Friday 5 December 2014

Saath Hote Tum (साथ होते तुम) POEM NO. 206 (Chandan Rathore)


POEM NO. 206
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साथ होते तुम 
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ख़्वाबों की सीढ़ियों में कितनी कशिश है
महोबत की राहों में पता नही कितनी बंदिश है

अगर-मगर इधर-उधर बहता हूँ पानी की तरह
और एक महबूबा के इज़हार की आस की रंजिश है

दीवाने हो मेरे या मुझको बना रहे हो दीवाना
प्यार में अपने तुम्हारी कसम कितनी सादिसे है

हो मेरे या फिर हो किसी अनजान के जिंदगी के मांजी
सुन तो लो महोबत तुम्हारी कितनी बेखौफ सी है

रुक ना जाते किसी राह पे तो साथ होते तुम
मेरे हर राज के राज भी होते तुम
बोलता मै और मेरी आवाज होते तुम
कितने हसीं होते वो लम्हें प्यार के
जिन लम्हें में साथ होते तुम

आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

1:01 PM 13/04/2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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