Friday 15 November 2013

Ek Parinda.... (एक परिंदा …… ) Poem No. 134 (Chandan Rathore)

POEM No.134
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      एक परिंदा …… 
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आजाद परिंदे के पर काटे इस दुनिया ने 
ख़ुशी बांटी उसने और उसे से गम बाते इस दुनिया ने 

उड़ाना ही तो चाहता था, शायद गलती कि थी उसने 
हर गलती में हिस्सा डाला इस दुनिया ने 

बेखोफ उड़ता था पहले, आज भीड़ में अकेला छोड़ा इस दुनिया ने 
मन मलंग था , होसलो से भरा था आज नाता थोड़ चला दुनिया से 

बेखबर था इस जहाँ से कि कितना खुदगर्ज हे जमाना  
ख्वाब  बुनता नई सोच रखता एक पल में कमजोर किया इस दुनिया ने 

इकरार-ए-मोहबत भी रखता था, अपनी आशिक़ी देख बहुत खुश होता था 
उस बेजुबान के सारे सपनो को ख़तम किया इस दुनिया ने 


 आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

8:42 AM 27/07/2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_

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