POEM No. 179
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नववर्ष 2014
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नव दीपों की नव लोह जल रही है नयारी
जो सब आज यहाँ उपस्थित है उनका मै बहुत आभारी
कह रही समय की चिड़ियाँ बारी-बारी
अब 2013 तो गया अब 2014 की बारी
कट गए या काटे गए थे वो पल
आ निकले फिर भी जैसे फूलों की हो क्यारी
मन की गति आज समय से भारी
उत्पीड़ा,वैराग्य से निकल गई एक और हमारी
आज शुभ दिन है नववर्ष का करेंगे नई आज बात
भूल जाओंगे आप सब मुझे भी 2013 की तरह (2)
रह जायेंगी बस मेरी याद
2013 तो तेरा था अपना कुछ नही हाथ
2014 की गिनती तो देखो आते ही दे दिया साथ
भूल कर पिछली भूलो को आज करे नई शुरुवात
आओ मिलकर हम सब करे नववर्ष का नया आगाज
आओ सब मिलकर करते है 2013 की आज अंतिम विदाई
सब को राठौड़ की तरफ से नववर्ष की कोटि-कोटि बधाई
आपका शुभचिंतक
8:52 PM 30/12/2013
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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8:52 PM 30/12/2013
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