Wednesday 10 December 2014

Roti Ki Laachari (रोटी की लाचारी) POEM NO. 208 (Chandan Rathore)



POEM NO. 208

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रोटी की लाचारी
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छुप रहे अत्याचारी
खा रही रोटी की लाचारी
बंद हुआ अन्न पानी
भूख से जनता परेशान बेचारी

धान उगाता देश यहाँ
फिर भी इतना महंगा है
क्या बयां करू चंद शब्दों में
किसानों की लाचारी

2 समय के खाने को
कितना तरसना पड़ता है
भाग भाग पूरा दिन काम किया
फिर रात बिन खायें सोना पड़ता है

ये देश हुआ परदेश अब तो
जहां लोकतंत्र की मारा मारी है
गरीब के घर में रोटी की कितनी लाचारी है

2 बच्चे खायें 1 पिता खा जाए
माँ आज भी भूखी सोती है
देश की सरकार का क्या कहुँ
आज मेरी धरती माँ ये सब देख कर रोती है

भूख सहन करना वो क्या जाने
जो लोगो के धान खा जाते है
इधर बटाया ध्यान
उधर इंसान नोच लिए जाते है

भूख का क्या कहना
वो भी तो किस्मत की मारी है
कैसी आज रोटी की लाचारी है

कौन कहे कौन सहे सब के मुह बाँध दिए जाते है
ऐसी भूख है आज इंसान इंसान को खा जाते है

खाने को तो खा रहे
घुस, चारा, अमर शहीदो की जमीं तक को
भूखा सोता मेरा देश
फिर भी खाना पहुँचता परदेश
खाने के लिए यहाँ तो पेट्रोल तक पि जाते है

बिन कहे सब कह दूँ
देश की आवाज भी कह दूँ
आज हर इंसान की ये किलकारी है
आज हर घर में रोटी की लाचारी है



आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

01:02pm, Thu 17-04-2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂ 

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