लगा के सिंदूर तेरे माथे पे सजी थी
उठ के डोली में तेरे घर को चली थी
बन के मंगलसूत्र तेरे गले में पड़ी थी
में किसी कि ना होके बस तेरी हुई थी
उस दिन बन के मेहंदी तेरे हाथों में सजी थी
कानों के जुमके से पूछ जरा वो हर झंकार तेरी थी
आज अवगत हुई कि मेरी हर सहेली सही थी
जि रही थी तेरे प्यार में मुर्दो कि तरह हर सांस तेरी थी
तू ठुकरा गया फिर भी, मेरी याद ,मेरी फरयाद बस वही थी
तू कमजोर निकला छोड़ आज मुझे अकेला मेरी हर राह बस तेरी थी
मेरी आखो से जो आसुंओ कि माला थी बस वो तेरे लिए मेने फेरी थी
बन के मेहंदी तेरे हाथों में सजी थी
लगा के सिंदूर तेरे माथे पे सजी थी
लहू लुहान है सपने मेरे जब में तेरी कब्र पे खड़ी थी
हंस कर हो जाती मै भी तुझ पे न्योछावर पर तू कमजोर कड़ी थी
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
2:18 PM 23/11/2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_