POEM NO. 216
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माँ बोलूँ तो ...
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माँ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है
तेरे बिन जी लू तो भगवान रूठ जाते है
कैसा ये मनोरम चेहरा है माँ
अगर कुछ बोलूँ तो आंसू गिर जाते माँ
चिंता में हमेशा मे रहता
सब दर्द तुम क्यों सह लेती हो माँ
आँचल में छुपालों मुझको
दुनियाँ से अब डर लगता है माँ
रो रो कर पुकारू तुझको
ना चुप हूँ पाउ माँ
तेरी सूरत भोली लागे कैसे मुझे सम्भालू माँ
कुछ बोलता हु तो, आंसू गिर जाते माँ
कष्टों से तूने निकला
खुद भूखी रह तूने मुझे है पाला
आंसू बहा रहा हूँ माँ
तुझे बुला रहा हूँ माँ
कुछ बोलूँ तो, आंसू गिर जाते माँ
तेरी याद में बरसों बीते
कई राते हम भूखे सोते
अब दर्द किसे सुनाऊ माँ
नींद नही आती है अब तो
अपने हाथो पे सुला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आँसू गिर जाते माँ
माँ बिछड़ी सब बिछड़ा मुझसे
अब किस से आश लगाऊ माँ
माँ कहते कहते प्राण निकल जाए
बिन तेरे क्या करू इन प्राणो का माँ
भूख बहुत लगती है अब तो
अपने हाथ से खिला दे माँ
कुछ बोलूँ तो आंसू गिर जाते है माँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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11:13am, Sat 10-05-2014
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