POEM NO. 210
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आई गुड़ियाँ
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छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ
आजा मेरे पास ओ !! मुनियाँ
कब तक तरसाएगी ये दुनियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरी छोटी सी बगियाँ
कोमल चंचल छोटी सी कलियाँ
सब दुःख से बचाऊ तुझको
तू है मेरी खुशियों की बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तेरी किलकारी गूंजी थी जब मै
खूब खुश था घर में अपने
अपनी खुशियाँ तुझे दे डालु
तू ही बस मेरी हर खुशियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
खेल रही आँगन में मेरे
खुश है चढ़ कर कंधो पे मेरे
स्कूल में नाम कमाया
घर में हाथ बढ़ाया
आज ग़र्व से कहता हूँ मै यारों
मेरे पास है परी सी बिटियाँ
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
तू है मेरे सपनों की पूड़ियाँ
बड़ी हुई देश चलाया
घर वालों का मान बढ़ाया
देश परदेश चर्चे उसके
हँस के सब ने सम्मान जताया
छम-छम करती आई गुड़ियाँ
आज बिटियाँ का ब्याव रचाया
छम-छम करती जाती बिटियाँ
अगले घर को जाकर और घर बसाया
2 -2 घर का भार संभाला
फिर भी माँ-पिता का हाल संभाला
ऐसी होती है बिटियाँ
छम- छम करती आती बिटियाँ
झर-झर आँसू बहाती बिटियाँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
(Facebook,Poem Ocean,Google+,Twitter,Udaipur Talents, Jagran Junction , You tube , Sound Cloud ,hindi sahitya,Poem Network)
01:44pm, Thu 17-04-2014
(#Rathoreorg20)
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