Thursday 20 June 2013

Anjaana Kaatil (अंजाना कातिल) POEM No. 105 (Chandan Rathore)


अंजाना कातिल
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कोमल , मुलायम पारदर्शी वो हाथ
मै एक जीव हूँ , मेरा ना कोई धर्म ना कोई जात
खिंच रहा हैं ,  कातिल
नोच रहा हैं  , कातिल
कहता हैं सबको वो , बस कुछ देर की और बात

अंधकार में रख कर ख़त्म कर रहा हैं सबको
चाहे लड़का हो चाहे लड़की , मार रहा वह सबको
गुनाह मत करो
अपनी ओलाद को ना मरवाओं
ये सब कर के तुम क्यों दे रहे उसका साथ

चाकू, कैचीं  लेकर  बढ़  जाता हैं
टुकड़े टुकड़े कर के सब ख़त्म कर जाता हैं
एक बीमारी को ख़त्म करने को ढेरों बीमारियाँ  फेलता हैं
बिना बात इस संसार में एक जीव और मर जाता हैं

वो असहाय क्या जाने
ये सब माँ क्यों माने
उसके पिता उस कातिल को क्यों ना पहचाने
बेटी मरवाने की चाह में बेटे ही गुम हो जाने

अंधविश्वास की चली रे कैसी  आंधी
सोनोग्राफी  की कैसी  ये दुनियां  दिवानी
अरे ! कबूल करो जो भगवान से मिलता हैं
कही नित नए इलाज से ख़त्म ना हो जाए बच्चेदानी

छोटा सा जीव कह रहा अपनी कहानी
जो नोच नोच कर उन जालिमों ने 
कर दिया मेरे शरीर  को पानी
अब रोक लो ये भूर्ण हत्या का पाप
वरना ख़त्म हो जायेंगी  हमारी  कहानी

लिख लिख कर सोच रहा हूँ  सबके हित की बात
अब जो ये कुकर्म करे उसके ना पैर बचे ना हाथ
सोचे सब कौन सी कर रहा राठौड़ आज बात
कोख मे भूर्ण की भयावह  मौत जो होती
कर रहा उसकी मै बात
कर रहा उसकी मै बात

आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़

10:23 PM, Fri 24/05/2013

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