Poem No. 122
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रोबो (रोबोट)
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एक कल्पना
एक यातना
एक परछाई
सागर की गहराई
एक सुन्दर स्वप्न
बिता हुआ बचपन
एक प्यारी सी लहर
जेसे बाड़ का कहर
सुबह की नई उमंग
आगे बढ़ने की तरंग
एक नया अहसास
एक अटूट विश्वास
खिल खिलाती हँसी
आवाज मधु के जैसी
ख्वाबों का सेलाब
बनता हुआ ख्वाब
मेरी वो मन्नत
एक सुन्दर जन्नत
एक कहानी
एक निशानी
एक सोच
एक सच
एक मन-मोहिनी
एक दिवानी
ठंडी ठंडी पुरवाई
कैसे खुदा ने बनाई
एक याद
एक फ़रियाद
एक अति
एक गति
एक सारांश
एक निष्कर्ष
ऐसा है मेरा रोबो . . .
Do u know?
:C' '
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)
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