Sunday 19 January 2014

Hunar Kho Raha Tha ( हुनर खो रहा था ) POEM No. 149 (Chandan Rathore)

POEM No. 149
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हुनर खो रहा था
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एक रोज कही मै खो रहा था
लिखने का मेरा हुनर खो रहा था
बर्दास्त नही हुई जब समय ने दी निराशा  कि राह
उस राह पे मेरा हुनर खो रहा था 

चलता रहा फिर भी ना रुका कभी 
मेरा वक्त मुझ पे हँस रहा था और मै रो रहा था 
उस वक्त मेरे यारों  मेरा हुनर खो रहा था 

इम्तिहानों  कि जड़ी सी लग गई थी 
हर काम मेरा गलत हो रहा था 
मै अपने दुःखो को सम्भाल  कर  ख़त्म हो रहा था 
इसी बिच मेरा हुनर खो रहा था 

मेरे विचारों का धुँवा कहीं  और बह रहा था 
मेरे सपनो का ढेर हो रहा था 
मेरा सारा अरमान जब नदी से नाला हो रहा था 
में रो रहा और मेरा हुनर खो रहा था 

एक वक्त ऐसा भी था मेरे जीवन में
मै  लिख रहा था और जमाना रो रहा था 
मै  कही चल रहा और जमाना किस और खिंच रहा था 
इस बिच मेरे यारों मेरा हुनर खो रहा था 


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

11:28am, Mon 16-09-2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_

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