POEM NO. 197
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नठखट मनवा
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मन की गति में दौड़े जाये बेला
उछल कूद करता जाए मनवा छेला
मनवा कोयल सा गीत गाये सुरीला
मन की इच्छाओं की तीव्र गति से बढ़ती मधुबेला
वैरागी सा मनवा गुमे अकेला
कूट नीतियों से भरा है मनवा मेला
मनवा की गाथा गाये कोकिला
अहम् , अहंकार से बहता मनवा रेला
लक्ष्मी देख मनवा बनता खर्चीला
बिन लक्ष्मी के इधर उधर भटकता अलबेला
मनवा ना माने किसी की, वो बहुत हटीला
अपार विचारों को आग पे, जलाता मनवा पतीला
थक कर मनवा, जाता मधुशाला
पी कर मधु,खुशियाँ मनाता मनवा अकेला
खुशियों में झूमे मनवा छेल-छबीला
उछल-कूद करता जाए मनवा छेला
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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05:05am, Sat 08-02-2014
(#Rathoreorg20)
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