Wednesday 20 August 2014

Tera Jikr (तेरा जिक्र) POEM No. 181 (Chandan Rathore)


POEM No. 181
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तेरा जिक्र
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लिखने जो लगा तो ख्याल में बाँधा तुमने
इन सजे-धजे शब्दों को दिल से निकाला तुमने

यु जिक्र तेरा जब महफ़िल में आता है
सब हँसते है और ये दिल भर आता है

तेरी गैर मौजूदगी आज भी खलती है
तेरे प्यार की पुरवाई आज भी दिल में चलती है

यु रुख़्सार हुआ करता था तुमसे कभी
अब तो तेरा ही जिक्र अल्फाजों में निकलता है

सुन ले ऐ हसी तू रखना ख्याल अपना
मुझ से अब मेरी जिंदगी भी ना संभालती है

तेरे जिक्र की जब बात आती है
मेरे सुने से आँगन में शब्दों की बाढ़ आ जाती है

तेरी फ़िक्र तेरा जिक्र है अब जहाँ मै मेरे
मेरा दर्द और तेरा जिक्र अब कागज पर बिखरते है 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

09:53pm, Sat 11-01-2014 
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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