Monday 14 July 2014

Jindgi na sambhalti he ( जिंदगी ना संभलती है ) POEM No. 177 (Chandan Rathore)


POEM NO. 177
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जिंदगी ना संभलती है
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ना गुजरती है ना कटती है
ऐ! खुदा तेरी जिंदगी अब मुझसे ना संभलती है

ना मिलती है ना बिकती है
ना हँसती है ना रोती है
मंजिल तक ना पहुँचती है
ना रूकती है
ऐ खुदा ले ले तेरी जिंदगी अब मुझसे ना संभलती है

ना चुप रहती है ना मचलती  है
ऐ खुदा तेरी ये दी हुई जिंदगी मुझसे ना संभलती है

ना ये डूबती है ना ये तैरती है
ना ये सोती है ना ये जागती है
ऐ खुदा तेरी ये जिंदगी मुझसे ना संभलती है

जिंदगी के दिये गुमनाम दर्द
मोैत से बड़ा ना कोई हमदर्द
ऐ खुदा मेरी मोैत मुझसे ना संभलती है
ऐ खुदा मेरी मोैत मुझसे ना संभलती है


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

12:52am, Sun 22-12-2013 
(#Rathoreorg20)
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