POEM No. 127
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अकेलापन
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अकेलेपन में जो मजा है
वो महफ़िलों और मह्काशों में कहा
यहाँ जो भी है वो मुझे समझते है
मेरे साथ अकेले होते है
इन गूंजती हुई आवाजों में एक मस्त तराना आता है
जब सिसक सिसक के रोता हूँ तो नाम आप का आता है
विरान हो गये सारे सपने मेरे
बस उन्हें देख देख दिल रो जाता है
जिधर देखूँ उधर तुम नजर आती हो
पास जो आता हूँ तो गुम कही हो जाती हो
आवाज लगाता हूँ तो दूर बहुत चली जाती हो
मेरी तकलीफें देख तुम क्या खूब मुस्कुराती हो
लेकर सारे सपनें मैं महफ़िलों में जाया करता हूँ
मैं उन महफ़िलों में भी खुद को अकेला पाता हूँ
इसलिए मै अकेला रहता हूँ
बस
मै अकेला रहता हूँ
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)
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