Friday 7 November 2014

HADA RANI ( हाडा रानी ) POEM NO. 198 (Chandan Rathore)


POEM NO. 198
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हाडा रानी
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बहुत पुरानी एक प्रेम कहानी थी
उस कहानी के किरदार एक राजा और रानी थी
प्यार उनका देख दुनिया उनकी दीवानी थी
विवाह रचा कर, एक नई कहानी लिखनी थी

एक सप्ताह विवाह को हुआ, यहाँ से नई कहानी थी
एक दुत आया संग पत्र लाया, उस दिन सुबह नूरानी थी
नैन मिले दोनों के, जैसे दोस्ती उनकी पुरानी थी
राणा राज सिंह का पत्र थमाया, उसमे युद्ध का संदेशा आया
बिन बोले ही बहुत कुछ हुआ जैसे प्रीत पुरानी थी

राजा ने रानी को देखा, उनके सिंदूर, मेहँदी, चेहरे को देखा
नव विवाहित रानी, उनके पेरो में लगे महावर की लाली वैसे के वैसे थी
कितना दुःखद होगा वो उनका दुखदाई बिछोह, सब की रूह सिहर उठी थी

युद्ध था हिंदुत्व का, युद्ध था हिन्दू बने रहने का
आंधी चली थी युद्धों की, अब राजा को भी राजपुताना की लाज बचानी थी

केशरिया बाना पहने युद्ध वेश में, रानी चोंक पड़ी वह अचंभित थी
शौर्य, पराक्रम और शत्रुओं का नाश यही तो राजपूतों की निशानी थी

आरती का थाल सजा, राजा के माथे तिलक लगा
"मै धन्य हुई ऐसा वीर पति पाकर राजपूत रमणीय इस दिन के लिए तो पुत्र को जन्म देती है"
ये रानी के मुख की वाणी थी

नवविवाहित राजा रानी कितनी मधुर उनकी वाणी थी
बोले राजा " तन मन धन किसी प्रकार का सुख ना दे सका प्रिये, क्या तुम मुझे भूल तो नही जाओंगी"

"ना स्वामी, अशुभ बातें ना बोलो मैं वीर राजपूतनी हूं, फिर एक वीर की अर्धांगिनी भी हूँ"
रानी की अति मधुर वाणी थी

राजा ने  घोड़े को ऐड़ लगाई, विदाई की भी अजब कहानी थी
राजा युद्ध भूमि में जा भिड़ा, उड़ा कर राजपुताना का बीड़ा
राजा रानी को रोज संदेशा भेजे "मै जरूर आऊंगा तुम मुझे भूल ना जाना"

युद्ध का तीसरा दिन था, आज फिर संदेशा रानी को भेजा
लिखा "तुम्हारे रक्षा कवच के प्रताप से शत्रुओं से लोहा ले रहे है, पर तुम्हारी बड़ी याद आती है, पत्र वाहक द्वारा अपनी कोई प्रिय निशानी अवश्य भेज देना, उसे देख कर मै मन हल्का कर लिया करूँगा"

पत्र पढ़कर रानी करें विचार 
युद्धरत पति अगर करें मेरी पुकार 
नेत्रों के सामने बस मेरा मुखड़ा हो 
तो राजा शत्रुओं से विजय नही कर पायेंगे
और राजा की हार राजपुताना की भी होगी हार 

विजय श्री का वरन करने को देती हूँ अंतिम निशानी
सेनापति ले जाकर देना ये पत्र और वस्त्र से ढकी हुई निशानी

रानी ने पत्र लिखा
"काट कर सब मोह बंधन
भेज रही हूँ अंतिम जीवन
आप राजपुताना के लिए कर्तव्यरत रहना
मै चली स्वर्ग को अपना कर्तव्य भूल ना जाना
कमर से निकल तलवार, धड़ से अलग किया सिर चला कर तलवार"

सिपाही के नेत्रों का सैलाब उमड़ पड़ा
कठोर कर्त्तव्य धर्म था सिपाही का
हाडा रानी का सिर, स्वर्ण थाल पे सझाया
सुहाग की चूनर से उसने रानी के सिर को ओढ़ाया
भरा मन लिए दौड़ पड़ा  युद्ध भूमि की और
राजा स्तब्ध हुआ, सिपाही क्यों अश्रु बहता
राजा कुछ समझ ना पाया, उसने थाल से पर्दा हटाया
फटी आँखों से देख रहे राजा, मुँह से बस इतना निकला है रानी
संदेही पति को ये क्या सजा दे डाली, खेर मै भी तुमसे मिलने आ रहा हूँ रानी

"राजा मांगी निशानी
सिर काट दियो क्षत्राणी"

विजय हुए राजा भाग खड़ा हुआ ओरंगजेब पर ये जीत का श्रेय किसे जाता है | राजा को, या राणा राज सिंह को या फिर हाडा रानी को या फिर अनोखी निशानी को

नोट
राजा : सलूम्बर के राव चुण्डावत रतन सिंह जी
रानी : कोटा के हाड़ा शासकों की पुत्री हाडा रानी 
राणा : राणा राज सिंह जी

ख़त्म हुई कहानी वो तो हाड़ा रानी थी


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

05:25am, Sat 08-02-2014
(#Rathoreorg20)
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