POEM NO. 178
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जिंदगी रास ना आई
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मन की मती कहा ले आई
मुझको मेरी जिंदगी रास ना आई
शब्दों के जंजाल में हूँ कही
एक भी लहर एक सांस में ना आई
रूबरू हुआ जख्मों से हर दम
मुझे किसी भी पल ख़ुशी ना आई
एक चाँद को देखता था मै अकेले बैठ कर
पर उसे भी मेरी निहारने की अदा ना भाइ
आहट आती है कई की सम्भालो राठौड़
पर राठौड़ की मती में वो बात ना आई
घिस रहा चन्दन मंदिर में
जल रहा चन्दन समशानो में
अब तक उसकी मंजिल ना आई
रूठ कर बैठ गया खुशियों के मेह्खानों में
एक ख़ुशी नही संग आई
मन की मती कहा ले आई
मुझको मेरी जिंदगी रास ना आई
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
09:04pm, Wed 25-12-2013
(#Rathoreorg20)
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