Friday 22 May 2015

Naa Koi Khuwaish (ना कोई खवाइश) POEM NO. 226 (Chandan Rathore)


POEM NO. 226
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ना कोई खवाइश  
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ना मन उदास है ना मन में ख़ुशी
आज फिर लोगों ने दे दी मुझे जूठी हसीं

अब क्या रहा जीवन और क्या रही जिंदगी
ऐ मजबूर हाथों की लकीरों जरा तोड़ दो  बंदिश

अकेले चलना सीखा था अकेला  आगे बढ़ जाऊँगा
यहाँ पथ पथ पर लोगों के रोग है और उनकी आपसी रंजिश

ना आँशु है आँखों में , ना दिल पागल तेरे नाम का
ना कोई तेरे नाम की कविता है, ना कोई बर्बाद खवाइश

दर्द के पहलु सिखुड से जाते है जब याद तेरी आती है
अब क्या बताऊ थक सा गया हूँ और ख़त्म हुई सब समजाइश

तेरे लहू में आज भी में बहता हूँ ये मेरे खुदा को पता है
मेरा दिल रेगिस्तान सा हो चला अब तुझसे ना कोई फरमाइश

अब आ भी जा ऐ सनम मेरी लाश को आग लगाने को
जिस घर को खड़ा किया था तेरे प्यार ने उसमे रही ना कोई नुमाइश


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:40am, Wed 18-06-2014
(#Rathoreorg20)
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Sunday 17 May 2015

Ajab Kavita (अजब कविता) POEM NO. 225 (Chandan Rathore)


POEM NO. 225
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अजब कविता
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वो सोये तो कविता
वो जागे तो कविता
शब्दों का जनजाल है फिर भी
खो रही थी कविता

बात ना होती फिर
यादों में थी कविता
हस रहा ये जमाना  
और फुट फुट के रो रही कविता

कविता ना बोले
कविता कई राज खोले
लोगों के खुशियों के माहोल में
झुर झुर रोती है कविता 

कवि की भावना
ना उसका रूप डरावना
फिर क्यों भागे लोग
अकेली ही रह गई है कविता 

पास आओ, मुझे समझाओं
थोड़ा पढ़ो, फिर समझाओं
तुम्हारी ही कहानी हूँ में
अब अपना भी लो तुम कविता

भारी भीड़ नही, कुछ ही सही
पर वो भी कविता के इच्छुक हो
तुम भले ही ना पढ़ों
पर ठुकराओ तो ना तुम कविता 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

9:24 PM 17/06/2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 1 May 2015

Sambhal Naa Paata Hu (संभल ना पाता हूँ) POEM NO. 224 (Chandan Rathore)


POEM NO. 224
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संभल ना पाता हूँ
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एक दुझे को समझने को रोज चला मै आता हूँ
देख कर मेरी कमजोरी मै संभल ना पाता हूँ

भूखा उठता हूँ तेरे प्यार में भूखा सो जाता हूँ
नही मै आता, नही मै जाता फिर भी खो जाता हूँ

तेरे प्यार के खातिर, लोगों के दर्द लिख जाता हूँ
लोग जब पढ़कर रोते है तो मै सहम सा जाता हूँ

आज भी तेरी नामौजूदगी में, मै पल पल मर सा जाता हूँ
तू कही खुश, में तुझमे खुश, ख़ुशी कहा है, मै समझ ना पाता हूँ

ऐ प्यार की गलियाँ उस तक पहुँचने का रास्ता दिखा दे
मै उसके बिना आज भी गुम हूँ मै उसके बिना आज भी गुम हूँ

कमबख्त मारा उसके प्यार में बेचारा फिर फिर ढूंढ़ता हूँ
तेरी ख़ुदग़र्ज़ीयो को आज भी में चुप चाप सह जाता हूँ

एक दुझे को समजने को रोज चला मै आता हूँ
देख कर मेरी कमजोरी मै सम्भलना पाता हूँ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

9:01 PM 17/06/2014
(#Rathoreorg20)
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