Sunday 9 February 2014

Insan Hu Me ( इंसान हूँ मै ) POEM No. 153 (Chandan Rathore)



POEM No. 153
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इंसान हूँ मै 
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चाहत है जो मुझे 
मिलती क्यों नहीं
इंसान हूँ मै 
मेरी चाहत कम होती नहीं

लक्ष बहुत है मन में 
पूरा कुछ भी होता नहीं
सुन लेता हूँ सब कि मै 
कुछ कहना मुझको आता नहीं

मै क्या हूँ मेरा मकसद क्या है 
कुछ भी मुझे खबर नहीं 
किस मकसद को लेके चला हूँ 
किस राह  पे मै चल रहा हूँ मुझे खबर नहीं

ना मेरा कोई, ना मै  किसी का 
किस वजूद से हूँ मै  मुझे अंदाजा नहीं 
सोच रहा हूँ सबकी पर 
सब को मेरी फिकर नहीं

गुमराह हूँ दुनियाँ  से 
हर शख्स कि नजर मुझे खबर नहीं 
चाहत है जो मुझे 
मिलती क्यों नहीं 
इंसान हूँ मै 
मेरी चाहत कम होती क्यों नहीं 



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 
06:36pm, Fri 11-10-2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_ 

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