POEM NO. 203
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रोती रही चूड़ियाँ
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टप टप आंसू गिरे, टूट कर धरा पे गिरे
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ
इधर उधर भागे, बड़ी बेचैन सी लागे
अब क्या बताऊ, रात भर सोती नही चूड़ियाँ
मन रोये बिलखे, सिसक सिसक कर आंसू छलके
अब क्या बताऊ, रात भर कुछ कहती रही चूड़ियाँ
खनक ना तो छोड़ दिया, वैराग्य मन में धर लिया
अब क्या बताऊ, रात भर चुप चाप बैठी रही चूड़ियाँ
ख़ुशी से सफ़ेद हुई, याद में फिर लाल हुई
अब क्या बताऊ, रात भर रंग बदलती रही चूड़ियाँ
कभी यहाँ गिरे, कभी वहाँ गिरे टूट टूट कर गिरती रही
अब क्या बताऊ, रात भर लहू लुहान होती रही चूड़ियाँ
बहती रही यादो मे, गुन-गुनाती रही रातों में
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ
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रोती रही चूड़ियाँ
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टप टप आंसू गिरे, टूट कर धरा पे गिरे
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ
इधर उधर भागे, बड़ी बेचैन सी लागे
अब क्या बताऊ, रात भर सोती नही चूड़ियाँ
मन रोये बिलखे, सिसक सिसक कर आंसू छलके
अब क्या बताऊ, रात भर कुछ कहती रही चूड़ियाँ
खनक ना तो छोड़ दिया, वैराग्य मन में धर लिया
अब क्या बताऊ, रात भर चुप चाप बैठी रही चूड़ियाँ
ख़ुशी से सफ़ेद हुई, याद में फिर लाल हुई
अब क्या बताऊ, रात भर रंग बदलती रही चूड़ियाँ
कभी यहाँ गिरे, कभी वहाँ गिरे टूट टूट कर गिरती रही
अब क्या बताऊ, रात भर लहू लुहान होती रही चूड़ियाँ
बहती रही यादो मे, गुन-गुनाती रही रातों में
अब क्या बताऊ, रात भर रोती रही चूड़ियाँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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7:10 PM 18/03/2014
(#Rathoreorg20)
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