Monday 9 December 2013

Dar Lagta He (डर लगता है) POEM No. 140 (Chandan Rathore)


Poem No. 140
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डर  लगता है
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हर शाम हर खिलती शुबह से डर  लगता है
आज मेरी परछाई से डर लगता है 

मै  घबरा जाता हूँ अपनी छवि देखकर
आज मुझे मेरी किश्मत से डर लगता है

हर कदम पे हताशा ही भरी मेरे जीवन में 
आज जीने से डर  लगता है 

क्यों मुझे सताते हो खुदा ! मै कसूरवार हूँ
आज तेरे आगे सर झुकाने से डर लगता है 

एक दुहाई मै करता हूँ तुझसे कि सब को खुश रखना
आज मेरे लिए कुछ मांगने से डर लगता है 

आज मांगना मौत आसान है मेरे लिए
पर मुझे जीने से डर लगता है
मुझे जीने से डर लगता है



आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

08:42am, Wed 21-08-2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_

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