POEM NO. 143
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ये शाम कुछ कहती है
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ये शाम कुछ कहती है
ये वादियाँ कुछ कहती है
मै उसे कुछ कहता हूँ
और वो कुछ और समझती है
ये हवायें किस और चलती है
बिन धुँवा ये आग कैसी लगती है
हर और कैसी ये वीरानी जब होती है
जब साथ मेरे वो होती है
अंगारों पे भी चल लिया
हर गम उससे मेने छीन लिया
अब खुदा उसे खुश रखना तुम
जब साथ वो किसी के होती है
बन परछाई मै चला था
कर दी अलग परछाई उसने
भूल कर जाती कहाँ , अपना दर्द तो ले जाओ
मै अकेला कब तक जिऊँगा
मेरे पास तो आजाओ
आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)
2:04 PM 23/11/2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_
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