POEM No. 168
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अपनी Friendship
अपनी Friendship
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एक अन्जाने सफर में एक अंजानी Friendship
दोनों थे अन्जान फिर भी बढ़ती रही वो Friendship
करते थे खूब मस्ती, सिर्फ आंखें और इशारों से
हाय !! बाय !! का था साथ चला कई दिनों से
बात ना हुई कभी फिर भी थी पक्की friendship
एक दिन अंजाने में अन्जानी खत्म हुई friendship
खाली खाली सा लगते थे सारे दिन
आँखे ढूंढ़ती बस उस अंजान दोस्त को पुरे दिन
कोई खबर नही थी उस अन्जाने दोस्त की
लगता जैसे कोई परी थी
जो आई और थोड़ी सी खुशी दे कर वापस कई उड़ गई थी
अब कभी नही आयेगी वो और डूब चुकी थी हमारी friendship
एक दिन वो मिली किसी मोड़ पर
देखते ही मुश्कान थी मेरे होठों पर
ऐसा लगा मानो परी हो धरती पर
फिर कही गुम जैसे कोई सापना था मेरा
कई दिन बाद किसी न. से सन्देश आया
नये न. देख मेरा सिर चकराया
मेने कहा कोन हो नाम तो बताना जरा
जवाब आया "दोस्त हूँ भूल गये मै अंजानी दोस्त"
कई सवालों के किसी का आज फ़िर से पर्दा उठाया
मेने अपने खुदा को
हँसकर कहा "तूने हमें वापस मिलाया "
हँसकर कहा "तूने हमें वापस मिलाया "
आपका शुभचिंतक
11:13 PM 08/12/2013
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
11:13 PM 08/12/2013
(#Rathoreorg20)
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