POEM NO. 96
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महंगाई
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हर कदम पे जिसने पैर पसारे
गरीबो के जिसने सपने मारे
पापी पेट की ये कठनाई
हाय रे ये महंगाई
छीन लिए ख्वाब हमारे
सभी इससे परेशान प्यारे
बहुत दूर होगी अब मुह से मिठाई
हाय रे ये महंगाई
गरीब की रोटी पे केसी ये लाचारी
घी की खुशबु तो पता नही कब आई
सरकार खजाने भरकर ये सरकार ने केसी मोज उड़ाई
हाय रे ये महंगाई
अब तो लगता हे खाने पे भी लोन मिलेगा
हर किरणे की दुकान के बहार security गार्ड मिलेगा
सोना, चांदी तो देखने के हे अब तो
तेल घी प्याज लहसुन का शोरूम मिलेगा
केसी सरकार की ये लाचारी हे
महंगाई सिर्फ गरीबो पे ही क्यों आई हे
सब में लगे हे वेतन आयोग
पर जब आज भी काम मांगने जाओ तो
3 -4 हजार की नोकरी ही हात आई है
वा री वा क्या चली पुरवाई हे
हाय रे ये क्या महंगाई आई है
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हर कदम पे जिसने पैर पसारे
गरीबो के जिसने सपने मारे
पापी पेट की ये कठनाई
हाय रे ये महंगाई
छीन लिए ख्वाब हमारे
सभी इससे परेशान प्यारे
बहुत दूर होगी अब मुह से मिठाई
हाय रे ये महंगाई
गरीब की रोटी पे केसी ये लाचारी
घी की खुशबु तो पता नही कब आई
सरकार खजाने भरकर ये सरकार ने केसी मोज उड़ाई
हाय रे ये महंगाई
अब तो लगता हे खाने पे भी लोन मिलेगा
हर किरणे की दुकान के बहार security गार्ड मिलेगा
सोना, चांदी तो देखने के हे अब तो
तेल घी प्याज लहसुन का शोरूम मिलेगा
केसी सरकार की ये लाचारी हे
महंगाई सिर्फ गरीबो पे ही क्यों आई हे
सब में लगे हे वेतन आयोग
पर जब आज भी काम मांगने जाओ तो
3 -4 हजार की नोकरी ही हात आई है
वा री वा क्या चली पुरवाई हे
हाय रे ये क्या महंगाई आई है
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