब  वो  उस  लम्हे  में  साथ   नही  होते
पर  कुछ   बाते  होती  हे  जो
वो  हमें  या  हम  उन्हें   समझा    ना  पाए

दोस्तों  जब  भी  किसी  को  अपना  बनाओ  100%  लगा  देना  अपना
फिर  भी  वो  अपने  ना  हुए   तो  भगवान  को  ये  तो  कहेगे  की
गलत  हम  नही  वो  थे




आपका शुभचिंतक

लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

समय -: 10:30 pm
दिंनाक:-25-10-012

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Tuesday 16 October 2012

Mat kar abhiman re bandhe (मत कर अभिमान रे बंधे) (गाना) (SONG) POEM No. 9 (Chandan Rathore)


POEM NO. 9
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मत कर अभिमान रे बंधे
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मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा
कोई ना तेरा साथी जो, तेरे साथ है  जायेगा

अपने  कर्मो से रे बंधे (2 )
तू धरती से  तर जायेगा
मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा

करना  होगा काम  जो उनका सब तुझको  ही बोलेगे
तूने बताया काम जो अपना सब तुझसे मुख मोडेगे
आया अकेला इस  दुनिया   में (2)
अकेला तू जाएगा
मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा

पाना हे तो भगवान को पाले
वो   ना तुझको छोड़ेगा
कलयुग    पे रखेगा भरोसा
तू कभी  ना   तर पायेगा
मान ले ये बात पते की (2)
कलयुग से तर जायेगा
मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा

जिस  की जरुरत तुझको होती वो ना तुझको मिल पायेगा
जो नसीब में होगा तेरे वो ही तू पायेगा
मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा

पैसा होगा तेरे पास तो, तू सब को ही पायेगा
हुआ गरीब जो पेसो से तू सबका दुश्मन कह लायेगा
सोच ले अब भी वक्त हे बंधे बंधे
फिर तू बहुत पछतायेगा
मत कर अभिमान रे बंधे (2)
मिटटी  में मिल जायेगा

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

 9:31 AM
16-10-2012

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Saturday 13 October 2012

Khada hu us manjar par (खड़ा हु उस मंजर पर) POEM No. 8 (Chandan Rathore)


POEM NO. 8
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खड़ा  हु  उस  मंजर  पर
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खड़ा  हु  उस  मंजर  पर  जहा  कोई  सहारा  देने  वाला  नही
टूट  जाऊँगा  कभी  भी  कोई  थामने  वाला  नही

मरूँगा  सान   से   पर  जिंदिगी   भर  किसी  के  सहारे  की  जरूरत  नहीं  थी  मुझे
जिया  सान   से  मारा  भी  सान  से  आज  मुझे  किसी  की  जरूरत  नही


जो  आया  मुझे  इस्तेमाल  किया  मेरे  पास  बेठा  पर  किसी  ने  मुझे  पहचाना  नही
कोई  देख  लेता  अपने  गम  में  मेरा  भी  गम  तो  समझ  पता  मुझे

दर्द  के  दरिया   में  अकेला  हु  सब  ने  चाहा  पर  किसी ने  अपनाया  नही  मुझे



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

समय -: 9:32 am
दिंनाक:-14-10-012

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Thursday 11 October 2012

Manav sarir ki antim yaatra (मानव शरीर की अंतिम यात्रा) POEM No. 7(Chandan Rathore)


POEM NO. 7
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मानव शरीर की अंतिम यात्रा
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जिन्दगी की कसमकस से दूर एक सैया पे सोये हें |
एक तरफ घी का दीपक दूसरी और कूल का दीपक
रो रो कर अपने अपनों को बुला रहे हे दोस्तों ||1||

जो था मन में वो सब रो रो के सुना रहे हे |
जब में था तो कोई मेरा ना था
आज सब चिल्ला चिल्ला कर अपना बता रहे हे दोस्तों ||2||

जब था तो कदर ना थी मेरी आज सिने से लगा कर रो रहे हे लोग |
जिन्दा था तो किसी ने पानी का नही पूछा
आज मेरी लाश के पास से चीटिया हटा रहे हे लोग ||3||

दिन ढला रात हुई फिर नया सवेरा था
जो बाकि थे वो भी आ रहे थे लोग |
सब अपना अपना राग सुना रहे थे लोग ||4||

जिन्दा था तो नहाने का पानी नसीब नही था |
आज गंगा जल , दुध और गव मूत्र से नहला रहे हे लोग ||5||

हुआ समय मेरे अपने घर को छोड़ने का |
आ गया गास फूस का बिस्तर उसपे मुझे लेटा रहे हे लोग ||6||

भाग ना जाए मेरी काया इसलिए उसे भी रस्सी से बाँध रहे हे लोग ||7||

हुआ जब समय विदाई का तो आलम ही कुछ अजीब था |
जिन्दा था तो लोगो ने ठोखरो (पेरो) में निकला
आज मेरे पेरो को पकड़ कर रो रहे हे लोग ||8||

उठाया मुझे इस कदर जेसे मनो में आश्मान में झूल रहा हु |
जिनको में अपने कंधो पर उठाता रहा
आज मुझे कंधो पर उठा कर शमशान की और ले जा रहे हे लोग || 9 ||

चल पड़ी मेरी काया उसी रास्ते जिस रास्ते निकलता में रोज |
आखे नम मेरे साथियों की और नमन कर रहे थे लोग || 10 ||

कुछ ही दूर था मेरा नया ठिकाना
जिसे मेने अब तक ना पहचाना
तुम याद जरुर रखना
एक दिन तुम्हे भी यही हें आना || 11 ||

राम नाम सत्य हें राम नाम सत्य हें
ये कहते हुए ले गये मुझे दोस्तों |
राम नाम सत्य हें ये आज मुझे समझा रहे हें लोग || 12 ||

आ पंहुचा में उस मंजर पर
जिस पर पहुचने के लिए मुझे बरसो लगे |
आज मिट जायेगा मेरा हर एक सपना
पराया हो जायेगा मेरा ठिकाना दोस्तों || 13 ||

लेटा दिया मुझे लकडियो के बिस्तर पर |
चारो तरफ लोग ही लोग मेरे बिस्तर को सजाने में लगे थे दोस्तों || 14 ||

मेरे शरीर के बारे में ऐसी बाते कर रहे थे
मानो किसी जानवर के शरीर को जला रहे थे लोग || 15 ||

वे ही थे वो लोग जिन्हें में अपना समझता रहा |
आज मुझे ज्ञात हुआ सब मोह माया हें
प्रभु की सेवा ही अपनी माया हें दोस्तों || 16 ||

जिन्दा था तो बेटो ने घी नसीब ना कराया दोस्तों |
बेटे आज घी शरीर पर लगा रहे हें दोस्तों || 17 ||

जो था मेरे पास वो सब ले लिया
हाथ में बंधा धागा भी मेरा ना हुआ दोस्तों || 18 ||

सब कहने लगे देख लेना कही कुछ रह ना जाये इनके शरीर पर |
जिन्दगी भर कमाया था कुछ साथ नही गया दोस्तों || 19 ||

आ गया मेरा बेटा हाथ में जलती हुई लकड़ी लिए |
पाला-पोषा काबिल बनाया आज वो ही जला रहा हें दोस्तों || 20 ||

जला दिया मेरे शरीर को शुरू हुआ काम मेरी अश्तियो को ठिकाने लगाने का |
कुछ तो निकाली हरिद्वार पहुचाने के लिए बाकि बहा दी नदी में दोस्तों || 21 ||

चले गये सब अपने अपने आशियाने में
भूल गये सब मुझे याद रही मेरी बाते दोस्तों || 22 ||

माना वो दस्तूर था दुनिया का पर |
जो आज मेरे साथ हुआ वो कल तुम्हारे साथ भी होगा दोस्तों || 23 ||

छोड़ो सब झगडा हिल मिल रहो सब साथ दोस्तों |
साथ ना कुछ गया ना कुछ जाएगा बस रह जाएगी यादे दोस्तों बस रह जाएगी यादे दोस्तों || 24 ||

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 कविता के बारे में ..

             इस कविता की शुरुवात हमने 3:00 am 28/9/2012 को अपने दादा जी की लाश के पास रोते हुए की थी और ये कविता हमने 6 दिनों 20 घंटे 3 मिनिट में पूरी की 11:03 PM 4/10/2012 को हालाकि हमने प्रितिदिन कविता लिखने में 10-15 मिनिट ही दिए हे
               यह कविता कहो या मेरे मन के भाव कहो ये तो में नही जानता पर हा अगर किसी के साथ यदि ऐसा घटा हो या उसने ये सब देखा हो तो उस इंशान के मन में कविता पढ़ते वक्त वो काल्पनिक चित्र मन में चल सकते हे |
                वेसे तो एक मरा हुआ शरीर कुछ नही बोल सकता पर अगर वो कुछ बोल पाता तो वह क्या क्या कहता ये मेने आप को बताने की कोशिस की हे अगर समझ में आये तो इन शब्दों से कुछ सीखे और ना समझ आये तो चंद कागज और चंद शब्द कही मिट जाते हे पता ही नही चलता
                  इस कविता में मेने किसी दुसरे को ठेस पहुचाने के उधेश्य से नही लिखी हे बल्कि कविता का हर एक शब्द मानो मेरे दादा जी के मुखार्बिंदु से पीड़ा के साथ निकल रहा हो जो उनके साथ हुई या वो जो उस समय सोचेगे ये मेरा एक काल्पनिक मापदंड हे |


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:03 PM 4/10/2012 

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Wednesday 10 October 2012

Chhalka aankh se aansu (छलका आँख से आंसू ) POEM No. 3 (Chandan Rathore)


POEM NO. 3
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छलका आँख  से आंसू
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चल पड़ी कलम जब छलका आँख  से आंसू
सब तरफ सन्नाटा  ही सन्नाटा फिर क्यों छलका ये आंसू

सो रहा हे ये जंहा और में उठ खड़ा हुआ जब छलका ये आंसू

हे हर सुख मुझे दुनिया का फिर क्यों छलका ये आंसू

ना कोई दर्द  ना कोई दुःख फिर क्यों छलका ये आंसू
चल पड़ी कलम जब छलका ये आंसू

पता नही क्या दर्द छुपा रखा हे दिल में
में चुप और बोल पड़ा ये आंसू

चल पड़ी कलम जब छलका आँख  से आंसू
चल पड़ी कलम जब छलका आँख  से आंसू



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

3:02 am, 12/april/2012

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Beti ek gulshan he (बेटी एक गुलशन हे) POEM No. 6 (Chandan Rathore)

POEM NO. 6
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बेटी एक गुलशन हे 
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बेटी एक गुलशन हे 
बघिया  का चमन का 
खिलने दो महकने दो 

बेटी करेगी हर सपना पूरा 
बचपन से लेके समशान  तक 
बेटी का अपमान ना कर ऐ इंशान
क्या भूल गया माँ भी तो किसी की बेटी थी 
बेटी को दो सम्मान 
बेटी को दो तुम ज्ञान 
वही करेगी तुम्हारा नाम 
वही बढ़ाएगी संसार 
क्यों मार कर उसे करते हो पाप
गलती ही थी तो पैदा हुई ना करना था  
पैदा जब किया तो मुझे जीवन दान क्यों नही दिया 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

 1:31pm, 5.09.012


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Gale laga le maa (गले लगा ले माँ) POEM No. 1 (Chandan Rathore)


POEM NO.1
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गले लगा ले माँ
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आईना देख के मुझको  बोलो
क्या हुआ तेरी सूरत को
मुझसे ना रहा गया और अशुओ की बरसात हो गई


तेरे लिए दुनिया  की सारी खुचिया ला दू
तेरे लिए सारा जहा लुटा दु   बस एक बार गले से लगा ले माँ
तेरा ही हु तेरा ही रहूँगा बस एक बार बेटा तो बुलादे माँ
तेरे एहसान तो में क्या चुकाऊ वो तो भगवान  भी नही चूका सकता बस एक बार साइन से लगा दे माँ
सो गया ये जहा पर में अकेला हु माँ बस एक बार गोदी सुला दे माँ
माना में बुरा हु पर इतना भी नही जो तू मुझसे नाराज हो जाए  माँ
माना मेने कभी कोई ऐसा काम नही किया जिस से तेरा सर फक्र से ऊचा हो बस अपने कदमो में जगह दे दे माँ
माँ तेरी बहुत याद  आती हे तू कहा हे माँ आ आज तेरी बहुत याद आ रही हे माँ
माँ तेरे हाथो का खाना खाए बहुत दिनों से बस एक बार अपने  हाथ  से खिलादे माँ

माँ माँ माँ गले लगा ले माँ

आई लव यू माँ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:51 pm, 29,march 2012

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Ladki sab ko chahiye par beti kisi ko nhi (लड़की सब को चाहिए पर बेटी किसी को नही) (Chandan Rathore)


अरे बेटी  को  मारते   हो  बेटी  क्या  होती  हे  ये  हम  आप  को  बताते  हे  हमारे   विचारो  से

बेटी  एक  सम्मान  हे  जो  सब  को  मिलना  चाहिए
बेटी   एक  इज्ज़त   हे  जो  हर  घर   को  मिलनी  चाहिए
बेटी  एक नूर  हे  जो  हर  तरफ  चमकना  चाहिए
बेटी  एक उपकार  हे  जो  सब  पर  होना  चाहिए
बेटी  दो  घर  को  चलाती  हे
बेटी दो  परिवारों   को  शिक्षित  करती  हे

लड़की   सब  को  चाहिए  पर  बेटी  किसी  को  नही  ऐसा  क्यों   ?

एक  भाई  को बहन  चाहिए
एक प्रेमी  को  प्रेमिका  चाहिए
एक पति  को  पत्नी   चाहिए

पर एक बेटी  किसी  को  नही  चाहिए ऐसा  क्यों  ?

अरे  मारना   ही  हे  तो  अपने  अहंकार  को  मारो
मारना   ही  हे  तो  अपने  अन्दर  के  जानवर  को  मारो

बेटी  को  क्या  मारते  हो  वो  भी  अजन्मी  बेटी  को
जो  इस  संसार  में  आने  के  सपने देख  रही  हे  उसे  क्यों  मारते  हो  हा  ?

अब  भी  वक्त  हे  संभल   जाओ  वरना  एक  भी  बेटी  नही  रहेगी
और  तुम  इन  सब  अनुभव  से  वंचित  रह  जाओगे

माँ  का  प्यार
बहन  का  दुलार
पत्नी  की  सेवा
प्रेमिका  की  छाया
दादी  का  आचार
माँ  की  हाथ   की  रोटी
कन्या  दान

अरे  मेरे  दोस्तों  हर संपन  आदमी  के  पीछे  भी  एक  ओरत  का  ही  हाथ   होता  हे  सोचो  उस  हाथ   को  ही  तोड़  दिया  तो  क्या  होगा ?

जेसे  बिन   पानी   मछली  बन  जाओगे

हाथ  बढाओ  बेटी  बचाओ 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

११ :३६

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Beti balidano ka ghar (बेटी बलिदानों का घर) POEM No. 4 (Chandan Rathore)


POEM NO. 4
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बेटी बलिदानों का घर
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हुई बेटी की विदाई तब जाना क्या होती हे बेटी
बचपन से पला पोसा सब प्यार दिया आज जब वो दूर हुई तो जाना क्या होती हे बेटी
बेटी बलिदान का गर होती हे , जन्म से लेके मोत तक बलिदान देती हे बेटी
बचपन में भाई के लिए अपनी इछाओ की बलि देती हे बेटी
जवानी में अपने प्यार की बलि देती हे बेटी
शादी पे अपने माँ बाप की (छोड़ कर ) बलि देती हे बेटी

लडको के लिए बेटी की बलि देती हे बेटी
परिवार के लिए अपनी खुशियों की बलि देती हे बेटी

क्या कभी मर्दों ने किसी बेटी के लिए बलि दी हे नही तो आप को कोई हक़ नही बनता की उसके सम्मान , विचारो, आदर्शो की बलि ले 

हाथ बढाओ बेटी बचाओ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

 

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Maa beti ki baate (माँ बेटी की बाते) POEM No. 2 (Chandan Rathore)


POEM NO. 2
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माँ बेटी की बाते
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मेरा मन्न देखने को तरसे ये संसार
मुझे भी माँ की गोद में खेलने का हक़ हे
मेरे भी कुछ  सपने हे जो में अपने माँ और पिता जी के लिए करना चाहती हु
मुझे मरने से आप लोग तो किसी ना किसी दाग से बाख जाओगे पर क्या कभी अपने आप को माफ़ कर पाओगे
जब देखोगे कीसी की बच्ची को  किसी की गोद में तो में जरुर याद आउंगी
जब कोई बच्ची स्कुल जायेगी तो में याद आ ही  जाउंगी
जब किसी की बेटी अपनी माँ को माँ कह के बुलाएगी तो में जरुर याद आउंगी
फिर तुम पछताओगी कास में उसे नही मरती तो आज में भी किसी की माँ  होती

माँ तू   अपने आप को दोस मत देना तूने तो अच्छा   काम किया हे अपना फर्ज पूरा किया हे  पर में तुझे  कभी माफ़ ना कर पाउंगी
माँ जब कोई बेटी अपने माँ और पिता का नाम रोशन  करेगी तो में जरुर याद आउंगी
माँ अब आसू  पोछले   वरना में और मर जाउंगी  तेरी याद में
माँ माँ माँ मेरी माँ मेरी माँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

5:37 pm,March 23 ,2012

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