POEM No.148
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रात कोई हो आई
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अरमानो कि अंजुमन में
मेरे दिल कि हर धड़कन में
समा गई हो जैसे रात कोई हो आई
रात कोई हो आई ( 2 )
बेकाबू सा दिल है मेरा
रात के बाद ही तो सवेरा
मिलो कि दुरी है तुमसे
जैसे रात कोई हूँ आई
रात कोई हो आई
हंसती महफ़िल में आता हूँ
महफ़िल को रुला के जाता हूँ
सुरज नहीं जीवन में बस अँधियारा सहता जाता हूँ
सही नही जाती अब तुझसे ये जुदाई
जैसे रात कोई हो आई
जैसे रात कोई हो आई
बिखरा पड़ा हूँ मै यहाँ
तुझसे होकर के जुदा
तुम छोड़ गये मुझ पे तन्हाई
जैसे रात कोई हो आई
जैसे रात कोई हो आई
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)
11:22am, Wed 11-09-2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_
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