Sunday 6 July 2014

Veragya... ( वैराग्य... ) POEM No. 174 (Chandan Rathore)


POEM NO. 174
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वैराग्य
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सब छोड़ मुसाफिर अपना ले वैराग्य
घर, रिश्ते, समाज और अपनों को ना त्याग

दान कर ले विचार सब, विचार में ले वैराग्य
बैठ जा अब तो रे प्राणी, ना दौड़-भाग

भाग-भाग कब तक भागेगा
करने कलेवा पीछे तेरे,भाग रहे यमराज
संसार की हर वस्तु भय देगी, नीडर है वैराग्य

शांत कर अपने मन को
बस कर ले वैराग्य अपने मन को
डर का पिछा छोड़ रे बंधे
डर तेरे वैराग्य से डर जायेगा
आज छोड़ा जो इस संसार से मोह
तू वैराग्य हो जाएगा

मिट्टी का शरीर मिट्टी सा अपना ले
खुद को पहचान ने की हिम्मत कर प्यारे
शिष्टाचार,सदगुण, सदभावना, ये सब अपना ले

अहम्, वहम्,क्रोध,लोभ,लालच, सब का कर त्याग
और बन जा मेरे बंधे तू वैराग्य

मेरे विचार शुद्ध हो
मेरा आचरण शुद्ध हो
मेरे कर्म जब शुद्ध हो
मै भी वैरागी मुझमे भी वैराग्य हो

कर्म धर्म सब ठीक हो
मन में ना कोई उछाल हो
संसारियों से प्रेम रहे पर अपनत्व नही
बल का प्रयोग ना करू
किसी वस्तु की चाह ना करू
सोच मेरी जब स्थिर हो
तब अपना लूंगा मै भी वैराग्य


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:20am, Tue 17-12-2013  
(#Rathoreorg20)
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