Monday 26 November 2012

मेरी प्यारी चोकलेट (Chandan Rathore)

माँ ने मुझे दी चोकलेट
बार बार देखू उसे
कही खो न जाए
मेरी प्यारी चोकलेट

स्कुल जाते जाते रास्ते  में
देखा मेने उसे कई बार
स्कुल पहुच रख ली जेब में
कही कोई छीन ना ले मुझसे
मेरी प्यारी चोकलेट

गया स्कुल की प्राथना में
हाथ मेरा जेब पे कही  गिर ना जाए मेरी चोकलेट
पर खाता नही में उसे 
खाऊंगा बाद में बचा रखी  हे
 मेने एक चोकलेट


जी लचाये रहा न जाए
फिर  भी ना खाऊ  में चोकलेट
डाल जेब में हात निकल के देखि
हे अब भी उसे देख ख़ुशी हुई
क्लास में हु मगर ध्यान मेरा  उसी पे
माँ ने जो दी मुझे एक चोकलेट

सब को दिखाऊ
सब को चीडाऊ
पर दू ना किसी  को चोकलेट

अचानक मेरा ध्यान भटका
मेने दोनों जेब डुंडी  बेग भी देख लिया
पर मेरी खो चुकी थी चोकलेट
रोया बहुत डुंडा बहुत पर  नही मेरी चोकलेट

हुआ  मायूस देखा बार बार जेब में
 पर खो चुकी थी मेरी चोकलेट
माँ को देखा बेग रखा घर पे और गया बिस्तर  पर
सोते सोते आ गई नींद

उठ कर  फिर  आई याद  उस चोकलेट की
मन मार कर बेठा पठने
और जेसे ही बुक खोली तो उसमे पड़ी थी वो चोकलेट
जल्दी से निकली दीदी को बताई और उसे चिढाते हुए बोला
"ये ली मेली चोत्लेट"
दीदी बोली  मुझे देदो ये तो
फिर बोला "नि दूंगा ए तो मेली हे आप तो नि दुगा"
मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था 
मेरी चोकलेट का स्वाद बड़ा प्यारा था
जट से खोली और मुह में रखी 
लगाया चटखारा और खत्म  हुई मेरी प्यारी चोकलेट
"बचपन बड़ा ही अजीब  था 
नटखट चंचल मेरा स्वभाव  था 
आज ना वो चोकलेट ना वो  स्नेह''
बड़ा याद आता   हे बचपन मेरा


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

08:35pm ,Fri 23-11-2012

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Tuesday 20 November 2012

मेरी कहानी मेरी जुबानी भाग 2 (Chandan Rathore)

कुछ  साल  और  निकले  में  पढता  रहा  सब  मुझे  पढ़ाते  रहे
आ गया  वो  दिन  जिस   दिन  होना  था  माँ  से  दूर
सब  छोड़   गये  अकेले  कोई  नही  था   मेरे  पास
अकेले  ही  लड़ना  था  दुनिया  से
निकल  पड़ा  लड़ने  दुनिया  से

अब  में  खुद  निर्णय  लेने  लगा  दिल  से
कुछ   दुनिया  से  सिखा
कुछ  दुनिया  को  सिखाया
कई  गम  सहे  कई  गम  पिये

कुछ  दिन  अपने  ही  घर  में  टिफिन  भी  खाया
कुछ  दिन  अपने  देश  में  भी  होटल  पे  खाया
जिन्दगी  में  गमो  ने  जेसे  घर   ही  बना   लिया  था
रोता  अकेले  में  पर  कोई  आंसू    पोछने  वाला  ना  था

ऊधार   जेसे  मेरे  सर  पे  हो  दुनिया   का  ऐसा    लगने  लगा  था
धीरे  धीरे  वो  दिन  भी  निकले
वो  तो  करम  थे  मेरे  पिछले
हर  गम  मुझे  कुछ  ना   कुछ  सिखा  के  गया
हर  गम  मुझे  एक  सीडी  ऊपर  चढ़ा   के  गया

वो  गम  ना  होते  आज  में  ऐसा  ना  होता
ना  में  कुछ   बन  पाता  ना  कुछ   मुझे  मिल  पाता
गमो  ने  नोकरी  करना  भी  सिखाया
3 महीने  फ्री  फिर  600 फिर  6 महीने  1200 में  किया  मेने  काम
फिर  उदयपुर    आके   मेने  किया  अपना  नाम

काम  और  पढाई  दोनों  किया   मेने  साथ -साथ
और  परीक्षा   से  भी  किये   मेने  दो  -दो  हाथ
पर  गम  तो  हमेशा  साथ  ही  रहा
धीरे  धीरे   गम  ने  लिखना  सिखाया
जिसको  समझाना   था  उसको  कुछ   समझा   ना  पाया
लिखता  रहा  दिल  से  अपने  अरमानो  को
उतारता  रहा  कागजो  पे   अपने  जख्मो   को
हँसकर  निकालता   रहा  अपने  गमो   को

"मेरी  जिन्दगी  एक  कहानी  हे
में  उसका  वो  मेरी  दीवानी  हे
केसे  करू  साकार  मेरा  हर  एक  सपना
बस  छोटी  सी  मेरी  जिंदगानी  हे "
बस  इसी  तरह   जी  रहा अपनी जिन्दगी  को


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

12:02 am,Tue 20-11-2012 

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मेरी कहानी मेरी जुबानी (Chandan Rathore)

आज  आया  में  दुनिया   में
आज  देखा  मेने  ये  संसार
बड़ा  ही  प्यारा  बड़ा  ही  सुन्दर   हे  ये  संसार
माँ  ने  मुझे  अपने  गले  से  लगाया
उसने  मुझे  आज  अपना  बताया
डॉ.   ने  मेरे  पापा  को  बुलाया
उन्होंने  मुझे  गोदी  में  उठाया

दो  दिन  बाद  में  अपने  घर  आया
कुछ   दिन  बीते  धीरे  धीरे  में  बड़ा  हुआ
सब  के  दिल  को  में  भाने  लगा
में  अपनी  ही  धुन  में  बड़ा होने लगा

कोई  मुझे  नही   समझता
में  रोता  चिल्लाता   पर
किसी  को  समझ   में  ना  आता
कुछ  दर्द  कुछ   खुशी  में
केसे  बताऊ  सब  को  में
इस  दुनिया  में  क्यों  आया

माँ  सोते   सोते  कमर  दर्द  करती  हे
और  में  बहुत  परेशान   करता  हु  ये  माँ  कहती  हे
मुझे  भूख  लगे  तो  में  केसे  बताऊ
मुझे  प्यास   लगे  तो  में  दूध  केसे  मंगू
माँ  मुझे  गोदी  में  उठा  लो
माँ  मुझे  दुध  पिला  दो

में  भूखा  हु  कुछ   खिला  दो
में  भी  आप  के  जेसे संगर्ष करना  चाहता  हु
में  भाई  के  जेसे  चलना  चाहता  हु
में  दीदी  के  जेसे  पढना   चाहता  हु
में  पापा  के  जेसे  बनना   चाहता   हु
माँ  तुम्हारे  अलावा  मेरी  कोई  नही  सुनता
माँ  तुम्हारे  अलावा  मेरी  जुबा  कोई  नही  समझता

आज  में  छ: महीने  का  हुआ
आज  मेने  पहली  बार  पानी  पिया
अब  तो  मुझे  दीखता  भी  हे
आते  जाते  लोगो   को  में  देख  के   हस्ता  भी  हु
धीरे  धीरे  दिन  निकले  में  सब  का  चहिता   होने  लगा

अब  में  धीरे  धीरे  अपने
पेरो  को  घसीट   ते  हुए  चलने  लगा
जो  दिखता  मुझे  सब   को  लेने  के  लिए  दोड़ने  लगा
पर  मेरे  हाथ   इतने  मजबूत  ना  थे
सब  को  समेटना  मेरे  बस   में  कहा  थे

अब  में  एक  साल  का  हुआ
अब  में  कुछ   समझने   भी  लगा
जो  देखू  लोगो  को  वेसा   करने  लगा
धीरे  धीरे  साल  दर  साल  निकले
आज  माँ  ने  पहली  बार  स्कुल  भेजा

सब  नया  नया  सा  था  कोई  अपना  नही   सब  पराये  थे
आज  मुझे  सब  कुछ   ना  कुछ   सिखा   रहे  थे
हम  भी  बड़ी   जल्दी   सीखे  जा   रहे  थे
निकले  और  साल  हमने  जाना   दुनिया  का  हाल
करता  रहा  दुनिया  की  जय  जय   कार
पर  आज  पता  चलता  हे  की  सब  हे  बेकार


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़
(Facebook,PoemOcean,Google+,Twitter,Udaipur Talents)

10:11 am
3/11/012

Monday 19 November 2012

Khuch lamhe (chandan rathore)

Jingi ke khuch pal jinhe me thaam na sakaa
khuch riste jinhe me apna bana k na rakh sakaa
khuch hasi khusi k din jo bhut yaad aate he
khuch bite lamhe hame rulaa jate he
jo aaya hamari jindgi me naya ithash likh k gya
jab bhi dekhe bite lahme tasviro me
har 1 photo rula tha gya

jivan ka aaina muje sab dikhate rahe
me usme apne ap ko savarta raha
khuch lamhe jo muje bahut rulaa jaate he
kitna bhi chahu ki rulau na mahfil ko
par us wakt mere aashu muje dhokha de jaate he

mahfil me jaana 6od diya
kisi ko apna bana na 6od diya
ab na me khuch pana chahta hu na khuch khona
bas jo mere pass he unhe na chahta me khona

wo lamhe wo baate
wo yaariya wo mahfile
wo din wo mulakate
jab bhi aate mere jahan me
dil tadapta he us jindgi ko
kese rok paata me un lamho ko

aakhe roti  akele me
sasee ruk jaati  viraniyo me
ham vahi thar jaate he
or roo padti meri tanhai

kese karu baya mere vicharo ko
kese bhulau wo lamhe jinhe me thaam na sakaa dosto

jaa raha he wakt ise tham lo
haath se nhi use apni yaado me basa lo
kal mile na mile ham hamri yaado ko apni yaado me basa lo


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़
(Facebook,PoemOcean,Google+,Twitter,Udaipur Talents)

10:16 pm
19/11/012

Sunday 4 November 2012

भाई (Chandan Rathore)


हम भी  तेरे इश्क में पागल हे भाई
तेरे इश्क के सामने मेरा इश्क फिखा हे भाई
तू मेरी जान ये बताऊ केसे मेरे भाई
आज कुछ  लम्हे याद आये जो  तेरे साथ बिताये भाई
जिसने रखा चार  साल  तक खयाल वो तू हे भाई
आज  लिखते लिखते  आखों  से आशु आया रे भाई
तू सदा खुश रहे ये दुवा हे भाई


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़
(Facebook,PoemOcean,Google+,Twitter,Udaipur Talents)

1:48pm
4/11/012

Friday 2 November 2012

Name He Kranti ..( Chandan Rathore)



name he uska kranti
mere man ko wo bhati
wo apni man ki he karti
wo kisi ki na sunti
clg kabhi kabhi wo aati
name he kranti
mere wo man ko he bhati

chanchal komal nirmal he uski kaya
gussaa karna he fitrat uski
pyar karne me wo he kachi
name he kranti
mere wo man ko bhati

sab ki dost kahlati
sundarta ki murat
vani me badi mithas he
nathkhat us ka svbhav he
aavo milo or ab kya wo kahti
name he kranti
mere mann ko wo bhati

har baat pe manna wo karti
wo kisi se na darti
apne kayalo me wo rahti
madhuri usko he bhati
salman ko bhi pasand wo karti
gar walo ke liye khuch na sunti
name he kranti
mere wo mann ko bhati

he badi pyari
sab se wo niyari
papa ki dulari
mujse wo pareshan bechari
jish raste ni jaana
us rashte ka name nhi lena asa wo kahti
padhne se he parhej
moz masti se he  uko krez
bhumi se ldai he karti
par uski chinta bhi bhut he karti
vah tikha he kahati
khuch bhi dene se he katrati
ab name kya kranti

har jagh pungi lagati
ram lal ki bhut udati
galiya bhi bhut he aati
name bhi to he kranti

hasi mzak me he sab ko leti
fir bhi mere wo mann ko bhati
name he wo hi kranti


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़
(Facebook,PoemOcean,Google+,Twitter,Udaipur Talents)

10:44
30/10/012
modify
11:11 pm
1:11:012