Sunday 17 May 2015

Ajab Kavita (अजब कविता) POEM NO. 225 (Chandan Rathore)


POEM NO. 225
---------
अजब कविता
---------------

वो सोये तो कविता
वो जागे तो कविता
शब्दों का जनजाल है फिर भी
खो रही थी कविता

बात ना होती फिर
यादों में थी कविता
हस रहा ये जमाना  
और फुट फुट के रो रही कविता

कविता ना बोले
कविता कई राज खोले
लोगों के खुशियों के माहोल में
झुर झुर रोती है कविता 

कवि की भावना
ना उसका रूप डरावना
फिर क्यों भागे लोग
अकेली ही रह गई है कविता 

पास आओ, मुझे समझाओं
थोड़ा पढ़ो, फिर समझाओं
तुम्हारी ही कहानी हूँ में
अब अपना भी लो तुम कविता

भारी भीड़ नही, कुछ ही सही
पर वो भी कविता के इच्छुक हो
तुम भले ही ना पढ़ों
पर ठुकराओ तो ना तुम कविता 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

9:24 PM 17/06/2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂ 

No comments:

Post a Comment

आप के विचारो का स्वागत हें ..