Monday 31 March 2014

Tu Kamjor Kadi Thi (तू कमजोर कड़ी थी ) POEM No. 163 (Chandan Rathore)


POEM NO. 163
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तू कमजोर कड़ी थी
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बन के मेहंदी तेरे हाथों में सजी थी 
लगा के सिंदूर तेरे माथे पे सजी थी 

उठ के डोली में तेरे घर को चली थी 
बन के मंगलसूत्र तेरे गले में पड़ी थी 

में किसी कि ना होके  बस तेरी हुई थी 
उस दिन बन के मेहंदी तेरे हाथों में सजी थी 

कानों  के जुमके से पूछ जरा वो हर झंकार तेरी थी 
आज अवगत हुई कि मेरी हर सहेली सही थी 

जि  रही थी तेरे प्यार में मुर्दो कि तरह  हर सांस तेरी थी 
तू ठुकरा गया फिर भी, मेरी याद ,मेरी फरयाद बस वही  थी 

तू कमजोर निकला छोड़ आज मुझे अकेला मेरी हर राह बस तेरी थी 
मेरी आखो से जो आसुंओ कि माला थी बस वो तेरे लिए मेने फेरी थी 

बन के मेहंदी तेरे हाथों में सजी थी 
लगा के सिंदूर तेरे माथे पे सजी थी 

लहू लुहान है सपने मेरे जब में तेरी कब्र पे खड़ी थी 
हंस कर हो जाती मै भी तुझ पे न्योछावर पर तू कमजोर कड़ी थी 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:18 PM 23/11/2013

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Saturday 22 March 2014

Tum hi to thi ( तुम ही तो थी ) POEM No. 159 (Chandan Rathore)


तुम ही तो थी 
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इस कदम पे तुम थी 
उस कदम पे भी तुम थी 
रात कि चांदनी में दिखी एक परछाई 
उसमे भी तुम थी 

सपने में जो धुंधली सी तस्वीर थी 
वो भी तुम थी 
भीड़ में जो एक रोशनी सी जो चमक रही 
वो भी तुम थी 

घर में पुरानी तस्वीर को जब देखा घोर से तो 
उस मे भी तुम थी 
दुनिया के दुःखो  को सहना सिखा तो 
उन दुःखो में भी तुम थी 

पैदल चलते हुए जब लगे पैरो में कांटे 
उन काँटों को बिछाने वाली भी तुम थी 
उजाले में भी एक अँधेरा था 
उस अँधेरे का कारण भी तुम थी 

मुझे बनाने में भी तुम थी 
तो मुझे रुलाने में भी तुम थी 
इस्क के इरादे में भी तुम थी 
प्यार में दरारे भी तुम थी 

मेरी हंसी भी तुम थी 
तो मेरे आंसू भी तुम थी 
छोड़ कर चली जाती तुम फिर भी 
मेरी यादों में बस तुम थी 

ऐ ! मेरी जिंदगी मेरी जिंदगी भी तुम थी 
तो मेरी मौत भी तुम ही तो थी 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
09:20am, Wed 13-11-2013

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Tuesday 18 March 2014

Bujurgo ka pyar ( बुजुर्गो का प्यार ) POEM No. 158 (Chandan Rathore)


बुजुर्गो का प्यार 
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बुजुर्गो का प्यार आज भी है 
उनमे जवानी कि तरंग आज भी है 

दांतो के अभाव में हंसना कम नहीं किया अब भी 
लगाते ठहाके वो आज भी है 
बुजुर्गो का प्यार आज भी है 

बातें देखो ऐसी कि जवानी भी सरमा जाए  
बुढ़ापे में सब को रोग सताये 
पर जो जवानी में सरूर था 
वो सरूर आज भी है 

ना किसी का डर , होकर वो निडर 
लेकर अपनी रानी को दिखा दिया पूरा शहर 
जो ना होगा इन जवानो के खून में 
उनके खून में उबाल आज भी है 
अरे ! बुजुर्गो का प्यार आज भी है 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

09:28am, Tue 05-11-2013

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Sunday 9 March 2014

Betiya Anokhi Kahani ( बेटियाँ अनोखी कहानी ) POEM No. 157 (Chandan Rathore)


POEM No. 157
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बेटियाँ अनोखी कहानी 
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बेटी कि नदी सी सुरीली आवाज 
उसी के खटे-मीठे  प्रश्न 
और उसी के खटे-मीठे जवाब 

चलती देखो रानी सी 
एक चंचल सी मंद मुस्कान सी 

सुबह  उठते ही उसी का चेहरा देखु 
वो खो जाए तो आँखे बंद कर उसे ढूंडू 

भाग भाग कर मुझे थकाती  
कितने प्यारे पापा ऐसा वो कहती 

मुस्कान मेरी वो है 
मेरी शान बस वो है 
सारे दुःखो  का हल वो है 
मै अधूरा सा रहता हूँ जब वो होती नही 
मेरी साड़ी धन दोलत सब वो है 

बेटियाँ अनोखी सी कहानी 
उसके बिना कैसी सब कि जिंदगानी 
उठा कर हाथ उसे बुलाओं 
सवर जायेंगी दुःख भरी जिंदगानी 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
09:19am, Tue 05-11-2013 

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Thursday 6 March 2014

Kya Karu ( क्या करूँ ) POEM No. 156 (Chandan Rathore)


POEM No. 156
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क्या करूँ 
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तेरे लिए जिऊँ 
या फिर तेरे लिए मरुँ 
हाय क्या करूँ 

तेरी रूह कि नुमाइशों में मजबूरियाँ है 
उनकी मंजूरियाँ का क्या करूँ 
हाय क्या करूँ 

एक टक नाटक जो किया उसने 
बंजर सी जमि  को मै गुलिस्तान क्या करूँ 
बेखोफ उठते है अंतर मन के काफिले 
मुर्दा है सारे विचार तेरे 
 मै तेरी मझार पे क्या करूँ 

तेरे नैनों कि जो क़त्ल करने कि आदत है 
आज भी वो ठेस पहुँचाती है दिल को 
जल रहा हूँ मै हर दम, इसे ज्यादा मै  और अता क्या करूँ 

गुल-मिल जाता हूँ सारे गम में 
पर उन खुशियों का क्या करूँ 
तेरी यादे मुझे मरने पर मजबूर करती है 
पर जिन्हें चाह है मेरी उस दुनिया का क्या करूँ 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:52am, Thu 17-10-2013

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Sunday 2 March 2014

Teri Parchai ( तेरी परछाई ) POEM No. 154 (Chandan Rathore)



POEM No. 154
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तेरी परछाई 
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खुली बाहों में जो जहाँ समेटा था 
एक पल में जाने कैसे दिल टुटा था 
खामोश होक वो ऐसे चली 
उस राह पे जो दुआ में  मुझे कब्रिस्तान देता था 

आज भी उसकी यादों कि  लहरें 
मेरे गमों को गिला कर जाती है 
छोड़ दूँगा मै एक दिन उसे 
मेरी इछाओ का गला गोटा था 

वो कहती बेइन्तिहान महोबत ना करो 
पर दिल के आशियानें में उसके बिना अँधेरा था 

कहती है दुनिया जालिम हूँ मै 
क्यों ना बनता मै 
मेरे भगवान ने जो मेरा दिल तोडा था 

रुक जा आंशुओ कि मूसलाधार बारिश 
अब थम भी जाओ कही डूब ना जाऊं मै  यहाँ 
तेरी परछाई ही तो मेरा जरोखा था 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
04:11pm, Sun 13-10-2013 

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