Sunday 21 December 2014

Kyo Bigada Mujhe (क्यों बिगाड़ा मुझे) POEM NO. 214 (Chandan Rathore)


POEM NO. 214
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क्यों बिगाड़ा मुझे
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ख़ुशी आज भी है
ख़ुशी कल भी रहेगी
मेरी हर आदत
तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

हँसी रहेगी चेहरे पर
आँखे नम सी रहेगी
डूब जायेगे एक दिन
साँसे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

लब्जो में गम है
इस दुविधा में हम है
कोई नही है दूर दूर तक
फिर भी आँखे तुम से कहेगी
"क्यों बिगाड़ा मुझे"

तुम भूल जाओ "राठौड़" को
उसे अब जरुरत नही तुम्हारी
इतना सब कुछ कर दिया
अब क्या आदत समझू  तुम्हारी
मेरे हर लफ्ज कहते है
"क्यों बिगाड़ा मुझे"


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

11:26am, Tue 29-04-2014 
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂ 

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