POEM NO. 224
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संभल ना पाता हूँ
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एक दुझे को समझने को रोज चला मै आता हूँ
देख कर मेरी कमजोरी मै संभल ना पाता हूँ
भूखा उठता हूँ तेरे प्यार में भूखा सो जाता हूँ
नही मै आता, नही मै जाता फिर भी खो जाता हूँ
तेरे प्यार के खातिर, लोगों के दर्द लिख जाता हूँ
लोग जब पढ़कर रोते है तो मै सहम सा जाता हूँ
आज भी तेरी नामौजूदगी में, मै पल पल मर सा जाता हूँ
तू कही खुश, में तुझमे खुश, ख़ुशी कहा है, मै समझ ना पाता हूँ
ऐ प्यार की गलियाँ उस तक पहुँचने का रास्ता दिखा दे
मै उसके बिना आज भी गुम हूँ मै उसके बिना आज भी गुम हूँ
कमबख्त मारा उसके प्यार में बेचारा फिर फिर ढूंढ़ता हूँ
तेरी ख़ुदग़र्ज़ीयो को आज भी में चुप चाप सह जाता हूँ
एक दुझे को समजने को रोज चला मै आता हूँ
देख कर मेरी कमजोरी मै सम्भलना पाता हूँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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9:01 PM 17/06/2014
(#Rathoreorg20)
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