Friday 28 November 2014

Roti Rahi Chudiya (रोती रही चूड़ियाँ) POEM NO. 203 (Chandan Rathore)


POEM NO. 203
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रोती रही चूड़ियाँ
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टप टप आंसू गिरे, टूट कर धरा पे गिरे
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ

इधर उधर भागे, बड़ी बेचैन सी लागे
अब क्या बताऊ, रात भर सोती नही चूड़ियाँ

मन रोये बिलखे, सिसक सिसक कर आंसू छलके
अब क्या बताऊ, रात भर कुछ कहती रही चूड़ियाँ

खनक ना तो छोड़ दिया, वैराग्य मन में धर लिया
अब क्या बताऊ, रात भर चुप चाप बैठी रही चूड़ियाँ

ख़ुशी से सफ़ेद हुई, याद में फिर लाल हुई
अब क्या बताऊ, रात भर रंग बदलती रही चूड़ियाँ

कभी यहाँ गिरे, कभी वहाँ गिरे टूट टूट कर गिरती रही
अब क्या बताऊ, रात भर लहू लुहान होती रही चूड़ियाँ

बहती रही यादो मे, गुन-गुनाती रही रातों में
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

7:10 PM 18/03/2014
(#Rathoreorg20)
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Tuesday 25 November 2014

Anokhi Preet (अनोखी प्रीत) POEM NO. 202 (Chandan Rathore)


POEM NO. 202

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अनोखी प्रीत
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रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही
बिन कहे अजुबा बन जाऊ
कई ऐसी गीत, संगीत सही

उमड़-घुमड़ बादल का साया
बिन परछाई कुछ समझ ना आया
रज-रज निहारु, नित आंसू पी जाऊ
आंसू की धार उसकी संगी सखी

एक राज, राज सही देखे बिन काज नही
हम अकेले कब तक भागेंगे जब आप का साथ नही
नजर भर देख लू
भले वो मुमताज नही
रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही

काले कोयल सा मन लिए फिरू
सपनो की गढ़री मन में धरु
मन के काले पन को में पी जाऊ
भले ही उसमे मेरी मौत सही
रीत अनोखी प्रीत सही
मन का अनोखा मित सही



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

3:39 PM 16/03/2014
(#Rathoreorg20)
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Monday 10 November 2014

Uski Izzat (उसकी इज़्ज़त) POEM NO. 200 (Chandan Rathore)


POEM NO. 200
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उसकी इज़्ज़त
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वो अपनी इज़्ज़त आबरू लिए बिस्तर पर जम्हाइयाँ ले रही थी
मै उसके पास बैठ, उसकी आबरू को तक रहा था

वो सिसक सिसक कर अपनी आहें ले रही थी
और मै सिसक सिसक कर उन आहों को पि रहा था

खो कर सारे अरमानों के पहाड़ों को, वो रो रही थी
मै उन जज्बातों को, फिर से दिलाने के लिए रो रहा था

नामी शख्स की बदनामी हजार हुई आज वो तार तार हो रही थी
उस गुमनामी जिंदगी से ये बदनाम जिंदगी मिली आज मै फिर से खो रहा था

बेखौफ हुई तार तार इज़्ज़त मेरी, मेरा शरीर उन जालिमों के हाथ लहूलुहान हो रहा था
वो सो रही आज इज़्ज़त आबरू खो कर और मै उसके पास बैठकर बस रो रहा था

बस रो रहा था.......  बस रो रहा था ......


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

03:28am, Sun 02-03-2014 
(#Rathoreorg20)
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Sunday 9 November 2014

Tere Bin (तेरे बिन) POEM NO. 199 (Chandan Rathore)


POEM NO. 199
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तेरे बिन
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कही तो होगी वो नूरानी
बस होके प्रेम दीवानी
मदहोश होके राहों पे मेरी
गुम हो जायेगी उसकी इश्क़ की खुमारी

बिन उसके बरसते नही ये बादल
बिन उसके रंग नही है सावन में
बिन उसके खुशबु नही है फूलों में
अब तो आ जाओं मेरी उल्जी हुई पहेली
तुम्हे सुलजाने को भी कम है ये जिंदगानी

ऐतबार नही इस दुनिया से बिना तेरे सिवा
तू ख़्वाब ना बन जाए बस अकेला हूँ तेरे सिवा
मधु के जैसे मीठी बोली तुम्हारी
बड़ी सिद्दत से पालु जुदाई तुम्हारी

इतबार क्यों करती हो मुझसे बोलो तो सही
बिन तेरे ये आस्की,ये इश्क़, क्या बताओं तो सही
अब क्या क्या रो रो कर बताऊँ  तुम्हें
तुम्हारे बिन ये जिंदगी सुनी सुनी ही सही


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:01pm, Mon 17-02-2014
(#Rathoreorg20)
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Friday 7 November 2014

HADA RANI ( हाडा रानी ) POEM NO. 198 (Chandan Rathore)


POEM NO. 198
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हाडा रानी
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बहुत पुरानी एक प्रेम कहानी थी
उस कहानी के किरदार एक राजा और रानी थी
प्यार उनका देख दुनिया उनकी दीवानी थी
विवाह रचा कर, एक नई कहानी लिखनी थी

एक सप्ताह विवाह को हुआ, यहाँ से नई कहानी थी
एक दुत आया संग पत्र लाया, उस दिन सुबह नूरानी थी
नैन मिले दोनों के, जैसे दोस्ती उनकी पुरानी थी
राणा राज सिंह का पत्र थमाया, उसमे युद्ध का संदेशा आया
बिन बोले ही बहुत कुछ हुआ जैसे प्रीत पुरानी थी

राजा ने रानी को देखा, उनके सिंदूर, मेहँदी, चेहरे को देखा
नव विवाहित रानी, उनके पेरो में लगे महावर की लाली वैसे के वैसे थी
कितना दुःखद होगा वो उनका दुखदाई बिछोह, सब की रूह सिहर उठी थी

युद्ध था हिंदुत्व का, युद्ध था हिन्दू बने रहने का
आंधी चली थी युद्धों की, अब राजा को भी राजपुताना की लाज बचानी थी

केशरिया बाना पहने युद्ध वेश में, रानी चोंक पड़ी वह अचंभित थी
शौर्य, पराक्रम और शत्रुओं का नाश यही तो राजपूतों की निशानी थी

आरती का थाल सजा, राजा के माथे तिलक लगा
"मै धन्य हुई ऐसा वीर पति पाकर राजपूत रमणीय इस दिन के लिए तो पुत्र को जन्म देती है"
ये रानी के मुख की वाणी थी

नवविवाहित राजा रानी कितनी मधुर उनकी वाणी थी
बोले राजा " तन मन धन किसी प्रकार का सुख ना दे सका प्रिये, क्या तुम मुझे भूल तो नही जाओंगी"

"ना स्वामी, अशुभ बातें ना बोलो मैं वीर राजपूतनी हूं, फिर एक वीर की अर्धांगिनी भी हूँ"
रानी की अति मधुर वाणी थी

राजा ने  घोड़े को ऐड़ लगाई, विदाई की भी अजब कहानी थी
राजा युद्ध भूमि में जा भिड़ा, उड़ा कर राजपुताना का बीड़ा
राजा रानी को रोज संदेशा भेजे "मै जरूर आऊंगा तुम मुझे भूल ना जाना"

युद्ध का तीसरा दिन था, आज फिर संदेशा रानी को भेजा
लिखा "तुम्हारे रक्षा कवच के प्रताप से शत्रुओं से लोहा ले रहे है, पर तुम्हारी बड़ी याद आती है, पत्र वाहक द्वारा अपनी कोई प्रिय निशानी अवश्य भेज देना, उसे देख कर मै मन हल्का कर लिया करूँगा"

पत्र पढ़कर रानी करें विचार 
युद्धरत पति अगर करें मेरी पुकार 
नेत्रों के सामने बस मेरा मुखड़ा हो 
तो राजा शत्रुओं से विजय नही कर पायेंगे
और राजा की हार राजपुताना की भी होगी हार 

विजय श्री का वरन करने को देती हूँ अंतिम निशानी
सेनापति ले जाकर देना ये पत्र और वस्त्र से ढकी हुई निशानी

रानी ने पत्र लिखा
"काट कर सब मोह बंधन
भेज रही हूँ अंतिम जीवन
आप राजपुताना के लिए कर्तव्यरत रहना
मै चली स्वर्ग को अपना कर्तव्य भूल ना जाना
कमर से निकल तलवार, धड़ से अलग किया सिर चला कर तलवार"

सिपाही के नेत्रों का सैलाब उमड़ पड़ा
कठोर कर्त्तव्य धर्म था सिपाही का
हाडा रानी का सिर, स्वर्ण थाल पे सझाया
सुहाग की चूनर से उसने रानी के सिर को ओढ़ाया
भरा मन लिए दौड़ पड़ा  युद्ध भूमि की और
राजा स्तब्ध हुआ, सिपाही क्यों अश्रु बहता
राजा कुछ समझ ना पाया, उसने थाल से पर्दा हटाया
फटी आँखों से देख रहे राजा, मुँह से बस इतना निकला है रानी
संदेही पति को ये क्या सजा दे डाली, खेर मै भी तुमसे मिलने आ रहा हूँ रानी

"राजा मांगी निशानी
सिर काट दियो क्षत्राणी"

विजय हुए राजा भाग खड़ा हुआ ओरंगजेब पर ये जीत का श्रेय किसे जाता है | राजा को, या राणा राज सिंह को या फिर हाडा रानी को या फिर अनोखी निशानी को

नोट
राजा : सलूम्बर के राव चुण्डावत रतन सिंह जी
रानी : कोटा के हाड़ा शासकों की पुत्री हाडा रानी 
राणा : राणा राज सिंह जी

ख़त्म हुई कहानी वो तो हाड़ा रानी थी


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:25am, Sat 08-02-2014
(#Rathoreorg20)
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Wednesday 5 November 2014

Natkhat MANWA ( नठखट मनवा ) POEM NO. 197 (Chandan Rathore)


POEM NO. 197
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नठखट मनवा
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मन की गति में दौड़े जाये बेला
उछल कूद करता जाए मनवा छेला

मनवा कोयल सा गीत गाये सुरीला
मन की इच्छाओं की तीव्र गति से बढ़ती मधुबेला

वैरागी सा मनवा गुमे अकेला
कूट नीतियों से भरा है मनवा मेला

मनवा की गाथा गाये कोकिला
अहम् , अहंकार से बहता मनवा रेला

लक्ष्मी देख मनवा बनता खर्चीला
बिन लक्ष्मी के इधर उधर भटकता अलबेला

मनवा ना माने किसी की, वो बहुत हटीला
अपार विचारों को आग पे, जलाता मनवा पतीला

थक कर मनवा, जाता मधुशाला
पी कर मधु,खुशियाँ मनाता मनवा अकेला

खुशियों में झूमे मनवा छेल-छबीला
उछल-कूद करता जाए मनवा छेला


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:05am, Sat 08-02-2014 
(#Rathoreorg20)
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Sunday 2 November 2014

B L A C K ( अँधेरा ) POEM NO. 196 (Chandan Rathore)



 Poem no.196
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अँधेरा (B L A C K)
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बेकसूर सा रंग
कई उसमे उमंग
अँधेरे के संग
खुद में मलंग

काल का काला रंग
मिलों लम्बी सुरंग
बिना सुर का सारंग
गुमनाम सा स्वर्ग


इठलाता हुआ स्वांग
नशे से लुप्त भांग
जीत की हजारों तरंग
जिंदगी उसके बिना बेरंग

जीवन पे दाग
उजाले का सुहाग
काले रंग पे बेदाग़
अँधेरे में लगी जैसे आग

मुश्किलों में मुश्किल
सवालों में सजकता
अपने अंतर्मन में
जलता हुआ चिराग

बस ये ही है अँधेरे की कहानी
अँधेरा जीवन की मनमानी
बंद आँखों में फिर नई सोच
उछल-उछल कर दुनिया की खोज

बस मौत नही जीवन सही
अँधेरे  की खोज उजाला है
वो उस से मिला नही
एक एक कतरा कतरा है
अँधेरा बस अँधेरा है
अँधेरा बस अँधेरा है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:42pm, Wed 05-02-2014
(#Rathoreorg20)
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Saturday 1 November 2014

Dohawali Part 1 ( दोहावली भाग 1) POEM NO. 195 (Chandan Rathore)


POEM No. 195
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दोहावली भाग 1 
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साईं भरोसे राठौड़ है, साईं ही उसका पालन हारा
पुरे जग में है नाम साईं का , फिर तू क्यों फिरे मारा मारा  || 1 ||

गुरु की वाणी बोलिए, गुरु करे सो ना कर 
एक दिन तर जाएगा, गुरु कहे सो कर  || 2 ||

प्रेम व्यवहार सब जूठ है, इन से मोह ना कर
मोह रखे सब तुझसे, ऐसा काम तू कर || 3 ||

शब्दों का तू तोल रख, शब्द बड़े अनमोल 
बुरे शब्दों का कोई मोल नही , अच्छे शब्द ही तू बोल || 4 ||  

बड़े जो आये पहले तो, बड़े ना कोई होय 
काम करे जो बिन स्वार्थ के, बड़े वो जग में होय || 5 ||

अच्छी कला कलाकार की, बुरी कला सरकार की 
तूने जो पहचान ली तो, फिर तुझे फ़िक्र किस बात की || 6 ||

मन में उमड़े भाव तेरे, लिखने मै  तू दक्ष होय 
हो रही वैरागी दुनिया, तू क्यों उनके लिए रोय || 7 ||

मनडी मटकी फूटे गई, मनडे में ना कोई समाय
अब समझ ले  बात पते की, कुछ भी साथ ना जाय  || 8 ||

मौत ना ढूंढे पाटनर, मरने वाला ना संग ले जाए
जी कर कुछ भी ना किया रे बंधे, अब मौत में क्यों समय लगाय || 9 ||

बिन काठी कट ना पायेगी, बिन काठ के कैसे तू मर पाये  
काठ जले तो तू जले , वार्ना अध जला ही रह जाए || 10 ||


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

02:48pm, Tue 04-02-2014 
(#Rathoreorg20)
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