Wednesday 21 August 2013

Dil Ki Berukhi (दिल की बेरुखी ) Poem No. 119 (Chandan Rathore)


POEM No. 119
-----------------
दिल की बेरुखी
----------------------
दिल की जुबान कोई समझा नहीं
दिल से दिल किसी ने लगाया नहीं

हर बार धोखा खाते हैं हम दिल से
हर मौड़  पे दिल साथ देता नहीं

हर राह मिलाता हर जगह दिल लगाता
ऐ दिल संभल अब तो तू नहीं तो मैं नहीं

दिलों  के मेहखानों में हमदर्द कम हैं
हर दर्द की आँखे भी देखों  नम हैं

हर काफिलें तुझसे हैं चलते
तुझ पे ख़त्म होने को
सब दिल से बेगर हैं हो जाते, जो दिल को समझते नहीं

आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

01:25am, Fri 28-06-2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Chandan Rathore (Official) ░▒▓█▇▅▃▂_

No comments:

Post a Comment

आप के विचारो का स्वागत हें ..