Sunday 25 May 2014

Mera Sapna (मेरा सपना ) POEM No. 171 (Chandan Rathore)


POEM No. 171
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मेरा सपना 
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सब गम अपना 
सबको खुश रखना 

नही चाहिये माया 
साथ रहे नाम कमाया

रहे बुजुर्गों का साया 
मिले एक पेड़ की छाया 

सुकून से भरा रास्ता 
हो मेरी भगवान मे आस्था 

मेरे जैसे हजारों लिखने वाले बनाऊ 
सब रहे यहाँ और मै कही गुम हो जाऊ 

रो रो कर सारी थकान उतार दूँ 
मै रहूँ सब के दिल में ऐसी कोई कहानी बनादूँ 

कानों मै मुझे सुनाई दे मौत-ए-कहानी 
जिसे सोच लू मेरी मौत -ए -कहानी 

मेरे मरने पर कोई ना रोयें 
 उस समय मेरे पास कोई ना सोयें 

दान हो शरीर मेरा 
मिले उसको नया चेहरा 

जन -जन  के कानों में मेरी बात हो 
सब से मेरी एक काश मुलाकात हो 

एक छोटा सा आश्रम सा घर हो 
उसमें सभी रानी बेटियाँ मेरे संग हो 

एक शिक्षा का मंदिर बनाऊँ 
जिस पे अपना नाम लिखाऊं 

निसहयों के लिए मै सहायक बनूँ 
कुछ भी करू हमेशा उनके संग रहूँ 

मेरी जीवनी की एक चल चित्र बनाऊँ 
उससे  मेरे एक और सपने को मंजिल पाऊँ 
हर दम  मुझसे अच्छा काम हो 
बदनामी ना मेरे साथ हो 

माँ-पा की खुशियों को पूरा करू 
हर दम उनके पास रह कर उनकी सेवा करू 

जीवन में हर दम दुःख कठिनाई रहे 
छल कपट करने वाले हर दम  मेरे साथ रहे 

जिधर से भी गुजरु शान से सिर ऊपर हो 
मेरे कामों के उदारहण सभी के मुख पे हो 

लिखू हमेशा सब के मन का 
सम्मान करू हर शब्द का 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:00pm, Mon 09-12-2013 
(#Rathoreorg20)
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Thursday 22 May 2014

Hamari Robo (हमारी रोबो) POEM No. 170 (Chandan Rathore)


POEM No.  170
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हमारी रोबो
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गुरुर उसका शरीर
मेला -कुचैला  सा नीर

गमण्ड उसका श्रृंगार 
सोच उसकी सरकार

अपनी ही वो हर दम चलाती
 खुद काम गलत कर मुझ पर  चिल्लाती

सोच उसकी बहुत विशाल 
पर रखती ना खुद का ख्याल

गुरुर इतना वो करती
जैसे पूरा जहाँ उसकी मुट्ठी  में करती

अब तो वो गमण्ड में है रहती 
जैसे सारा दर्द वो ही है सहती

बदल जा अब भी वक्त है
 फिर किसी के हाथ ना ये वक्त है 

फिर रोयेगी अपने कर्म देख कर 
बहुत पछताएगी मुझे ये सितम दे कर



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

10:51pm, Mon 09-12-2013  
(#Rathoreorg20)
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Saturday 17 May 2014

Roo Rahi Raat (रो रही रात) POEM No. 169 (Chandan Rathore)


POEM NO. 169
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रो रही रात 
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हो रही तारों से बात 
आज फिर रो रही है रात 

गम की कश्ती दौड़ रही है मन में 
उछल -उछल  कर दौड़ रही मन के आँगन में 
हो रही फिर आज बरसात 
आज फिर रो रही है रात 

क्यों ना पहचाना मै उस बदनाम शख्स को 
जिसे दुनिया ने ठुकराया 
और मेने अपना माना उसको 
भूल गई थी वो मेरी हर बात 
आज फिर रो रही है रात 

इस दर्द को हर बार खुरेदता है वो गुनहगार 
उसका हर जख्म था मजेदार 
हमेशा अधूरी रहती थी हमारी मुलाकात 
आज फिर रो रही 

क्यों मुझे सता  रही  वो 
क्यों मेरी आँखें भीगा रही वो 
देख ना "रोबो" मेरी हो गई आज काली रात 
आज फिर रो रही रात 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:40am, Sun 08-12-2013
(#Rathoreorg20)
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Thursday 8 May 2014

Apni Friendship (अपनी Friendship) POEM No. 168 (Chandan Rathore)


POEM No. 168
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अपनी  Friendship
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एक अन्जाने  सफर में एक अंजानी Friendship
दोनों थे अन्जान फिर भी बढ़ती रही वो  Friendship

करते थे खूब मस्ती, सिर्फ आंखें और इशारों से 
हाय !! बाय  !! का था साथ चला कई दिनों से 

बात ना हुई कभी फिर भी थी पक्की friendship
एक दिन अंजाने में अन्जानी खत्म हुई friendship

खाली खाली सा लगते थे सारे दिन 
आँखे ढूंढ़ती बस उस अंजान दोस्त को पुरे दिन  

कोई खबर नही थी उस अन्जाने दोस्त की 
लगता जैसे कोई परी थी 
जो आई और थोड़ी सी खुशी दे कर वापस कई उड़ गई थी 
अब कभी नही आयेगी वो और डूब चुकी थी हमारी friendship

  एक दिन वो मिली किसी मोड़ पर 
देखते ही मुश्कान थी मेरे होठों पर 
ऐसा लगा मानो परी  हो धरती पर 

फिर कही गुम जैसे कोई सापना था  मेरा  
कई दिन बाद किसी न. से सन्देश आया 
नये न. देख मेरा सिर चकराया 

मेने कहा कोन हो नाम तो बताना जरा 
जवाब आया "दोस्त हूँ भूल गये मै अंजानी दोस्त"
कई सवालों  के किसी का आज फ़िर से पर्दा उठाया 
मेने अपने खुदा को
 हँसकर कहा "तूने हमें  वापस मिलाया "

  
आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:13 PM 08/12/2013
(#Rathoreorg20)
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