Sunday 21 July 2013

SUKUN (सुकून) POEM NO. 111 (Chandan Rathore)


POEM NO. 111
सुकून
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माँ की आश्मान जैसी  बाहों में जो सुकून  होता था आज संसार की भीड़ में वो सुकून कहा

जब भाई मेरा सर चूमता था और मेरी और देख कर मुश्कुराता था
आज वो सुकून कहा

छोटी छोटी मिटटी  की गोलिया बना ने में जो सुकून था
आज वो सुकून कहा

माँ की गोदी में रोते रोते सो जाने में जो सुकून था
आज मखमली बिस्तर में वो सुकून कहा

जब एक बिस्किट के 2  टुकड़े कर के बहन बोले ये लो खाओ
जब माँ अपने हाथ आगे कर कहती ये ले बेटा खाना खा ले
जब पा कोई मिठाई का डिब्बा  हाथ में पकड़ा कर बोले ये लो बेटा
 वो परिवार का सुकून  कहा

छोटे छोटे कदमो से चलते चलते पूरा घर नाप लेते थे
आज पूरा संसार भी नाप ले तो वो सुकून कहा

वो स्कूल में कदम रखते सब दोस्त दोड़कर गले लगा लेते थे
आज पूरा collage  साथ है फिर भी वो सुकून कहा

ख़त्म  हो गया  सुकून जीवन का
बढ़ गया  जूनून जीवन का
आज कितना ही आगे क्यों ना हु मै दुनिया से
पर जो बचपन में भागने में जो सुकून था वो सुकून आगे बढ़ने में कहा

कमजोर कलियों से हाथ थे
नन्ही आँखों  में बड़े सपने थे
आज के सपनो  में अब दम कहा
आज के जीवन में वो सुकून कहा

जब  खुला आश्मान था सामने
आज बंधे  हुए   है  सारे कदम
सब के साथ बेठ कर खाने में जो सुकून था
आज बंद कमरे में वो सुकून कहा

आज वो सुकून कहा  .. .
आज वो सुकून कहा  .. .

आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

9:34 AM 07/06/2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Chandan Rathore (Official) ░▒▓█▇▅▃▂_

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