Saturday 28 June 2014

Khamosh alfaj .... ( खामोश अल्फाज... ) POEM No. 173 (Chandan Rathore)


POEM No. 173
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खामोश अल्फाज. ...
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शब्दों के आश्मान से शब्द लिए जा  रहा हूँ
सफ़ेद कफ़न पे मेरे आँशु लिखे जा रहा हूँ
फिर भी चढ़ा नही ये कफ़न आज तक किसी लाश पर
लेकर फिरता  हूँ गली-गली, कभी कोई आश नही कभी अच्छा अहसास नही

मन गमगीन हुआ फिरता है, विचारों की कोई शाम नही
आशा निराशा की फ़िक्र नही हँसी-ख़ुशी का जिक्र नही
अनजान बना फिरता हूँ दुनिया से की मै खुश हूँ
हा खुश हूँ मै सब को दुःखी कर के मेरा कोई अब मुकाम नही

लिख दिए कई विचार पर आज भी लिखना आता नही
शब्द  हो ऎसे जिनके अर्थ हमको आज भी खबर नही
कैसे लिखता हूँ ,कैसे सोचता हूँ , मेरे मस्तिष्क तक को खबर नही
शरीर मेरा  काम उसका तेरे बिना मै कुछ भी नही

आवारा विचारों की माला बना रहा हूँ
दुनिया के दिए ग़मों को हस्स कर पिए जा रहा हूँ
मेरी खामोशी बहुत कुछ कहती है दोस्तों
मेरी अपनी ही गाथा लिख लिख कर सुना रहा हूँ



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

9:59 AM 15/12/2013
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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