Poem No. 125
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कुछ नहीं पाया हमने
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हर पत्थर को देखा हमने
हर नजर को परखा हमने
धुल गई खुशिया फिर भी आन्शुओ में
ऐसा दुःख भी देखा हमने
कलम चलती रहती कागज भिगता रहता
बारिश होती प्यार की हर तरफ फिर भी मै सुखा रहता
कई कांटे बिछाये दुनिया ने हमारे लिए
फिर भी हर कदम पे फुल रखा हमने
मदमस्त जिन्दगी लेती रही इन्तिहाँ
ना चाहते हुए भी ख़त्म हो गया इन्सान
ऐ ! रौशनी जरा इधर तो आ मुझे जरुरत है तेरी
बीती जिन्दगी में गंगोर अँधेरा देखा हमने
सांसे कहती मै सुनता ऐसा सन्नाटा होता था
दिन संभालता राते रोती साथ मै मेरे
बिछड़ जाता मै खुद से सोच सोच कर
फिर भी कुछ नहीं पाया हमने
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कुछ नहीं पाया हमने
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हर पत्थर को देखा हमने
हर नजर को परखा हमने
धुल गई खुशिया फिर भी आन्शुओ में
ऐसा दुःख भी देखा हमने
कलम चलती रहती कागज भिगता रहता
बारिश होती प्यार की हर तरफ फिर भी मै सुखा रहता
कई कांटे बिछाये दुनिया ने हमारे लिए
फिर भी हर कदम पे फुल रखा हमने
मदमस्त जिन्दगी लेती रही इन्तिहाँ
ना चाहते हुए भी ख़त्म हो गया इन्सान
ऐ ! रौशनी जरा इधर तो आ मुझे जरुरत है तेरी
बीती जिन्दगी में गंगोर अँधेरा देखा हमने
सांसे कहती मै सुनता ऐसा सन्नाटा होता था
दिन संभालता राते रोती साथ मै मेरे
बिछड़ जाता मै खुद से सोच सोच कर
फिर भी कुछ नहीं पाया हमने
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)
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