Friday 26 September 2014

Naa Pucho Is Diwane Se ( ना पूछो इस दिवाने से ) POEM NO. 192 (Chandan Rathore)


POEM NO.192
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ना पूछो इस दिवाने से 
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तन्हाई के मंझर पर गुझर रहे हो आप
तनहा खुद होकर भी हमसे पूछ रहे हो आप

हम क्या बताये आप की तन्हाई का मंझर
सब कुछ पास होके भी मेरे दिल है बंझर

तुम्हारे सवालों के जवाब आज भी मिलते नही
बता तो सब दे पर ये दिल गवा देता नही

ना पूछो अब इन हवाओं से की हम आज भी तुम्हारे है
ना पूछो इस ज़माने से की आज भी मेरे सपने तुम्हारे है

ना पूछो इस महखाने से की रोज शाम को ये सजती क्यों है
ना पूछो उस जलती हुई समा से की वो आज भी जलती क्यों है

अगर पूछे वो किसी से भी तो
कुछ ना कहना, चाहे मेरी जान जाए
अगर किसी ने कुछ भी कह दिया तो
उनके आँखों में आशुँ ना आ जाए

तनहा नही होते ऎसे रूठा नही करते
मेरे दिल का हाल भी ऐसा ही है बस
ना पूछो इस दिवाने से
ना पूछो इस दिवाने से 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:14 PM 03/02/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 22 September 2014

Puncho Naa Mera Haal ( पूछो ना मेरा हाल ) POEM NO. 191 (Chandan Rathore)


POEM NO. 191
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पूछो ना मेरा हाल
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तुम पूछो ना मेरा हाल मै ठीक हूँ
तुम करो ना मेरी परवाह मै मस्त हूँ

तुम भरी महफ़िल में छोड़ के गई
फिर भी तेरी याद के साथ जिन्दा हूँ

तुम भूल जाओ मगर मै कैसे भुलु तुम्हें
तुम मेरी रूह-रूह में बसी हो ये तुम्हें क्यों कहु

मै दीवाना तू बेगानी, मै परवाना तू अंजानी
मै शायर सही तू मेरी शायरी, चला जीने पर तू ही तो मेरी जिंदगानी

सोच रही होगी ना आज फिर तेरी याद मेरे जहन में क्यों आई
ओ!!! परवानी पूछा ना हाल मेरा मै तो अभी भी जिन्दा हूँ

जीना मुझे आता नही, मरना मै चाहता नही
अब तू ही बता मै कैसा हूँ
पूछो ना मेरा हाल मै तो बस तेरे लिए जिन्दा हूँ
बस तेरे लिए जिन्दा हूँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:54 AM 03/02/2014
(#Rathoreorg20)
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Thursday 18 September 2014

Tere Bager Me ( तेरे बगैर मै ) POEM NO. 190 (Chandan Rathore)


POEM NO. 190
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तेरे बगैर मै
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तेरे बगैर मै, कैसा लगता हूँ
तेरे सिवा मन मेरा लगता नही

तेरे बगैर सुना ये मंझर
तेरे लिए मै हूँ ही नही

कैसे सम्भालू अपने आप को ओ !! जालिम
जब तेरे बगैर पूरा में हूँ ही नही

इतने गम सहते हुए भी जिन्दा हूँ क्यों
तू क्या जाने मेरे जज्बात तू अब ताक समझी नही

ढूंढ रहा हूँ मै मेरे जख्मों के सवाल
दुनिया पूछे मुझे की अब तक वो तुझे मिली क्यों नही

तेरे बगैर मै अब कैसे जी रहा हूँ
तेरे बगैर मै कुछ भी नही 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:48 AM 03/02/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 15 September 2014

Faasle (फासले) POEM NO. 189 (Chandan Rathore)


POEM NO. 189
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फासले
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इन मिलो के फासलों को कैसे कम करू
हो रही है शाम खुशियों की इस शाम को कैसे खुश करू

ये सारी हवाएँ आती है मेरी 
मै किस किस हवा से सामना करू

देखता हूँ मै जब तेरी सूरत को
चला जाता हूँ मै मीलों दूर

सूरज को पकड़ ना पाता हूँ
पर चाँद से दूरी कैसे कम करू

छोड़ दिया तुझे भूल भी गया तुझे
पर तेरी इन यादों को कैसे कम करू

तुझे माना मेने अपना सब कुछ
अब तू ही तो बता तुझसे फासला कैसे करू 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:51 PM 01/02/2014
(#Rathoreorg20)
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Saturday 13 September 2014

Bah Gai Khwahish ( बह गई ख्वाहिश) POEM No. 188 (Chandan Rathore)


POEM No. 188
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बह गई ख्वाहिश
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उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश

स्वप्न की बेला में
हर दम अकेला में
दुःखों की सैया पे
खुशियों की नुमाइश

धिक्कार सा जीवन
मन चंचल सा
रोज नवीन उत्पात मचाता
नव मन क्रीड़ा की होती यहाँ फरमाइश

उछल-उछल कर दौड़ता जाता
मन इक घोडा है
एक उपवन में ना समाता
मन शांत करने की है फरमाइश

उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:43 PM 01/02/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 8 September 2014

Vidai Shiksha (विदाई शिक्षा ) POEM No. 187 (Chandan Rathore)


POEM NO. 187
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विदाई शिक्षा
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छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें याद तू रखना
तुझे अब पिया घर रहना
बंध चली सात फेरों में तेरी जिंदगानी
ख़ुशी ख़ुशी पिया संग रहना

सास ससुर को पिता माँ सा देना तू सत्कार
ननद को रखना तू दिल के पास
हर दम पिया कहे चलना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना

भूल हो जाए भूल से तो माफ़ी में ना चूकना
अपने कूल की मर्यादा को हमेशा बनायें रखना
छोटे हो तुझसे उनको हर दम सही राह दिखाना
बड़े बुजुर्गो की सेवा में अपना समय बिताना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना

सर ऊँचा हो पुरे परिवार का इस राह पे चलना
कोई कहे भला बुरा तो उसे पानी के गुठ सा पी जाना
अन्याय हो अगर तुझ पे तो उस बात को कभी ना आगे बढ़ाना
नेकी, साहस, समझदारी से अपना परचम लहराना

निंदा, भय, कष्टों से तू ना घबराना
आग में तपती है नारी ये भूल ना जाना
अच्छी बेटी है तू अब अच्छी बहु बन के दिखाना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ बहना
कुछ बातें तू याद रखना 

कुछ भी कष्ट हो हर दम मुस्कुराना
पति की सेवा ही पहला धर्म है, ये भूल ना जाना
अगर पति गलत राह पकड ले तो तू सही राह दिखाना
धीरज, संतोष से अपना धर्म निभाना
सब सोये हो सुबह तू जल्दी उठ जाना
सब के लिए स्वादिष्ट भोजन तू पकाना
छोड़ चली बाबुल का घर ओ !! बहना
कुछ बाते याद तू रखना

दूल्हे राजा सुनो तुम भी क्या क्या धर्म निभाना है
काम काज का लेखा-जोखा सब अर्धांगिनी को भी बताना है
देश विदेश जाओ तो धर्मपत्नी को भी साथ ले जाना है
अब तक थे अकेले आज दो जान एक हुई हर दम साथ निभाना है 

खुशियाँ ही खुशियाँ हो अब दोनों के जीवन में ये दुआएँ हम करते है
ओ !!! दूल्हे राजा जी अब अच्छे कामों में दिल लगाना है
याद रहे नोक-झोक चलती रहे पर पत्नी का दिल ना दुखाना है
दूल्हे राजा तुम्हें भी ये सब धर्म निभाना है 

मुसीबत आन पड़े कोई तो दोनों को मिलकर निपटाना है
बन के दो बगियाँ के फूल तुम्हें संसार चलना है
दूल्हे राजा हो आप सब काम जट से निपटाना है
राजा की रानी को अब हर सुःख दे कर उसी संग चलना है 
छोड़ चली बाबुल का घर ओ !! बहना
ये सब बातें याद तू जरूर रखना 

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:55am, Sat 01-02-2014 
(#Rathoreorg20)
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Sunday 7 September 2014

Lot aa Maa ( लोट आ माँ ) POEM No. 186 (Chandan Rathore)


POEM No. 186
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लोट आ माँ
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जब पुकारा मेने भगवान को, तो होती सामने माँ
दर्द में जब रो रहा होता हूँ तो, सहला रही होती है माँ

दूर जा कर तुझसे खोया रहता हूँ
कोई ना दिखता मुझे पास तो, तू होती साथ माँ

आँशु की हर किलकारी तुझे पुकारे
बिन मंदिर के भगवान है माँ

आज यादों में तुम हो मेरे
आज अपनी गोदी में सोने दो ना माँ

खो गया रास्ता, ख़त्म हुआ सब से वास्ता
अब हर पल हर गड़ी याद आती हो माँ

माँ माँ पुकार रही है साँसे
छूट ना जाए ये प्राण अब तू जल्दी आ माँ

मै खो गया इस दुनिया की भीड़ में
अब तेरे सिवा कोई रास्ता ना बचा
अब तू ही मुझे बता क्या करू मै माँ

रूठ के गई मुझसे तू अब लोट कर आ ना
रोते रोते तुझे पुकार रहा है तेरा बेटा माँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

07:07pm, Thu 30-01-2014
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 3 September 2014

Aaj Jina Mushkil He ( आज जीना मुश्किल है ) POEM No. 185 (Chandan Rathore)


POEM NO. 185
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आज जीना मुश्किल है
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अमीरों के लिए सविंधान है
गरीबों के लिए समशान है

बेच दिए घर के बर्तन
फिर भी भूखे सोते है
हमारे जलाने को लकड़ी भी नहीं
वो मखमल के बिस्तर पर सोते है

भेदभाव इतना है की खाना मुश्किल होता है 
रोती बिलखती माँ अब ये कहती है
भूखे बच्चों को सुलाना मुश्किल होता है

मेहनत कर कुछ कमा के लाते है
एक एक रोटी के लिए पुरे जग से लड़ना भिड़ना पड़ता है
होती शांत ना उदर पीड़ा अब इस कलयुग में
आज मरना आसान और जीना मुश्किल लगता है

चिंतित व्याकुल पिता रोता है चोरी-चोरी
माँ सिसक-सिसक कर चूल्हें में अरमान जलाती है
ये पीड़ा है बस रोती की जो हर
गड़ी सहना पड़ता है

आज गरीब के मुँह में निवाला नही
अमीरों के घर खाना फिकता है
उन भूखे बच्चों को आज जीना मुश्किल लगता है 

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

02:03pm, Sun 26-01-2014 
(#Rathoreorg20)
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