Friday 29 August 2014

Shis Kata Kar Ke ( शीश कटा कर के ) POEM No. 183 (Chandan Rathore)


POEM NO. 183
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शीश कटा कर के
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माँ ने भेजा नत मस्तक तिलक लगा कर के
बेटा आता है अपना शीश कटा कर के

भेजा था उसे सीमा पे पुष्प माला पहना कर के
आज आया है सीमा पे जान गवाँ कर के

खुशियाँ थी अपार उसको जब गाड़ी मे बिठाया था
आज दुःखी है देश सारा जब गाड़ी से उसे उतरा था

मन प्रफुलित था जाते वक्त सीमा पे
आज एक और माँ ने बेटा न्योछावर किया अपनी धरती माँ  पे

खुशियाँ मनाता दुश्मन आज जीत का जशन मना के
एक और बेटा घर आया अपना शीश कटा कर के

आज रो रही अर्धांगिनी फूट-फूट कर अपना सिंदूर हटा कर के
सिसक-सिसक  के रोये पिता अपने हाथ  गवाँ कर के 

मंझर गमगीन हुआ सेना में मातम छाया है
दुखी हुई भारत माँ आज फिर अपना एक और लाल गवाँ के

खुद चढ़ गया मौत के घाट तुम सब को बचा कर के
छोड़ गया अपार सन्देश खुद सीने में गोली खा कर के

उठो रे जवानों दुश्मन को पहचानों बढे चलो हाथ में असला बारूद उठा कर के
ख़त्म करो उसको जो खुश है आज एक लाल को मौत के घाट उतार कर के

खाली ना जाए उस माँ की दुआँ जो रो रही है घर के चिराग को खो कर के
ख़त्म करो आतंक को जो खुश है चंद साँसे संजो कर के

लाश उठा रहा है उस बेटे की जिसे काँधे पे कभी खिलाया था
कमजोर हुआ वो पिता अपने कंधो को खो कर के

देश की आवाज ये कहती है कब तक बैठोगे खामोश होकर के
अब तो जागो एक और बेटा आया अपना शीश खो कर के 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

07:32pm, Thu 16-01-2014  
(#Rathoreorg20)
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Sunday 24 August 2014

Bhed Mita Do (भेद मिटा दो) POEM No. 182 (Chandan Rathore)


POEM No. 182
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भेद मिटा दो
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जिन झुग्गी-झोपड़ियों में जो गरीब रहते है
उधर जाकर ये अमीर फोटो खिचवा के आते है
दान धर्म करके वो न्यूज़ मे आना चाहते है
दान करो पर नाम ना करो दान के नाम पर नाम करवा के आते है

हिम्मत हो एक घर को अपने घर सा पालो
उन गरीब बच्चों को अच्छे स्कूलों मे डालो

जिनके माँ बाप नही है उनको अपना वंश बनालो
बस गरीब अमीर का ये भेद मिटा लो

अपने साथ ना सही अपने जैसा खाना खिला दो
उन निराशावादियों के मन मे थोड़ी आशा जगा दो

दान धर्म करने का ऐसा छोटा सा बोझ उठा लो
फिर कही जाके उन छोटे-छोटे चेहरों की मुस्कान का फोटो खिचवालों

बस गरीब को आगे बढा दो
अमीर-गरीब का बाँध मिटा दो


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

03:24pm, Sun 12-01-2014  
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 20 August 2014

Tera Jikr (तेरा जिक्र) POEM No. 181 (Chandan Rathore)


POEM No. 181
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तेरा जिक्र
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लिखने जो लगा तो ख्याल में बाँधा तुमने
इन सजे-धजे शब्दों को दिल से निकाला तुमने

यु जिक्र तेरा जब महफ़िल में आता है
सब हँसते है और ये दिल भर आता है

तेरी गैर मौजूदगी आज भी खलती है
तेरे प्यार की पुरवाई आज भी दिल में चलती है

यु रुख़्सार हुआ करता था तुमसे कभी
अब तो तेरा ही जिक्र अल्फाजों में निकलता है

सुन ले ऐ हसी तू रखना ख्याल अपना
मुझ से अब मेरी जिंदगी भी ना संभालती है

तेरे जिक्र की जब बात आती है
मेरे सुने से आँगन में शब्दों की बाढ़ आ जाती है

तेरी फ़िक्र तेरा जिक्र है अब जहाँ मै मेरे
मेरा दर्द और तेरा जिक्र अब कागज पर बिखरते है 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

09:53pm, Sat 11-01-2014 
(#Rathoreorg20)
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Thursday 7 August 2014

Tu Kar Ibadat ( तू कर इबादत ) POEM No. 180 (Chandan Rathore)


POEM No. 180
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तू कर इबादत
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तू कर इबादत मेरी लाश को कुत्ते खाए
लगा कर मुँह पे खून मेरा वो तेरे पास आये

तू कर आज इबादत मेरी अर्थी जल्द ही सज जाए
नुरे नजर इतेफाक से तेरा निकाह उसी दिन हो जाए

तू कर तेरे आका से रहमते तेरी रूह की
मै करू सजका अल्लाह का और मेरी रूह भी तेरी हो जाए

तू कलमा पढ़े तेरे शौहर का की उससे कोई गुनाह ना हो जाए
मेरी दुवा अगर उससे कोई गुनाह हो तो सजा-ऐ-मोैत मुझे आ जाए

मुहोबत-ऐ-सुकून की मांगी थी मुराद मेने
तुमने मेरी जोली में रख दी नूरानी जायदात

तू कर इबादत की अगली सांस ना लू मै
अगर लू तो बस तेरा ही नाम मेरे लबो पे आये

इश्क़ प्यार तो रब की जायदात है
तू कर इबादत मेरी लाश को भी प्यार ना मिले
या रब उसकी सुनना मरने से पहले ही सारे जज्बात मुझे मिल जाए

तू कर इबादत मुझे कब्र की भी जगह ना मिले
मान जाए खुदा तेरी दुवा तो तेरे साथ कब्र भी मिल जाए

तू कर आज इबादत की मै खुशियों के लिए रोऊ
सुन ले खुदा तो हम तुम्हारे दामन में फुट-फुट के आँसू बहायें  

तू कर ले लाख कोशिस खुदा को मनाने की
मान जाए वो खुदा तो मुझे मोैत आ जाये

होश नही है मुझको की क्या लिखा और क्या पढ़ रहा हूँ मै
बस तू इबादत कर मोला से ......
बस तू इबादत कर मोला से ......


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

06:47pm, Wed 08-01-2014 
(#Rathoreorg20)
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