Poem no. 104
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अब तो जाग मुसाफिर
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उठ मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
देख मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
कदम बढ़ा सोच क्या रहा है प्यारे
देख तेरी मंजिल तुझे पुकारे
उठ आलस्य छोड़ निकल अपने पथ पर
रख नजर दूर की और दोड जा प्यारे
कर लिया आराम बहुत
सोच भी लिया तुने बहुत
आज गर पीछे हटा तो सोच ले प्यारे
देख मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
घबराना ना तू रुकना ना
कही कदम ना थक जाए प्यारे
होसले के बना ले पहाड़
और भीड़ जा हर मुश्किल से प्यारे
काम से जी ना चुरा
काम ही तुझे हर पल सँवारे
कर जा तू काम ऐसा इस जग में
की दुनिया का हर सक्श बस तुझे पुकारे
उठ मुसाफिर तुझे तेरी मंजिल पुकारे
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उठ मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
देख मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
कदम बढ़ा सोच क्या रहा है प्यारे
देख तेरी मंजिल तुझे पुकारे
उठ आलस्य छोड़ निकल अपने पथ पर
रख नजर दूर की और दोड जा प्यारे
कर लिया आराम बहुत
सोच भी लिया तुने बहुत
आज गर पीछे हटा तो सोच ले प्यारे
देख मुसाफिर तेरी मंजिल तुझे पुकारे
घबराना ना तू रुकना ना
कही कदम ना थक जाए प्यारे
होसले के बना ले पहाड़
और भीड़ जा हर मुश्किल से प्यारे
काम से जी ना चुरा
काम ही तुझे हर पल सँवारे
कर जा तू काम ऐसा इस जग में
की दुनिया का हर सक्श बस तुझे पुकारे
उठ मुसाफिर तुझे तेरी मंजिल पुकारे
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़
01:13am, Mon 20-05-2013
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